अपने दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ्य मंत्रालय को कितना तंदुरुस्त बना पाएंगे केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा?

एक बड़ी आबादी को पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना किसी चुनौती से कम नहीं है. फिलहाल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के लिए जरूरी यही है कि लोगों को सस्ता इलाज मिल सके और गैर-संक्रामक रोगों के बढ़ते बोझ पर काबू पाया जा सके

जे.पी. नड्डा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री
जे.पी. नड्डा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री

पिछले एक दशक के दौरान देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और मापदंडों में काफी सुधार आया है. हमने दुनिया की सबसे बड़ी बीमा योजना लागू की, डॉक्टर-मरीज अनुपात सुधारा और साथ ही मातृ-शिशु मृत्यु दर और विभिन्न बीमारियों के बोझ जैसी समस्याओं पर काबू पाने की शुरुआत की.

लेकिन अमेरिका, जापान या ब्रिटेन जैसी उन्नत स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के स्तर तक पहुंचने के हमें इस क्षेत्र में और अधिक निवेश करने की जरूरत पड़ेगी. मेडिकल जर्नल लैंसेट के मुताबिक, स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में कमी आई है, जो पिछले कुछ वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 1.2 फीसद रहा है.

हालांकि, सरकार का दावा है कि खर्च बढ़ा है. 2014-15 में यह जीडीपी का 1.13 फीसद था, जो 2019-20 में बढ़कर 1.35 फीसद पर पहुंच गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के मुताबिक, 2025 तक इसके 2.5 फीसद पर पहुंचने की उम्मीद है.

निवेश के अलावा भारत विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी से भी जूझ रहा है. मसलन, आंकोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, पल्मोनोलॉजिस्ट के अलावा इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, गाइनोकोलॉजिकल आंकोलॉजिस्ट जैसे सुपर स्पेशलिस्ट की भी खासी कमी है.

आंकोलॉजिस्ट डॉ. अशोक वैद कहते हैं, "कैंसर के मरीजों की संख्या हमारे देश में डॉक्टरों की संख्या की तुलना में बेहद ज्यादा है. अगर किसी बीमारी का मुकाबला करना है तो सबसे पहले पर्याप्त डॉक्टर होने चाहिए."

यही नहीं, देश बदलती जीवनशैली और पर्यावरण के खतरों का भी सामना कर रहा है. लोगों की शारीरिक गतिविधियों में कमी आ रही है, हवा में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जलवायु परिवर्तन से मौसम लगातार ज्यादा गर्म होता जा रहा है और जानवरों से फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ रही हैं. ये सभी बड़े खतरे हैं.

इन वजहों से हृदयरोग, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं और वैश्विक स्तर पर इन खतरों के मामले में भारत काफी आगे है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी चुनौतियों से निबटने के लिए सरकार को जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने और अस्पतालों में बेड, डॉक्टर, नर्सों और टेक्निशियनों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.

जे.पी. नड्डा, 63 वर्षः भाजपा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री

निरंतर प्रगति

पटना में जन्मे नड्डा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की और यहीं से एबीवीपी के साथ जुड़कर राजनैतिक जीवन में कदम रखा. 1991 में भाजपा की युवा शाखा भाजयुमो के अध्यक्ष बने.

स्वास्थ्य और पार्टी संभाली

राष्ट्रीय स्तर के तैराक रहे नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने से पहले 2014 से 2019 तक केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री रहे. अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य विभिन्न बीमारियों के खिलाफ बच्चों का पूर्ण टीकाकरण था. उनके नेतृत्व में टीबी के खिलाफ एक ठोस अभियान की शुरुआत की गई.

अनुप्रिया पटेल, राज्यमंत्री, 43 वर्षः अपना  दल (सोनेलाल) 

समर्पित सहयोगी:

अनुप्रिया ने पूर्व में स्वास्थ्य राज्यमंत्री के तौर पर सरोगेसी विधेयक का समर्थन किया था, जिसके जरिए भारत में पैसों के बदले सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाया गया.

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