पाकिस्तान में सत्ता के खिलाड़ी की वापसी

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और इमरान खान जेल में हैं, ऐसे में नवाज शरीफ के लिए देश की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए माकूल माहौल है

पाकिस्तान 21 अक्तूबर को वतन वापस लौटने के बाद बेटी मरियम नवाज के साथ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ लाहौर में एक रैली में हाथ हिलाते हुए
पाकिस्तान 21 अक्तूबर को वतन वापस लौटने के बाद बेटी मरियम नवाज के साथ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ लाहौर में एक रैली में हाथ हिलाते हुए

- हसन जैदी, कराची से

नवाज शरीफ 21 अक्तूबर को लाहौर स्थित ऐतिहासिक मीनार-ए-पाकिस्तान में अपनी पार्टी के शक्ति प्रदर्शन के दौरान जैसे ही ऊंचाई पर बने मंच पर पहुंचे, उनकी बेटी मरियम नवाज ने माइक पर कुरान की एक आयत पढ़ी. अरबी की इस आयत का आशय कुछ इस तरह था, ''बेशक, तू (अल्लाह) जिसे चाहे बुलंद कर सकता है और जिसे चाहे जलील कर सकता है.'' एक तथ्य यह भी है कि यह कुरान की वही आयत है जिसे फौज के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने 25 जुलाई, 2018 को चुनाव नतीजे आने के बाद ट्वीट किया था, लेकिन किसी ने ज्यादा गौर नहीं किया. नतीजे, शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के धूल चाटने और उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान खान की जीत की गवाही दे रहे थे. 

शरीफ तीसरी बार प्रधानमंत्री के पद से पहले ही बर्खास्तगी का सामना कर चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में उन्हें जीवनभर सार्वजनिक पद संभालने के अयोग्य घोषित कर दिया था. बाद में एक विशेष अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें 10 साल जेल की सजा सुनाई थी. शरीफ और उनकी पार्टी ने उस समय खुलकर आरोप लगाया था कि यह सब फौज के इशारे पर हो रहा है, न्यायपालिका पक्षपातपूर्ण तरीके से सियासी मामलों में दखल दे रही है और उसने ये फैसले दबाव में दिए हैं. बहरहाल, करीब चार साल बाद मीनार-ए-पाकिस्तान पहुंचने के लिए उन्होंने दुबई और इस्लामाबाद से यहां तक का सफर एक चार्टर्ड प्लेन से पूरा किया. उन्होंने एकदम चमत्कारिक ढंग से अपनी राजनैतिक किस्मत बदलने का संकेत देने के लिए तैयार इस सियासी मंच से हाथ हिलाकर अपने तमाम उत्साही समर्थकों का अभिवादन किया.

अधिकांश राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि शरीफ—जिन्हें 2019 में इलाज के लिए चार हफ्ते की विदेश यात्रा की अनुमति मिली और फिर भगोड़ा घोषित होने के बावजूद वे आराम में लंदन में बने रहे—का इस तरह स्वनिर्वासन से लौटना यह संकेत देता है कि संभवत: उन्हें सेना का वरदहस्त हासिल है. चार साल की जेल की सजा पूरी न करने वाले शरीफ को तकनीकी तौर पर दोषी होने के बावजूद पाकिस्तान लौटने पर गिरफ्तार नहीं किया गया, अपील के लिए अदालत में पेशी तक अग्रिम जमानत मिली और यहां तक कि लाहौर में सार्वजनिक सभा को संबोधित करने की भी अनुमति मिल गई. पीएमएल-एन ने किराए पर लिए गए हेलिकॉप्टरों के जरिये उस दिन शहर में गुलाब की पंखुड़ियां भी बरसाईं.

