'लाइसेंस-परमिट राज' की वापसी से क्या अब लैपटॉप-फोन महंगे होने वाले हैं?

सरकार की मंशा देश में आईटी हार्डवेयर की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर वगैरह के आयात पर बंदिशें थोपने की, मगर जानकारों के मुताबिक, यह तो है लाइसेंस-परमिट राज की वापसी

दिल्ली के जनकपुरी में रिलायंस डिजिटल स्टोर में रखे लैपटॉप
दिल्ली के जनकपुरी में रिलायंस डिजिटल स्टोर में रखे लैपटॉप

उद्योग हलकों में केंद्र सरकार के लैपटॉप और कंप्यूटरों के आयात पर बंदिश लगाने के फैसले पर काफी शोरगुल मचा हुआ है. 1 नवंबर से लागू होने वाले आयातकों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता के पक्ष में सरकार की दलील है कि इससे लैपटॉप-कंप्यूटर के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन फिक्र यह है कि इससे तीन दशकों के उदारीकरण के फायदों की अनदेखी हो जाएगी.

कुछ जानकारों की राय में यह 'लाइसेंस-परमिट’ राज की वापसी है. उनका मानना है कि शायद बड़े पैमाने पर दूसरे उत्पादों के आयात पर भी बंदिशें जड़ दी जाएं. इसे वे 'संरक्षणवादी' रवैया कहते हैं, जो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 3 अगस्त को सात वस्तुओं के आयात पर बंदिशें लगा दीं. इनमें लैपटॉप-पीसी और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल हैं.

हालांकि एक दिन बाद डीजीएफटी ने बंदिशों पर अमल 31 अक्टूबर तक टाल दिया. इसके तहत सिर्फ पूंजीगत सामान के अभिन्न अंग लैपटॉप, ऑल-इन-वन पीसी, कंप्यूटर के अति लघु उपकरण और सर्वर को आयात लाइसेंस से छूट दी गई. एक खेप में ऐसे 20 वस्तुओं को लाइसेंस की जरूरत नहीं है, बशर्ते उनका इस्तेमाल आरऐंडडी, टेस्टिंग, बेंच-मार्किंग, इवेल्युएशन, मरम्मत तथा दोबारा निर्यात, और प्रोडक्ट विकास के लिए किया जाए.

बढ़ते डिजिटाइजेशन की वजह से देश में कंप्यूटर और लैपटॉप में बेहिसाब बढ़ोतरी हो गई है. पिछले दशक में इस क्षेत्र में सालाना आयात 1.5 अरब डॉलर (12,392 करोड़ रु.) से उछलकर 5.3 अरब डॉलर (43,784 करोड़ रु.) हो गया. आयात 2021-22 में 7.4 अरब डॉलर (61,132 करोड़ रु.) था. इस क्षेत्र में 70-80 फीसद आयात चीन से है. एक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के मुताबिक, चीन से भारत का आयात अधिकतर तीन मुख्य प्रोडक्ट श्रेणी इलेक्ट्रॉनिक, मशीनरी, और ऑर्गेनिक केमिकल्स की मद में होता है. उसके मुताबिक, भारत को चीन से खासकर रोजमर्रा की चीजों और औद्योगिक उत्पाद की मद में आयात की जरूरत है. औद्योगिक उत्पाद की मद में मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंपोनेंट, सौर सेल माड्यूल्स वगैरह हैं.

बढ़ती आयात निर्भरता

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना-प्रौद्योगिक मंत्रायल ने 29 मई को गजट अधिसूचना में कहा था कि इधर कुछ वर्षों से ''देश में आईटी हार्डवेयर उत्पादन की क्षमता और दायरा तेजी से घटा है और कई इकाइयां काम बंद कर चुकी हैं या कम पैमाने पर काम कर रही हैं.’’ फिलहाल देश में लैपटॉप और टैबलेट की मांग मोटे तौर पर आयात से ही पूरी होती है. उसमें कहा गया कि स्थापित औद्योगिक क्षमता इस्तेमाल न किए गए पके फल की तरह हैं जिनसे देश में फौरन उत्पादन में तेजी लाई जा सकती है.

