इंडिया टुडे वुमन समिट : "समानता ही है बराबरी का दर्जा देने का रास्ता"

चेन्नई में 9 फरवरी को संपन्न इंडिया टुडे वुमन समिट में विभिन्न क्षेत्रों की नायिकाओं ने एक मंच पर आकर महिलाओं की सफलता का जश्न मनाने के साथ ही लैंगिक समानता और सशक्तिकरण पर मंथन किया

(बाएं से) राज चेंगप्पा, एडिटोरियल डायरेक्टर, इंडिया टुडे ग्रुप; निगार शाजी, परियोजना निदेशक, आदित्य एल1 सौर मिशन, इसरो; प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रह्मण्यम, निदेशक, (IIA)
(बाएं से) राज चेंगप्पा, एडिटोरियल डायरेक्टर, इंडिया टुडे ग्रुप; निगार शाजी, परियोजना निदेशक, आदित्य एल1 सौर मिशन, इसरो; प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रह्मण्यम, निदेशक, (IIA)

चेन्नई में 9 फरवरी को संपन्न इंडिया टुडे वुमन समिट-जेंडर इक्विटी में किसी ऐसे पुरुष के लिए जगह नहीं थी जो महिलाओं पर अपनी बिन मांगी सलाह थोपते हैं. यह एक ऐसा मंच था जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी महिलाओं के अपने मुकाम तक पहुंचने के दौरान आई चुनौतियों और अनुभवों को साझा किया गया.

बतौर दर्शक मौजूद युवाओं और खासकर महिलाओं ने कला क्षेत्र की दिग्गजों (कर्नाटक संगीत गायिका अरुणा साईराम, भरतनाट्यम नृत्यांगना नर्तकी नटराज और अभिनेत्री पूजा हेगड़े) के अलावा विज्ञान एवं चिकित्सा (भारत बायोटेक की सुचित्रा एला, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की निगार शाजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऐस्ट्रोफिजिक्स की निदेशक प्रो. अन्नपूर्णी सुबह्मण्यम और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति) और उद्योग क्षेत्र में अपना परचम लहराने वाली विभिन्न हस्तियों (अवतार ग्रुप की फाउंडर-प्रेसिडेंट सौंदर्या राजेश, नल्ली ग्रुप ऑफ कंपनीज की उपाध्यक्ष लावण्या नल्ली, एमजीएम हेल्थकेयर की निदेशक डॉ. उर्जिता राजगोपालन, ब्यूटी लेबल जूसी केमिस्ट्री की को-फाउंडर मेघा आशर और स्वीट करम कॉफी की को-फाउंडर नलिनी पार्थिबन) की जुबानी उनके अपने जीवन के अनुभवों को जाना.

(बाएं से) सौंदर्या राजेश, संस्थापक- अवतार ग्रुप; लावण्या नल्ली, उपाध्यक्ष, नल्ली ग्रुप; डॉ. उर्जिता राजगोपालन, निदेशक, एमजीएम

 इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा ने कहा कि भारत की प्रगति के लिए जरूरी है कि वह ''लैंगिक समानता मिटाने में अग्रणी'' बने और इसके लिए पांच क्षेत्रों पर खास ध्यान देने की जरूरत है—कार्यबल भागीदारी और वेतन समानता; शिक्षा और सशक्तीकरण; स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताएं दूर करना; कानूनी और सामाजिक अधिकार सुनिश्चित करना और नेतृत्व में प्रतिनिधित्व. 

विविधतापूर्ण संगठन के निर्माण पर सौंदर्या राजेश ने कहा, ''समानता ही बराबरी का दर्जा देने का रास्ता है.'' अध्ययन सौंदर्या राजेश के इस तर्क की पुष्टि करते हैं कि विविध कार्यबल वाले संगठन ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करते हैं. उनका कहना है कि 'सही मायने में बदलाव' तभी आता है ''जब आपके पास शीर्ष नेतृत्व पर महिलाएं हों.''