इमरान खान की सरकार के समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर शरीफ से जुड़ी खबरें दिखाना तक प्रतिबंधित था ''क्योंकि वे दोषी करार दिए गए थे.'' अब, स्थिति कुछ ऐसी है कि खुद को पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबारने वाला मसीहा करार दिए जा रहे रहे शरीफ का भाषण देशभर में टेलीविजन पर लाइव टेलीकास्ट हो रहा था. अगले ही दिन, कार्यवाहक पंजाब सरकार ने घोषणा की कि उसने भ्रष्टाचार के मामले में उनकी सजा के फैसले के खिलाफ उनकी अपील पर सुनवाई तक एकतरफा रोक लगा दी है. यह सब कुछ एकदम अप्रत्याशित है. इस पर पीएमएल-एन के दिग्गजों और समर्थकों का कहना है कि पाकिस्तान की मौजूदा राजनैतिक और आर्थिक स्थिति ही ऐसी है. देश में विलंबित आम चुनाव की तैयारियां चल रही हैं, जो संभवत: जनवरी के आखिर में या फरवरी के शुरू में होंगे—हालांकि संविधान के तहत अगस्त के शुरू में एसेंबली के भंग होने के 90 दिनों के अंदर ही चुनाव हो जाने चाहिए थे. इसके अलावा पाकिस्तान इस समय अब तक के सबसे गंभीर आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है.

पाकिस्तान के दिवालिया हो जाने का खतरा गहराता जा रहा है, सरकार कर्ज की अगली किस्त के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की कड़ी शर्तों को पूरा करने की कवायद में लगी है. विदेशी मुद्रा भंडार घट चुका है, जिससे आयातकों पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं. मुद्रास्फीति 40 फीसद से ऊपर पहुंच रही है और महंगाई के कारण जीना मुहाल होने से लोग सड़कों पर उतरकर आक्रोश जता रहे हैं. बिजली और गैस दरों और खाने-पीने की चीजों के दामों में बेतहाशा वृद्धि और रुपए की गिरती कीमत का मतलब है कि अधिकांश लोगों की बचत में भारी कमी आई है. गरीबी रेखा से नीचे वालों की संख्या भी नाटकीय ढंग से बहुत ज्यादा बढ़ गई है. अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनाव पूरी तरह से अर्थव्यवस्था पर ही केंद्रित होंगे. 

फील-गुड नैरेटिव

शरीफ मौजूदा हालात से वाकिफ हैं और शायद यही वजह है कि उनकी पार्टी तमाम समस्याओं से निजात दिलाने के दावे करने में जुटी है. हालांकि, उन्होंने देश को मौजूदा संकट से उबारने का कोई ठोस 'आर्थिक रोडमैप' सामने नहीं रखा है, जैसा लाहौर जलसे से पहले वादा किया गया था. सार्वजनिक सभा में शरीफ के भाषण का अधिकांश हिस्सा आम लोगों पर कमरतोड़ महंगाई की मार पर ही केंद्रित रहा. असल में, पीएमएल-एन नवाज शरीफ को एक ऐसे मसीहा के तौर पर पेश कर रही है जिसके पास पाकिस्तान को मौजूदा आर्थिक संकट से उबारने के लिए जादू की छड़ी है. जाहिर तौर पर यह एक फीलगुड नैरेटिव है, जो पूर्व में नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान के 'अच्छे दिनों' की याद दिलाता है. लेकिन, समस्या यह है कि शरीफ जिन बातों को अपनी सफलता के तौर पर गिना रहे हैं, मसलन, 2017 में डॉलर को कृत्रिम तौर पर 105 रुपए पर बनाए रखना जो अभी पीकेआर 280 प्रति डॉलर की स्थिति में पहुंच गया है, या फिर बिजली की बढ़ी मांग महंगे निजी बिजली संयंत्रों के माध्यम से पूरी करना—आदि मौजूदा हालात के लिए बहुत ज्यादा जिम्मेदार नहीं हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान का आर्थिक संकट लंबे समय से जारी है और यह शासन-व्यवस्था से जुड़ी खामियों का व्यापक नतीजा है और इसके लिए शरीफ की पिछली सरकारें ही अकेले जिम्मेदार नहीं थीं. पिछले पांच साल के कुप्रबंधन ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है. लेकिन यह भी एक सच है कि शरीफ के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, भले ही पीएमएल-एन ऐसी छवि गढ़ने की कोशिश में जुटी हो. लेकिन पीएमएल-एन को पूरा भरोसा है या फिर वह ऐसी उम्मीद कर रही है कि जनता सब कुछ भूल चुकी होगी. वैसे देखा भी यही गया है कि कैसे इमरान खान की सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा उनके सत्ता से हटते ही काफूर हो गया था. जैसे-जैसे पाकिस्तान पर संकट गहराते गए, जनता का आक्रोश शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार पर केंद्रित होने लगा.