देश में डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. यहां करीब 1.17 अरब मोबाइल और 83.68 करोड़ इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले हैं. मंत्रालय के मुताबिक, इंटरनेट की बढ़ती पहुंच, और डिजिटल डेटा लेनदेन, पब्लिक क्लाउड सेवाओं, आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) उपकरणों में बढ़ोतरी, तथा डेटा स्थानीकरण पर सरकार के जोर से देश में डेटा सेंटर स्थापित करने के लिए स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों में होड़ मचेगी और देश में मांग तेजी से बढ़ेगी.

जिन सात श्रेणियों के आयात में बंदिश की बात है, उनमें ज्यादातर का वास्ता चीन से है. 2022-23 में 5.34 अरब डॉलर (44,125 करोड़ रु.) मूल्य के पर्सनल कंप्यूटर और लैपटॉप, 4.1 अरब डॉलर (33,879 करोड़ रु.) के अन्य सामान का का कुल आयात  चीन से हुआ. इंडिया ब्रीफिंग की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल-मई 2023 के दौरान भारत का इन प्रतिबंधित श्रेणियों में चीन से आयात 74.35 करोड़ डॉलर (6,143 करोड़ रु.) का हुआ था, जो पिछले साल में इसी समय के 78.78 करोड़ डॉलर (6,508 करोड़ रु.) से 5.6 फीसद से कम था. इन श्रेणियों में सबसे ज्यादा आयात लैपटॉप और पामटॉप समेत पर्सनल कंप्यूटर का हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल-मई 2023 में चीन से आयात 55.83 करोड़ डॉलर (4,613 करोड़ रु.) का हुआ, जबकि पिछले साल इसी समय में 61.82 करोड़ डॉलर (5,107 करोड़ रु.) का हुआ था.

आयात पर प्रतिबंध से एक उम्मीद घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की है. सरकार पहले ही आईटी हार्डवेयर क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का ऐलान कर चुकी है, जिसके तहत बढ़ते उत्पादन पर चार फीसद विशेष लाभ की पेशकश की गई है. मई में इस योजना का बजट 17,000 करोड़ रु. कर दिया गया, जो 2021 के शुरुआती आवंटन के दोगुने से ज्यादा है. योजना का मकसद आयात पर निर्भरता घटाना है.

आईटी पीएलआई योजना 2.0 में लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पीसी, सर्वर, और अति लघु उपकरणों को शामिल कर लिया गया. रिपोर्टों के मुताबिक, इस योजना पर अमल की छह साल की अवधि में बढ़ते उत्पादन की मद में 40.48 अरब डॉलर (3.3 लाख करोड़ रु.), बढ़ते निवेश की मद में 29.36 करोड़ डॉलर (2,426 करोड़ रु.) और 75,000 रोजगार के सृजन की उम्मीद है. केंद्र के मुताबिक, उसे आईटी हार्डवेयर के लिए संशोधित पीएलआई योजना के तहत 31 अगस्त तक 38 आवेदन मिले हैं.

'संरक्षणवादी पहल’

केंद्र अपने आयात प्रतिबंध को जितना जायज ठहराना चाहता है, उसी पैमाने पर जानकारों का कहना है कि यह उलटा पड़ेगा. अर्थशास्त्री अजित रानाडे ने एक अखबार में हालिया लेख में लिखा, ''लैपटॉप, कंप्यूटर और टैबलेट के आयात पर अचानक लाइसेंस थोपने की पहल समझ से बाहर है. यह सुधारों को उलटने जैसा है, जिसके फायदे सबने तीन दशकों तक चखे हैं." 1991 के बाद लाइसेंस मुक्त करने से विभिन्न क्षेत्रों ऑटोमोबाइल, पेट्रो-केमिकल्स, फार्मास्यूटिकल, स्टील और धातु से लेकर टेलीकॉम उपकरणों के क्षेत्रों में शानदार वृद्धि दिखी. कुल मिलाकर, आयात पर लाइसेंस जड़ने की पहल डब्ल्यूटीओ के सिद्धांतों के विपरीत है और इससे व्यापार साझेदारों से जैसे को तैसी कार्रवाई और दंडात्मक उपायों को बुलावा देना होगा.

