प्रधान संपादक की कलम से

कांग्रेस के लिए करिश्माई नरेंद्र मोदी और माहिर सियासतदां गृह मंत्री अमित शाह की अचूक जोड़ी की बराबरी कर पाना मुश्किल है

इंडिया टुडे कवर: हैट्रिक की ओर बढ़ते कदम
इंडिया टुडे कवर: हैट्रिक की ओर बढ़ते कदम

- अरुण पुरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देश के मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक पकड़ लाजवाब है. राष्ट्रीय मंच पर लंबा डग भरने के दशक भर बाद भी वे विराट व्यक्तित्व की तरह कदम बढ़ा रहे हैं. आम चुनाव से महज दो महीने पहले फरवरी, 2024 में जब प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति के बारे में पूछा गया तो 54.9 फीसद लोगों ने मोदी के नाम पर मोहर लगाई, जो अगस्त, 2023 में उन्हें मिले 52.3 फीसद से 2.6 फीसद अंक ज्यादा है.

यही नहीं, 60.5 फीसद लोग प्रधानमंत्री के रूप में उनके कामकाज को अच्छा या शानदार आंकते हैं. अगस्त के मुकाबले यह 2.2 फीसद अंकों की मामूली गिरावट है, लेकिन यह उनके दूसरे कार्यकाल का आखिरी साल है, किसी और चीज से ज्यादा यह आंतरिक शक्ति और उछाह का ऊंचा प्रतिमान है.

इंडिया टुडे-सीवोटर 'देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण' पिछले 20 साल से देश की राजनीति की टोह ले रहा है. जबसे मोदी 2014 की उस हैरतअंगेज जीत के साथ भाजपा को केंद्र की सत्ता में लाए, साल में दो बार होने वाले हमारे सर्वेक्षण में बतौर प्रधानमंत्री उनके कामकाज की स्वीकृति कभी 50 फीसद से नीचे नहीं गई. यह दुनिया के हर नेता के लिए रश्क की बात होगी.

यह दबदबा सर्वेक्षण के दूसरे अहम निष्कर्षों से और पुख्ता होता है. आज चुनाव हुए तो भाजपा अकेले 304 सीटें जीतेगी. यह 2019 की उसकी सीटों से एक ज्यादा है और अगस्त, 2023 के सर्वेक्षण के आंकड़े से 17 ज्यादा, जो स्पष्ट बहुमत की इत्तला देता है. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से उन्हें बढ़त मिल गई लगती है क्योंकि यह पार्टी के लंबे समय के सपने का पूरा होना है.

भाजपा की वोट हिस्सेदारी पिछले साल अगस्त के 37.7 फीसद से बढ़कर 39.6 फीसद हो गई है. बैटरी वैसे भी खत्म नहीं होने वाली थी, फिर भी उसे नए वोल्टेज की ऊर्जा मिल गई है. इन 2 फीसद अंकों के रीचार्ज का चौतरफा असर पड़ा. नतीजतन एनडीए की वोट हिस्सेदारी 44.4 फीसद हो गई और यह सत्तारूढ़ गठबंधन की झोली में कुल 335 सीटें डाल रही है, जो अगस्त की 42.6 फीसद वोट हिस्सेदारी और 306 सीटों से ज्यादा है.

राजनीति दरअसल शून्य के इधर से उधर जुड़ने का खेल है, जिसमें एक पक्ष को फायदा दूसरे की कीमत पर ही होता है. अगस्त, 2023 में 'इंडिया' गठबंधन को 193 सीटें मिल रही थीं, जो घटकर 166 पर आ गई हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के जाने से उसकी वोट हिस्सेदारी अच्छी-भली 41 फीसद से घटकर 38.3 फीसद पर आ गई है.

कांग्रेस के लिए करिश्माई नरेंद्र मोदी और माहिर सियासतदां गृह मंत्री अमित शाह की अचूक जोड़ी की बराबरी कर पाना मुश्किल है. गठबंधन की मुख्य पार्टी कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी 20.3 फीसद से घटकर 18.9 फीसद पर आती दिख रही है और उसकी सीटें भी 74 से घटकर 71 पर आ गई हैं. पार्टी का तंत्र अपने नेता राहुल गांधी की जिस निजी लोकप्रियता का ढिंढोरा पीटता है, वह इंडिया टुडे-सीवोटर के उत्तरदाता आधार में कोई अनुकूल तस्वीर नहीं उकेरती.

सिर्फ 13.8 फीसद उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए सबसे उपयुक्त मानते हैं. इससे मोदी और उनके बीच 41 फीसद अंकों का विशाल फासला है, यह अगस्त, 2023 में उन्हें मिले 15.8 फीसद से भी कम है. उनकी मौजूदा पूर्व से पश्चिम की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से भी उन्हें या उनकी पार्टी को कोई बढ़त मिलती नहीं दिखती. उनकी या उनकी पार्टी की तरफ से ऐसा कोई नैरेटिव भी नहीं जिसकी गूंज वोटरों में सुनाई देती हो.