यह भी एक कारण है कि चुनाव को इतना लंबा खींचा जा रहा है. पीएमएल-एन चाहती है कि उसके और शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के बीच जितना अधिक फासला रहे, उतना अच्छा है. असल में इमरान खान के हटते ही सत्ता संभालने वाली शहबाज शरीफ-नीत सरकार को निवर्तमान सरकार की करतूतों के बाद आइएमएफ कार्यक्रम को फिर से पटरी पर लाने के लिए कुछ अलोकप्रिय फैसले करने पड़े थे. पीएमएल-एन नेतृत्व बार-बार इस बात को दोहराता रहा है कि अप्रैल 2022 में जब पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की गठबंधन सरकार ने सत्ता संभाली तो उसके सामने दो ही विकल्प थे या तो पाकिस्तान को कंगाल होने से बचाए या फिर अपनी राजनीति को बचाए, और उसने खुद को कुर्बान करने का विकल्प चुना. अपनी राजनैतिक लोकप्रियता की कीमत पर उसने पाकिस्तान को बचाने का विकल्प चुना. भले ही यह दावा कितना भी सच क्यों न हो, अपने पेट और बैंक बैलेंस पर पड़ी मार झेल रही आम जनता के गले नहीं उतरता है.

कड़ी चुनौतियां

पिछले 40 साल से पाकिस्तान की राजनीति में सक्रिय नवाज शरीफ इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं. अब, यह देखना होगा कि क्या वे इस लोकप्रिय नैरेटिव को आने वाले चुनाव में भुना पाएंगे. हालांकि, उनकी राह में कई अन्य कड़ी चुनौतियां भी हैं. इसमें से पहली तो न्यायिक स्तर पर मिलने वाली चुनौती ही है. हालांकि उन्हें गिरफ्तारी से तो राहत मिल गई है लेकिन अपनी दोषसिद्धि को रद्द कराने के लिए अपील प्रक्रिया से गुजरना होगा. पाकिस्तान के पिछले चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल को लोग काफी हद तक इमरान खान समर्थक मानते थे और सितंबर में उनकी सेवानिवृत्ति ने शरीफ की राह कुछ आसान कर दी होगी. हालांकि, उच्च अदालतों में अभी भी ऐसे अनेक जज हैं जो कड़ा रुख अपनाकर शरीफ से सियासी सफर को फिर से पटरी पर लाने में बाधक बन सकते हैं.

अगर कायदे की बात करें तो 2017 में नवाज शरीफ को बतौर प्रधानमंत्री अयोग्य ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तमाम कानूनी विशेषज्ञों ने खासी आलोचना की थी, क्योंकि स्वाभाविक तौर पर इसमें कुछ खामियां हैं. हालांकि, इसे नवाज शरीफ के लिए एक झटका ही माना जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में आठ के मुकाबले सात सदस्यों की सहमति के मामूली अंतर के साथ सुनाए गए एक फैसले में स्वत: संज्ञान पर आधारित पुराने निर्णयों के खिलाफ अपील के अधिकार को खारिज कर दिया है, और शरीफ के खिलाफ फैसला इसी दायरे में आता है. दूसरी तरफ, पिछली संसद अपनी तरफ से कानून में संशोधन कर आजीवन अयोग्यता को संशोधित कर पांच साल तक सीमित करने का प्रावधान कर चुकी है और शरीफ यह समयावधि पहले ही पार कर चुके हैं. यह अलग बात है कि इस प्रावधान को भी भविष्य में अदालतों में चुनौती दी जा सकती है.

शरीफ को भ्रष्टाचार के मामले में सुनाई गई सजा को लेकर भी खासा विवाद रहा है. फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश को बाद में एक टेप में यह स्वीकार करते सुना गया था कि उन पर ऐसा करने का दबाव था. अब इसे लेकर अटकलों का दौर जारी है कि कथित भ्रष्टाचार के इस मामले, जिसे अल-अजीजिया स्टील मिल्स केस कहा जाता है, में आगे क्या होगा, क्या अपील के बाद फैसला पलट जाएगा.

