कतर में भारत की कूटनीतिक कामयाबी के कौन थे प्रमुख किरदार ?
कतर में पूर्व नौ-सैनिक अधिकारियों की भारत वापसी के अभियान में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से लेकर एनएसए अजीत डोभाल तक जुटे रहे. इन सभी गतिविधियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद व्यक्तिगत स्तर पर नज़र रखी थी

यह एक ऐसी घर वापसी है जिसका भारत महीनों से इंतजार कर रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने रविवार, 11 फरवरी को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता हासिल की जब अगस्त 2022 से दोहा में कैद सभी आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को रिहा कर दिया गया. इसके साथ ही उनकी सुरक्षा को लेकर कायम अनिश्चितता खत्म हो गई.
कथित तौर पर जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी की तरह ही उनकी रिहाई को भी आखिरी क्षणों तक गोपनीय रखा गया. कतर के अधिकारियों ने रविवार तड़के इन सभी आठ लोगों से अपना बैग पैक करने को कहा. पहले, उन्हें भारतीय दूतावास ले जाया गया, और वहां से हवाईअड्डे पहुंचाया गया.
फिर उनमें से सात स्पेशल फ्लाइट से सोमवार रात में करीब दो बजे दिल्ली पहुंचे. पूरे घटनाक्रम में उनके परिजनों को भी उनकी घर वापसी की कोई जानकारी नहीं थी. बीते साल दिसंबर में मौत की सजा माफ होने के बाद भी इनमें से कुछ लोगों ने खुली हवा में सांस लेने की उम्मीद छोड़ दी थी. (आठवें पूर्व नौसेना अधिकारी अभी दोहा में हैं और कथित तौर पर औपचारिकताएं पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं.)
मोदी इस मामले को कितनी अहमियत दे रहे थे, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि विदेश मंत्रालय ने संयुक्त अरब अमीरात की दो दिवसीय निर्धारित यात्रा के बाद 14 फरवरी को दोहा जाने के उनके कार्यक्रम की घोषणा अंतिम क्षणों में की. 2014 में पीएम बनने के बाद से मोदी की यह दूसरी कतर यात्रा है.
साउथ ब्लॉक के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कतर से बातचीत कभी आसान नहीं रही, जो अपनी 'मनमानी' और 'गोपनीय' कार्यशैली के लिए जाना जाता है. वैसे, 2021 में एक नेपाली प्रवासी की फांसी को छोड़ दें तो पिछले दो दशकों में इस खाड़ी देश में किसी अन्य को मौत की सजा नहीं दी गई. सूत्रों के मुताबिक, भारतीयों पर इज्राएल के लिए जासूसी करने जैसा गंभीर आरोप था, इसलिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा सकती थी.
यही वजह है कि नई दिल्ली ने बहुआयामी रणनीति अपनाई. विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अगुआई में खुले तौर पर जारी कूटनीतिक प्रयासों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के नेतृत्व में पर्दे के पीछे की कवायद भी चलती रही. इस सब पर मोदी ने 'व्यक्तिगत स्तर पर' नजर रखी. माना जा रहा है कि कतर के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और कुवैत जैसे पश्चिम एशिया के अन्य प्रमुख खिलाड़ियों के साथ संबंध बढ़ाने के लिए भारत की ओर से किए गए अहम निवेश ने भी इस मामले में अनुकूल नतीजे पाने में बड़ी भूमिका निभाई.
पूर्व नौ-सैनिकों की रिहाई से ठीक हफ्ते भर पहले भारत के पेट्रोनेट एलएनजी और कतर के बीच 78 अरब डॉलर (6.48 लाख करोड़ रुपए) के दीर्घकालिक सौदे को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके तहत कतर से तरलीकृत प्राकृतिक गैस के आयात को 2048 तक यानी अगले 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है. (यह खाड़ी देश भारत की ऊर्जा सुरक्षा में प्रमुख योगदानकर्ता है, और भारत में लगभग आधा एलएनजी यहीं से आयात होती है.)