इससे इन हार्डवेयर की सप्लाइ में भी रुकावट पैदा हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं. लिहाजा, उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ेगी. रानाडे की दलील है, ''यह विशुद्ध संरक्षणवादी रवैया है और यह कीमतों को बढ़ावा देगा और गुणवत्ता में कमी लाएगा. साथ ही, अगर हमें कोविड के बाद शिक्षा के क्षेत्र में पैदा हुई खाई को पाटना है तो यह जरूरी है कि नवीनतम उत्पादों की उपलब्धता बेरोकटोक और फौरन हो. फिर, लाइसेंस राज से रातोरात निवेश नहीं आ जाएगा. चीन के मार्के को बदल पाना मुश्किल होगा, क्योंकि आज मूल्य शृंखला में छोटे-मोटे बदलाव के साथ उत्पाद उतारे जा सकते हैं.’’

दूसरों का कहना है कि इसे जुलाई में चावल और जुलाई 2020 में प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध से मिलाकर देखना चाहिए. सरकार ने 20 जुलाई को बढ़ती घरेलू कीमतों पर काबू पाने के लिए गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर विश्व बाजार को चौंका दिया था. पिछले साल टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा था. प्रतिबंध से हजारों टन गैर-बासमती सफेद चावल बंदरगाहों पर फंस गया था और व्यापारी अधर में रह गए थे. सितंबर 2020 में सरकार ने किल्लत की आशंका में सभी किस्म के प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि अप्रैल-जुलाई की अवधि में निर्यात 30 फीसद तक बढ़ गया था. हालांकि उस साल नई फसल आने के बाद घरेलू बाजार में प्याज की कीमतें घटीं तो अक्टूबर में प्रतिबंध को आंशिक तौर पर और अगली जनवरी में पूरी तरह हटा लिया गया था. बाद में अमेरिका और जापान ने इस मुद्दे को डब्ल्यूटीओ की बैठकों में उठाया था.

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ''आयात लाइसेंस थोपने का फैसला ऊटपटांग था और दुनिया में उसका अच्छा संकेत नहीं गया." एकमात्र राहत यह लगती है कि यह पूरी तरह प्रतिबंध नहीं है, बल्कि आईटी हार्डवेयर के आयात की जानकारी लेने और उस पर काबू पाने की पहल है. उनके मुताबिक, लगता है कि यह पहल पीएलआई योजना का ज्यादा लक्ष्य हासिल करने की मंशा से की गई है.

सबनवीस कहते हैं, ''भारत में एक पीएलआई योजना काफी सफलता के साथ जारी है. इलेक्ट्रॉनिक्स यानी कंप्यूटर और मोबाइल फोन के मामले में हम चीन से काफी आयात कर रहे हैं, फिर उसकी प्रोसेसिंग करके निर्यात कर रहे हैं. (लाइसेंस थोपने की) ताजा पहल से अधिकारियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि उत्पादों का मूल्य वर्द्धन कितना होता है." दूसरी मंशा चीन को भारत में सामान डंप करने से रोकने की लगती है. आत्मनिर्भर योजना के तहत, हम सभी कुछ का उत्पादन खुद करना चाहते हैं. हालांकि, उनके मुताबिक इसका दूसरा पहलू यह है कि आईटी हार्डवेयर की कीमतों में इजाफे की संभावना है.

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पीएलआई योजना पर सरकार की तीखी आलोचना करते हैं. उनकी दलील है कि कई कंपनियों को पीएलआई सब्सिडी ''सिर्फ देश में फोन की फिनिशिंग के लिए दिया जाता है, इसलिए नहीं कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग से कितना मूल्य वर्धन होता है." भारत में मूल रूप से मोबाइल फोन को असेंबल किया जा रहा है, लेकिन उनके अधिकतर उपकरण आयात किए जाते हैं. हालांकि नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार जैसे दूसरे लोग इस दलील का खंडन करते हैं. उनका कहना है कि पहले मूल्य वर्धन पर ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार के प्रवाह के साथ उसी पैमाने पर जुड़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि वह हासिल कर लेने के बाद उपकरणों का उत्पादन भी शुरू हो जाएगा.