दूसरी बात, नवाज शरीफ को अपनी ही पार्टी के भीतर असंतोष से भी निबटना होगा, जिसमें युवा पीढ़ी को कमान सौंपने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. बतौर उत्तराधिकारी शरीफ की पसंद उनकी बेटी मरियम नवाज हैं, लेकिन भाई शहबाज शरीफ और शहबाज के बेटे हमजा भी इस सत्तर वर्षीय नेता की जगह पार्टी की जिम्मेदारी संभालने की होड़ में शामिल हैं. हालांकि, परिवार पूरी तरह एकजुट होने का दावा करता है लेकिन इस तरह की खबरें आती रही हैं कि आंतरिक मतभेद गहराते जा रहे रहे हैं. और वंशवादी राजनीति के बीच रिश्तों में इस तरह की खटास दूसरे दर्जे के नेताओं में भी नजर आ रही है, जो शीर्ष पद हासिल करने को बेताब हैं.

जैसा, राजनैतिक विश्लेषक जैगम खान कहते हैं, पीएमएल-एन में नेतृत्व का पूरा दारोमदार तीन स्तरों पर केंद्रित है. इसमें सबसे पहले आते हैं परिवार के एकदम नजदीकी रिश्तेदार, जो सभी मुख्य पदों पर काबिज होने की मंशा रखते हैं. इसमें पूर्व वित्त मंत्री इसहाक डार भी शामिल हैं जिनके बेटे की शादी नवाज की छोटी बेटी के साथ हुई है; फिर दूसरा घेरा पंजाबी कश्मीरी खानदान का है जिसमें शरीफ का कुनबा आता है और तीसरे स्तर पर उनके गृहनगर लाहौर और पीएमएल-एन के गढ़ ग्रैंड ट्रंक रोड के आसपास के लोग शामिल हैं. इससे बाकी उन सभी लोगों में नाराजगी पनपती जा रही है जिनमें इस खानदान से परे अन्य प्रांतों के लोग और पार्टी से जुड़े युवा भी शामिल हैं. पाकिस्तान की बदलती जनसांख्यिकी में इस तरह का नेतृत्व ज्यादा समय तक टिका नहीं रह सकता और इमरान खान ने इसी का फायदा उठाया था. लेकिन क्या शरीफ इस समस्या को समझ पा रहे हैं या इसे दूर करने के लिए कुछ कर सकते हैं, यह सवालों के घेरे में है.

लेकिन अंतत:, सवाल यही है कि फौज का इरादा क्या है. भले ही फौज नवाज शरीफ के प्रति उदार नजर आ रही हो लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि वह उन्हें फिर से सत्ता के शीर्ष पर देखने की इच्छुक होगी. इसकी वजह सिर्फ यह नहीं है कि फौजी आकाओं के साथ शरीफ के रिश्ते कभी बहुत सहज नहीं रहे, बल्कि आमतौर पर धारणा यही है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री पद से उनकी बर्खास्तगी के पीछे फौज की ही भूमिका थी.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की रिपोर्ट तो यह तक बताती है कि कुछ माह पहले ही शरीफ को यह संदेश दिया जा चुका है कि खुद प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से दूर रहें, बेटी मरियम को भी दौड़ से बाहर रखें और भाई शहबाज शरीफ के लिए राह छोड़ दें, क्योंकि उनके साथ फौज अधिक सहज महसूस करती है. विश्लेषकों की राय है कि नवाज का मौजूदा रुख यह जरूर हो सकता है कि सैन्य प्रतिष्ठान पर समझौते के तहत मरियम को कम से कम पंजाब में मुख्यमंत्री बनाना मंजूर करने का दबाव डालें. ऐसे किसी समझौते के तहत नवाज शरीफ प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने से पीछे हट सकते हैं. ऐसे में पीएमएल-एन के मौजूदा नैरेटिव को स्पष्ट करना पार्टी के लिए थोड़ा मुश्किल होगा. वैसे, अभी यह सिर्फ अटकलबाजी ही है. संभव है कि इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) की बढ़ती लोकप्रियता दबाने को लेकर फौज की बेताबी के मद्देनजर नवाज शरीफ ने यह नैरेटिव खुद ही गढ़ा हो, क्योंकि इमरान के जेल में होने के बावजूद ऐसी आशंकाएं गहरा रही हैं कि खराब आर्थिक स्थिति को लेकर नाराजगी, खासकर पंजाब में और गहरा सकती है.

