लद्दाख का विरोध प्रदर्शन क्या भाजपा के लिए खड़ी करेगा मुश्किल?
लद्दाख में विरोध प्रदर्शन का मसला लोकसभा चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है और भाजपा की चुनावी संभावना में उलटफेर कर सकता है. विपक्ष भी उसके खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार देने की कोशिश कर रहा है

करगिल में पिछले साल अक्तूबर में हुए लद्दाख स्वायत्तशासी पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस गठजोड़ की जोरदार जीत ने यह संकेत दिया था कि स्थानीय भावनाओं में भारी बदलाव आया है.
एकदम स्थानीय स्तर के चुनाव में इस जीत को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ गुस्से पर मुहर के तौर पर देखा गया, खासतौर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद. यह हार उस समय हुई जब भगवा पार्टी इस इलाके में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है और जिसे कई विकास कार्य कराने का श्रेय है. इनमंड लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी करना भी शामिल है.
करीब छह महीने बाद यह क्षेत्र लोकसभा चुनाव से पहले फिर से असंतोष का सामना कर रहा है. 3 फरवरी को जमा देने वाली सर्दी के दिन लेह में एनडीएस स्टेडियम से लेकर पोलो ग्राउंड की सुनसान सड़कों पर विशाल विरोध प्रदर्शन निकाला गया, जिसमें शामिल लोगों ने अपनी मांगों को नए सिरे से उठाया.
दूरदराज के गांवों से आए लोग भी इसमें शामिल हुए और लेह पूरी तरह बंद रहा. उनकी मांगें पांच मसलों को लेकर हैं—राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, स्थानीय युवाओं की भर्ती और नौकरियों में आरक्षण, लोक सेवा आयोग का गठन और राज्य से संसदीय सीटों की संख्या एक से बढ़ाकर दो करना.
लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के नेतृत्व में इस विरोध प्रदर्शन को भाजपा को छोड़कर अन्य सभी दलों का समर्थन मिला. ऐतिहासिक रूप से देखें तो लद्दाख के दो जिलों-बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल करगिल का ज्यादातर मसलों पर राजनैतिक और विचारधारा के तौर पर अलग-अलग नजरिया है. फिर भी दोनों जिलों के सभी धार्मिक और राजनैतिक दलों ने साथ जुटकर एक गठजोड़ बनाया और अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए शपथ ली.
शिक्षाविद् और इनोवेटर सोनम वांगचुक, जो 3 फरवरी के लेह मार्च के अगुआ लोगों में शामिल थे, भी लद्दाख के साथ अपने वादे पूरे न करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर आरोप लगाने से नहीं हिचकते.
मेगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित वांगचुक शुरू में केंद्र शासित दर्जे का उत्साह के साथ समर्थन कर रहे थे, पर अब कहते हैं, "हमको विरोध प्रदर्शन के लिए मजबूर किया गया क्योंकि लद्दाख एपेक्स बॉडी की मांगों के प्रति केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया.
इस बीच भाजपा के स्थानीय नेता अफवाह फैला रहे थे कि इस मांग को न के बराबर समर्थन प्राप्त है. हमने प्रदर्शन यह दिखाने के लिए किया कि लद्दाख में हर कोई हमारा समर्थन कर रहा है. मौजूदा व्यवस्था में हम असहाय हैं क्योंकि हमारे भाग्य का फैसला उपराज्यपाल की ओर से किया जाता है."
लद्दाख के पुराने स्वरूप में करगिल और लेह जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए दो विधायक चुनकर भेजते थे. जम्मू-कश्मीर के विभाजन और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट देने के बाद लद्दाख का कोई विधायक प्रतिनिधित्व नहीं है.
वांगचुक ने घोषणा की है कि अगर दिल्ली में 19 फरवरी की अगली बैठक में केंद्र सरकार ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे आमरण अनशन करेंगे. पूर्व भाजपा सांसद और लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष थपस्तान चेवांग के नेतृत्व वाली लद्दाख एपेक्स बॉडी लद्दाख के लिए बनी उच्च अधिकार प्राप्त समिति के सदस्यों के साथ बैठक में शामिल होगी. समिति का नेतृत्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के पास है.
वांगचुक कहते हैं कि बिगड़ता पर्यावरण भी उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. वांगचुक, जिनके जीवन पर आधारित पात्र की भूमिका थ्री इडियट्स फिल्म में आमिर खान ने निभाई थी, कहते हैं, "हमारी पारिस्थितिकी बहुत ही नाजुक है. ग्लेशियर हाइवे के पास पीछे हट रहे हैं और अगर यहां पर उद्योगों को परिचालन की इजाजात दी गई तो तबाही मच जाएगी. हमारे सभी जल संसाधन सूख जाएंगे."