बढ़ता शुल्क

भारत पिछले कई साल से आयात शुल्क बढ़ा रहा है. खबरों के मुताबिक, डब्ल्यूटीओ ने 2021 के लिए भारत की व्यापार नीति की अपनी समीक्षा में बताया था कि 2015 की पूर्ववर्ती समीक्षा के बाद का साधारण औसत शुल्क 13 फीसद से 15.4 फीसद तक बढ़ गया है. 2020-21 के कुल व्यापार में 10 फीसद से कम शुल्क वाले सामान की हिस्सेदारी 67.8 फीसद तक गिर गई. इसके मुकाबले 10 से 30 फीसद शुल्क वाले सामान की हिस्सेदारी 2015 में 12.1 फीसद से बढ़कर 2020-21 में 22.1 फीसद हो गई. खबरें यह भी बताती हैं कि भारत ने 2014 के बाद से करीब 3,200 शुल्क बढ़ोतरी की है.

अक्टूबर 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन-पत्र में अर्थशास्त्री सौमित्र चटर्जी और अरविंद पानगड़िया ने कहा था, ''पिछले कुछ साल में भारत अपनी ओर मुड़ गया है. नीतियां गैर-वैश्विक दुनिया में आयात की भरपाई वाली विकास रणनीतियों की ओर रुख कर रही हैं. 2017 से तकरीबन 5 फीसद औसत शुल्क वृद्धि करके आयात की भरपाई के मकसद हासिल किए जा रहे हैं."

केंद्र ने अपने आयात लाइसेंस की पहल को जायज ठहराने के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत की दलील दी है. केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर लिखा, ''सरकार का मकसद भरोसेमंद हार्डवेयर और सिस्टम, आयात निर्भरता घटाना और इस क्षेत्र के उत्पादों का घरेलू उत्पादन बढ़ाना है. यह 'लाइसेंस राज' के लिए कतई नहीं है... यह आयात को नियंत्रित करने के लिए है, ताकि भारत का टेक क्षेत्र सिर्फ भारोसेमंद और प्रमाणित सिस्टम का ही इस्तेमाल करे, चाहे वह आयातित हो और/या देश में उत्पादित भरोसेमंद सिस्टम."

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (एमएआईटी) ने नई आयात पाबंदियों पर अमल को नौ महीने से साल भर तक टालने की सिफारिश की है. एमएआईटी में डेल, एचपी, एपल, लेनोवो और एएसयूएस जैसे प्रमुख लैपटॉप और कंप्यूटर कंपनियां हैं. एचपी इंक की भारत के पीसी बाजार में 34 फीसद हिस्सेदारी है, और उसके बाद लेनोवो (16 फीसद) और डेल टेक्नोलॉजीज (14 फीसद) का नंबर है.

एमएआईटी के प्रेसिडेंट एमिरेटस तथा इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट फाउंडेशन के डायरेक्टर नितिन कुनकोलियंकर ने कहा है कि सरकार देश में पीएलआई योजना को सफल देखना चाहती है, तो उसे मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर ढंग से प्रोत्साहन देना होगा. उन्होंने कहा, ''देश में सबसे बड़ी चुनौती लॉजिस्टिक और सप्लाई साइड शृंखला में मामूली मैन्युफैक्चरिंग है, वह भरोसेमंद नहीं है. फिलहाल बंदरगाह उतने माकूल नहीं हैं. इसके ऊपर अगर आयात लाइसेंस का मुलम्मा और चढ़ा दिया गया तो हम उसे और मुश्किल ही बना रहे हैं." उनके मुताबिक, लाइसेंस में लालफीताशाही को झेलना पड़ेगा और कीमतें बढेंगी.

आयात लाइसेंस के कदम से उद्योग हैरान है. उत्पादकों को सही परिवेश मुहैया कराए बिना अच्छे उत्पाद तैयार करने की उम्मीद ठीक नहीं है. उन्हें देशी उत्पादन की ओर बढ़ने के लिए यकीनन कुछ वक्त चाहिए. इससे भी बढ़कर इस पूरी प्रक्रिया में यह ध्यान में रखना चाहिए कि उपभोक्ता को वाजिब कीमत में बेहतर प्रोडक्ट मिले.

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