इसके विपरीत, 68.7 फीसद का मानना है कि राम मंदिर हिंदू पुनरुत्थान का विराट प्रतीक है. यही नहीं, 42 फीसद का कहना है कि इसके निर्माण के लिए मोदी को याद किया जाएगा. जब उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछा गया, 20 फीसद ने अब भी कोविड से उनके निबटने पर सही का निशान लगाया.

मगर अयोध्या और काशी के गलियारे जैसी हिंदुत्व की आधारभूत घटनाओं का असर अगस्त, 2023 के 10.7 फीसद से छलांग लगाकर अब 16.9 फीसद पर पहुंच गया, जो साफ इशारा है कि उन्होंने हिंदू बहुसंख्या के मन का सही तार छेड़ा है. इसका असर कुछ और संबद्ध आंकड़ों पर पड़ा लगता है. योगी आदित्यनाथ को लगातार आठवीं बार देश के 30 मुख्यमंत्रियों में श्रेष्ठ आंका गया है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पक्ष में वोट देने वाले अखिल भारतीय स्तर पर लोगों की संख्या अगस्त के 43 फीसद से बढ़कर अब 46 फीसद पर पहुंच गई है. अगले लोकप्रिय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 19.6 फीसद वोट ही मिले. गृह-राज्य में लोकप्रियता के मामले में ओडिशा के अदम्य मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नंबर एक पर कायम हैं, हालांकि 61.3 फीसद से घटकर 52.7 फीसद पर आ गए हैं.

जहां 'राम रीचार्ज' से भाजपा को बढ़त मिली, आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का कामकाज मिला-जुला ही रहा. इसे 'शानदार या अच्छा' बताने वाले अब भी 49.7 फीसद हैं, जो इस बात का स्पष्ट अनुमोदन है कि मोदी ने कोविड महामारी के घातक असर को कितनी अच्छी तरह संभाला और अर्थव्यवस्था को ठोस बहाली की तरफ ले गए. बीते दो साल में करीब 7 फीसद की वृद्धि दर के साथ भारत को अब दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था आंका जा रहा है.

मगर देश का मिज़ाज सर्वेक्षण के नतीजे उन मुद्दों को भी सामने लाते हैं जो लोगों की चिंता का विषय बने हुए हैं. क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आर्थिक स्थिति में बदलाव आया? इस पर 32.6 फीसद का कहना है कि इसमें सुधार आया, जो छह माह पहले के मुकाबले तीन फीसद अंक बढ़े हैं. मगर स्थिति को जस का तस या और बदतर बताने वालों की संख्या 63.6 फीसद की ऊंचाई पर बनी हुई है.

घर-परिवार की आमदनी के बारे में एक और सवाल से इसकी तस्दीक होती है. सर्वेक्षण में सिर्फ 25.2 फीसद लोगों का मानना है कि उनकी आमदनी बढ़ेगी. अगस्त, 2023 के बाद तीन फीसद अंकों के सुधार के बाद भी 65.9 फीसद लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि यह जस की तस रहेगी या घटेगी. जिन लोगों का कहना है कि उनके लिए मौजूदा खर्चे पूरा कर पाना मुश्किल हो गया है.

उनकी तादाद 61.7 फीसद जितनी ज्यादा बनी हुई है. पूरे 71 फीसद लोग बेरोजगारी को बड़ी चिंता बताते हैं, तो 53.8 फीसद की राय में स्थिति 'बहुत गंभीर' है. मोदी के पक्ष में अहम बात यह है कि लोग भले ही ऐसी चिंताएं जाहिर करें, इसका असर उनके चुनावी आंकड़ों पर नहीं पड़ा. क्यों? क्योंकि अधिसंख्य का मानना है कि ऐसे मुद्दों के हल के लिए उनका सबसे अच्छा दांव वे ही हैं.

साफ है कि ब्रांड मोदी उस तरह वोटरों की थकान या ऊब का शिकार नहीं जिस तरह सियासी शख्सियतें अक्सर हुआ करती हैं. तुलना के लिए राजीव गांधी को लीजिए. चालीस साल पहले वे और भी बड़ी लहर—लोकसभा की 414 सीटों—पर सवार होकर आए थे.

मगर महज पांच साल में उसे गंवाकर 197 पर लुढ़क गए. मोदी उस दुनिया से आए नहीं लगते जहां राजनैतिक ब्रांड नाशवान होते हैं और नई पीढ़ियों तथा नए विचारों के आगे मिट जाते हैं. सत्ता में एक दशक रहने के बाद भी वे साफ तौर पर उस चोटी के नजदीक दिखाई दे रहे हैं जिसे उनसे पहले सिर्फ राजीव के नाना जवाहरलाल नेहरू फतह कर पाए थे—प्रधानमंत्री के पद पर पूर्ण बहुमत के साथ हैट्रिक.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

Read more!