सुचित्रा एला सही मायने में महिलाओं की शक्ति से वाकिफ हैं. जब उनसे उन विशेष नेतृत्व गुणों के बारे में पूछा गया, जो प्रबंधन में महिलाओं की बदौलत आते हैं, और जिनमें पुरुषों का दखल नहीं होता तो एली ने लैगिंक-आलोचना की बात न करके कहा, ''मुझे लगता है कि महिलाएं स्वाभाविक तौर पर मल्टी-टास्कर होती हैं...यह गुण इस हद तक समाया होता है कि आप घर या दफ्तर की चिंता को लेकर विचलित नहीं होतीं.'' दो बच्चों की मां एला ने आगे विस्तार से बताया कि कैसे कामकाजी मांएं अक्सर दफ्तर में लंबे समय तक रहने पर अपराधबोध का अनुभव करती हैं. उन्होंने बताया कि कभी बच्चों को जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपने दफ्तर में ही कैसे उनका होमवर्क करवाया.

एला और अरुणा साईराम दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि पति का सहयोग बहुत ज्यादा मायने रखता है. साईराम तो इस मौके पर दर्शकों के बीच मौजूद अपने पति को धन्यवाद देना नहीं भूलीं, जिन्होंने मुंबई में अपनी नौकरी छोड़ दी और 2002 में चेन्नई जाकर बस गए ताकि उनकी पत्नी का म्यूजिक करियर फल-फूल सके. साईराम ने कहा, ''उन महिलाओं का ध्यान रखें जो आपके जीवन का हिस्सा हैं. हो सकता है, उनमें कोई खास गुण हो लेकिन विभिन्न कारणों या हिचक की वजह से वे कुछ न कह पा रही हों...देखिए वे कहां से कहां पहुंच जाएंगी.''

लेकिन हर किसी को अपने परिवार का समर्थन नहीं मिलता. नर्तकी नटराज के मामले में यही हुआ, 10 साल की उम्र में पता चला कि वे एक ट्रांसजेंडर हैं. नटराज ने बताया कि कैसे उन्हें अपने गांववालों के ताने और बहिष्कार झेलने पड़े. वे बताती हैं, ''मुझे कभी अपने घर का दरवाजा खोलने पर आजादी का सुखद एहसास नहीं हुआ. मुझे पता होता था कि मुझे झिझक और अपमान का सामना करना पड़ेगा.''

(बाएं से) नर्तकी नटराज, भरतनाट्यम नर्तकी और योजना आयोग की सदस्य, तमिलनाडु; अरुणा साईराम, कर्नाटक संगीत विशेषज्ञ और संगीतकार

बहरहाल, समय बीतने के साथ नटराज इस सबको अनदेखा करने की आदी हो गईं और समाज में अपने लिए सम्मान हासिल किया. वे कहती हैं, ''समाज ने हमारे लिए कभी कोई सम्मानजनक नाम नहीं गढ़ा. मैं समाज के लिए कोई दर्शनीय वस्तु नहीं हूं. मैंने हमेशा खुद को एक क्वीन (रानी) माना.'' नटराज ने 'थिरुनांगई' शब्द गढ़ा है, जिसका इस्तेमाल तमिलनाडु में इस समुदाय के सदस्यों के लिए किया जाता है.

नटराज की इस दृढ़ता को लावण्या नल्ली काफी सराहती हैं और कहती हैं महिलाओं के लिए किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह गुण बेहद जरूरी है. पारिवारिक व्यवसाय में कदम रखने के साथ लावण्या को भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. वे कहती हैं, ''मुझे काम करने दिया गया तो इसके पीछे मानसिकता यही थी कि शादी होने तक नौकरी कर लेने दो.'' अमेरिका में मैकेंजी के साथ काम करके अपनी साख बनाने के बाद नल्ली को लगा कि फिर अपनी कंपनी में लौटने पर उन्हें 'अधिक गंभीरता' से लिया गया. उन्होंने बताया कि विवाहित कामकाजी महिलाओं के लिए ''सपोर्ट सिस्टम'' इस वक्त की महती जरूरत है. 