सोनम आगे कहते हैं, "हम अपनी पहचान और पर्यावरण की रक्षा और सुरक्षा के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं. कई उद्योग, होटल और बहुराष्ट्रीय कंपनियां लद्दाख में कारोबार करने के लिए दरवाजे पर खड़ी हैं. इससे पहले उपराज्यपाल ने जब औद्योगिक नीति की घोषणा की तो हमारे विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा. यही कारण है कि हमारे क्षेत्र की रक्षा के लिए अनुसूची बहुत ही महत्वपूर्ण है."
लद्दाख की आबादी में 97 फीसद जनजाति (इनमें बल्ती, बेडा, बोट बोटो, ब्रोक्पा, द्रोक्पा, दार्ड, शिन, चांग्पा, गारा, मोन और पुरिग्पा शामिल) हैं और छठी अनुसूची इनकी जमीन की रक्षा कर सकती है. संवैधानिक प्रावधान है कि जिस क्षेत्र में 50 फीसद या अधिक जनजातियां हैं, वहां स्वायत्तशासी प्रशासनिक जिला परिषद गठित की जा सकती हैं और उसको प्रशासनिक तथा विधायी स्वायत्तता दी जा सकती है.
यह इस इलाके की विशिष्ट संस्कृति, जमीन के अधिकारों के साथ कृषि अधिकार, त्वरित विकास के लिए धन का हस्तांतरण और ऐसे अन्य मामलों में रक्षा कवच का काम करेगा.
डॉक्टर नंद कुमार साय के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पिछले साल सितंबर में लद्दाख के लिए छठी अनुसूची की सिफारिश की थी. इस समय मेघालय, असम, मिजोरम और त्रिपुरा के जनजातीय इलाकों में 10 स्वायत्तशासी विकास परिषदें मौजूद हैं.
यह मसला लोकसभा चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है और भाजपा की चुनावी संभावना में उलटफेर कर सकता है. विपक्ष का गठजोड़ भी भगवा पार्टी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार देने की कोशिश कर रहा है. इस समय लद्दाख लोकसभा सीट भाजपा के पास है.
2019 के भाजपा के चुनाव घोषणापत्र की ओर इशारा करते हुए वांगचुक कहते हैं कि उन्होंने वादा किया था कि इस क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल किया जाएगा.
उनका कहना है, "इसका असर सिर्फ चुनाव तक ही नहीं होगा. बल्कि देश के बाकी हिस्सों में भी हो सकता है कि कैसे सत्तारूढ़ पार्टी अपने वादे से पीछे हट गई है."
राजनैतिक कार्यकर्ता सज्जाद करगिली, जो उच्च अधिकार प्राप्त समिति की पिछली बैठक में शामिल हुए थे, का कहना है कि अभी तक सरकार की प्रतिक्रिया ठंडी रही है. वे क्षेत्र में बेरोजगारी की बढ़ती दर से चिंतित हैं.
उन्होंने केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि लद्दाख में 26 फीसद से अधिक स्नातक बेरोजगार हैं.
वे कहते हैं, "फिर भी सरकार ने हमारे मसलों को हल करने के लिए कुछ नहीं किया. रोजगार नहीं होने से हमारे युवा निराश हैं. हमारी मांगें संवैधानिक अधिकारों के तहत हैं. उन्होंने लोक सेवा आयोग का गठन भी नहीं किया और न ही नौकरियों में आरक्षण दिया है."
भाजपा के स्थानीय नेता इस बात से सहमत हैं कि जमीनी स्तर पर उनको समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, मगर उन्हें यह भी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए पुख्ता उपाय जरूर करेगी.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष फुनचोक स्टेन्जिन कहते हैं, "सरकार ने नौकरियों के लिए लद्दाख रेजिडेंट सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया है. इसी तरह केंद्र सरकार किसी न किसी प्रावधान के जरिए हमारी पहचान और पर्यावरण की भी सुरक्षा करेगी, फिर चाहे यह छठी अनुसूची हो या अनुच्छेद 371.
उनका कहना है, "हम उम्मीद कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले कुछ न कुछ जरूर किया जाएगा." ऐसा लगता है कि लद्दाख के लोग भी इसी पर उम्मीद लगाए बैठे हैं कि आम चुनाव केंद्र सरकार को मजबूर करेंगे और उन्हें कुछ राहत मिल जाएगी.
मोअज्जम मोहम्मद, श्रीनगर में