इमरान दरकिनार

अगर इमरान खान की बात करें तो वे अभी जेल में हैं और जल्द बाहर आने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. उन्हें एक कोर्ट ने भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया है और जब तक अपील के आधार पर यह फैसला पलटता नहीं है, तब तक वह पांच साल कोई चुनाव लड़ने के अयोग्य ही रहेंगे. यही नहीं, प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उन्हें इससे कहीं अधिक गंभीर सरकारी गोपनीयता कानून से जुड़े मामले में भी दोषी करार दिया गया है, जो कथित तौर पर गोपनीय और एन्क्रिप्टेड राजनयिक केबल 'साइफर' नाम से जाना जाता है. उन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पूरी तरह ब्लैक आउट किया जा चुका है और उनकी पार्टी भी काफी हद तक बिखर चुकी है. इसके अधिकांश शीर्ष नेता हिरासत में हैं या फिर छिपकर रहने को मजबूर हैं अथवा कथित तौर पर फौज के दबाव में पाला बदल चुके हैं या राजनीति ही छोड़ चुके हैं. कुछ लोग टेलीविजन पर इमरान के प्रति अपना समर्थन दोहराते नजर आए और कैडर को गुमराह करने का आरोप लगाया. पार्टी के वरिष्ठ उप नेता और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को भी इमरान खान के साथ साइफर केस में दोषी ठहराया गया है.

इमरान खान गोपनीयता कानून से जुड़े मामले में दोषी पाए गए हैं

इमरान खान को सबसे बड़ा झटका 9 और 10 मई की घटनाओं से लगा, जब पार्टी की तरफ से सरकारी, खासकर फौज के प्रतीकों पर हमले की कोशिश हुई थी. इमरान समर्थक भीड़ के हिंसा पर उतारू होने की ये घटनाएं पीटीआइ के लिए मुसीबत का सबब बन गईं, जिन्हें लेकर इस तरह के पक्के सबूत मिल रहे हैं कि ये सुनियोजित थीं. बताया जा रहा है कि नए सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का स्पष्ट तौर पर यही मानना है कि यह सब फौज के खिलाफ बगावत भड़काने के लिए किया गया था. बहरहाल, शुरू में अफरा-तफरी की कुछ स्थिति नजर आने के बाद उन्होंने फौज पर पूरी तरह अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है. इसी का नतीजा है कि कुछ ऐसे वरिष्ठ अफसरों को हटा दिया गया है, जिनकी निष्ठा पर संदेह था, साथ ही पीटीआइ पर भी सख्त कार्रवाई की गई है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने हाल में कथित तौर पर फौज को निशाना बनाने में शामिल लोगों पर सैन्य मुकदमों को असंवैधानिक घोषित किया है, जिससे उन पर अब नागरिक अदालतों में मुकदमे चलेंगे. लेकिन फौज ऐसे अपराधियों के प्रति किसी तरह की नरमी बरतने को तैयार नजर नहीं आ रही है. लाहौर में आधिकारिक अनुमति से आयोजित पीएमएल-एन जलसे में हजारों की संख्या में लोग जुटे लेकिन उसके एक दिन बाद ही करीब 200 लोगों की मौजूदगी में एक छोटे से विरोध प्रदर्शन के दौरान पीटीआइ को खासी सख्ती का सामना करना पड़ा. ऐसे में इस पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बचती, आखिर सब कुछ किसके इशारे पर चल रहा है. अब नवाज शरीफ की बात पर आएं तो क्या फौज की मर्जी के बिना उनके लिए अपना रास्ता बनाना मुमकिन है? वैसे, पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो तो एक बार अपनी स्थिति मजबूत होने पर 2007 के चुनावों तक वापस न लौटने के लिए पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ किए गए समझौते से पीछे हट गई थीं. अब, अगले तीन महीने में यह साफ हो जाएगा कि क्या शरीफ उतनी ही सियासी चतुराई के साथ ऐसी कोई धृष्टता करने का साहस जुटा पाएंगे.

पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल आसिम मुनीर

नवाज शरीफ के खिलाफ मुकदमे

तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के कई मामलों से घिरे हैं. जनवरी में होने वाला आम चुनाव लड़ने के लिए उन्हें उन मामलों के खिलाफ अपील पर अनुकूल नतीजे हासिल करने होंगे जिनमें उन्हें दोषी ठहराया गया है

पनामा पेपर्स: पनामा पेपर्स लीक से पता चला कि शरीफ के बच्चे—बेटी मरियम और बेटे हसन व हुसैन—विदेशों में कंपनियों के मालिक हैं जिनका उनकी संपत्ति के विवरणों में जिक्र नहीं है, और जिनका इस्तेमाल उन्होंने कथित तौर पर महंगी संपत्तियां हासिल करने के लिए किया. जांचकर्ताओं ने कहा कि ये कंपनियां धन शोधन और कर चोरी के लिए बनाई गई थीं. शुरुआत में हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया था, पर फिर विपक्ष के नेताओं ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने फैसला सुनाया कि शरीफ प्रधानमंत्री बने रहे सकते हैं, पर आरोपों की जांच संयुक्त जांच दल से करवानी चाहिए. शरीफ के खिलाफ पनामा पेपर्स से जुड़े दो मुख्य—एवनफील्ड अपार्टमेंट और अल अजीजिया स्टील कंपनी—मामलों की जांच जवाबदेही अदालत को भेजी गई थी.

तनख्वाह का खुलासा न करना: शरीफ को पद के अयोग्य ठहराने के पीछे—जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था—सुप्रीम कोर्ट ने वजह यह बताई थी कि उन्होंने कथित तौर पर इस तथ्य का खुलासा नहीं किया कि 2006 से 2014 के बीच दुबई स्थित एक कंपनी के चेयरमैन के तौर पर वे 10,000 दिरहम कमा रहे थे.

एवनफील्ड अपार्टमेंट मामला: आरोप लगाया गया कि शरीफ के बच्चों ने लंदन में महंगे अपार्टमेंट खरीदने के लिए वर्जिन आइलैंड्स स्थित फर्मों के जरिये शोधित धन का इस्तेमाल किया. शरीफ ने कहा कि उन्होंने यूएई में स्टील फर्म की बिक्री से प्राप्त रकम से इनकी खरीद की थी. मगर जुलाई, 2018 में अदालत ने शरीफ को 10 साल की कैद, और मरियम व उनके शौहर को क्रमश: सात और एक साल कैद की सजा सुनाई. सितंबर 2018 में शरीफ को अपील लंबित रहने के कारण राहत मिल गई जब इस्लामाबाद हाइकोर्ट ने उनकी रिहाई का आदेश दिया. 

अल अजीजिया मामला: जवाबदेही अदालत ने फैसले में कहा कि शरीफ संतोषजनक ढंग से यह नहीं बता सके कि उन्होंने सऊदी अरब में अल अजीजिया स्टील मिल्स ऐंड हिल मेटल एस्टैब्लिंशमेंट की स्थापना कैसे की. इस मामले में उन्हें सात साल की कैद की सजा सुनाई गई. सजा काटते हुए वे बीमार पड़ गए, जिससे चिकित्सा आधार पर सजा आठ हक्रते निलंबित कर दी गई. फिर इलाज के लिए वे यूके चले गए. 2020 में उन्हें दोनों मामलों में 'भगोड़ा अपराधी' घोषित कर दिया गया.

अन्य मामले: अवैध भूखंड आवंटन मामले में शरीफ पर आरोप है कि उन्होंने अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए लोगों को भूखंड आवंटित किए और नियमों को तोड़कर लाहौर में अपने मकान तक सड़क बनवाई. अवैध शेयर हस्तांतरण मामले में उनके ऊपर परिवार की मिल्कियत वाली चौधरी शुगर मिल्स के शेयर गैर कानूनी रूप से स्थानांतरित करने का आरोप है. तोशखाना मामले में—जो उस मामले से मिलता-जुलता है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को दोषी ठहराया गया—शरीफ ने कथित तौर पर नियमों का उल्लंघन करके राष्ट्रीय खजाने से लग्जरी कारें हासिल कीं. 2020 में अदालत ने इस मामले में गैरजमानती वारंट जारी किया और उन्हें भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया.

Read more!