मेघा आशर के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता और वित्तीय स्थिरता सबसे ज्यादा मायने रखती है. महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन पर एक सत्र में, उन्होंने सोशल मीडिया को उद्यमशीलता की भावना बढ़ाने में सबसे आगे बताया और कहा, ''यह असीमित संभावनाओं से भरा आकाश है.'' उनका मानना है कि महिलाओं को शहीद बनने की मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है. नलिनी पार्थिबन ने पाया कि स्वीट करम कॉफी के साथ एक डिजिटल-फर्स्ट ब्रांड चलाना संभव हो सकता है और साथ ही यह जाना कि नेटवर्किंग एक ब्रांड की प्रोफाइल को कैसे मजबूत कर सकती है. उनके मुताबिक, स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को लेकर जागरूकता और समर्थन में महिला उद्यमी पीछे नहीं हैं. वे कहती हैं, ''अगर कोई अन्य महिला सामने है तो उसके प्रति रवैया नरम होता है.'' उनकी सलाह है, ''हर दिन की असहजता को लेकर बेपरवाह रहें...समाधान खोजने वाले बनें, समस्या खोजने वाले नहीं.''

डेलॉइट की 2023 की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में कामकाजी महिलाओं में तनाव उच्च स्तर पर होता है. डॉ. प्रतिमा मूर्ति का कहना है कि सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के दबाव और कमतर आंके जाने की वजह से महिलाओं में अवसाद और चिंता जैसे सामान्य मानसिक विकार होने की संभावना अधिक होती है. मूर्ति के मुताबिक, ''अक्सर माहौल की बात की जाती है जिसका दायरा वास्तव में काफी बड़ा होता है, और यहीं पर हमें उन नीतियों, कार्यक्रमों पर ध्यान देने की जरूरत है जो वास्तव में महिलाओं को निष्पक्ष ढंग से और न्यायसंगत मौका मुहैया कराने में मददगार साबित हों.'' उन्होंने कहा कि महिलाएं काफी 'सहनशील'होती हैं, और इस वजह से ज्यादातर चीजों को खुद तक सीमित रखती हैं. यही वजह है कि उन्हें यह सिखाना जरूरी होता है कि वे अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें.

आदित्य एल-1 सौर मिशन की निदेशक रहीं निगार शाजी कहती हैं, आपको हर कदम पर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो आपको कमजोर साबित करने की कोशिश करेंगे. ''...अपनी योग्यता और अपने ज्ञान के बल पर उन्हें दिखा दीजिए कि आप भी सम्मान की हकदार हैं.'' प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रह्मण्यम ने कहा, विज्ञान के क्षेत्र में उन महिलाओं के लिए उच्च डिग्री हासिल करना और पब्लिकेशन में काम करना दोगुना कठिन है, जिनके पास अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में काफी कम समय होता है, क्योंकि उन्हें 'पारिवारिक जिम्मेदारियों' से भी जूझना पड़ता है. मातृत्व के बाद महिलाओं को फिर कार्यबल का हिस्सा बनाने के बारे में संगठनों को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. उन्हें महिलाओं को अपने बच्चे को कार्यालय लाने या फिर घर से काम करने की अनुमति देने पर सोचना चाहिए.

एक के बाद एक छह ब्लॉकबस्टर फिल्में देने वाली और तमिल, तेलुगु और हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सितारों के साथ काम कर चुकीं अभिनेत्री पूजा हेगड़े कहती हैं, महिलाओं के लिए और अधिक फिल्में लिखे जाने की जरूरत है. वे कहती हैं, ''जब तक आप ऐसी फिल्में नहीं बनाएंगे तब तक ऐसे दर्शक कहां से आएंगे?''

आयोजन के दौरान सिर्फ गंभीर बातें ही नहीं हुईं, बल्कि साईराम और नटराज ने साथ मिलकर 'कृष्णा नी बेगाने बारो' भजन गाया और दर्शकों को भक्तिमय माहौल में सराबोर कर दिया. लोगों ने उनके प्रदर्शन पर खड़े होकर तालियां बजाईं. हेगड़े ने एक बार नहीं बल्कि तीन बार अपने नृत्य कौशल से दर्शकों को 'अरेबिक कुथु' और 'बुट्टा बोम्मा' पर थिरकने को बाध्य कर दिया. कुल मिलाकर, आयोजन में नारी शक्ति का बोलबाला रहा.

Read more!