भारत के राजनयिक प्रयासों में राजदूत विपुल ने भी बेहद अहम भूमिका निभाई, जिन्हें जून 2023 में दोहा में नियुक्त किया गया था. भारतीय विदेश सेवा के अनुभवी अधिकारी ने पहले से ही मामले पर बारीक निगाह बना रखी थी और नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के खाड़ी प्रभाग में संयुक्त सचिव के तौर पर पूर्व नौसैनिकों के परिवारों से नियमित संपर्क में थे. वे पूर्व में दुबई स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास में तैनात रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र के मामलों में उन्हें खास महारत हासिल है.
भारत के प्रयासों को बीते साल 26 अक्टूबर को गहरा झटका लगा, जब इन आठ भारतीयों—कैप्टन नवतेज गिल और सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, अमित नागपाल, एस.के. गुप्ता, बी.के. वर्मा, सुगुनाकर पकाला और नाविक रागेश को कतर की कोर्ट ऑफ फर्स्ट इंस्टांस ने मौत की सजा सुनाई. वह भी तब जब डोभाल कतरी अधिकारियों को यह समझाने को दोहा की कई बार यात्रा कर चुके थे कि ये लोग बेगुनाह हैं.
सूत्रों का दावा है कि आखिरकार सफलता तब मिली जब मोदी ने 1 दिसंबर को दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन यानी सीओपी28 के दौरान कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल सानी से मुलाकात की. इसके ठीक दो दिन बाद विपुल को पहली बार आठ पूर्व नौसैनिकों से मिलने के लिए काउंसलर एक्सेस मिली. 28 दिसंबर को कतर की अदालत ने इन भारतीयों की मौत की सजा रद्द कर दी और उन्हें तीन से लेकर 25 साल तक, अलग-अलग अवधि की जेल की सजा सुनाई. अदालत ने सभी आठ लोगों को इस सजा के खिलाफ अपील के लिए 60 दिन का समय भी दिया.
भारतीय रक्षा अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर इंडिया टुडे से कहा, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने से पूर्व इन सभी आठ नौसैनिकों का रिकॉर्ड 'बेदाग' रहा है. कमांडर तिवारी को तो 2019 में प्रवासी भारतीय सम्मान दिया गया था जो प्रवासी भारतीयों को मिलने वाला सर्वोच्च सम्मान है. रक्षा सूत्र पूरे प्रकरण के पीछे कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्विता को संभावित कारण बताते हैं.
ये आठों 2014 में स्थापित रक्षा सेवा कंपनी दहरा ग्लोबल के लिए काम करते थे, जो कतर के अमीर के नौसेना बलों को प्रशिक्षित करती थी. सूत्रों की मानें तो कंपनी की तेज वृद्धि से ईर्ष्या का नतीजा था कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियां इसकी साख बिगाड़ने में लग गईं. गिरफ्तारी के तुरंत बाद कंपनी ने दोहा में अपना कामकाज बंद कर दिया. कंपनी के मालिक खमीस अल-अजमी सेवानिवृत्त रॉयल ओमान वायु सेना अधिकारी और कतरी नागरिक थे, जिन्हें नवंबर 2022 में जमानत पर रिहा किया गया.
दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंचकर मीडिया से बातचीत में एक पूर्व नौसेना अधिकारी ने अपनी सुरक्षित वापसी का श्रेय मोदी को दिया. उन्होंने कहा, "मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि यह मुमकिन नहीं होता अगर उन्होंने हमारी रिहाई के लिए हस्तक्षेप नहीं किया होता.'' यह घटनाक्रम कतर के साथ भारत के रिश्तों के एक नए आयाम पर पहुंचने का प्रतीक भी है, जहां करीब 8,00,000 भारतीय प्रवासी बसे हुए हैं. मोदी का आभार जताना इस रिश्ते को और प्रगाढ़ ही करेगा.