क्या है थिएटर कमान, जिससे भारतीय सेना की ताकत बढ़ने वाली है

भारत अपने अब तक के सबसे अहम सैन्य सुधार की दहलीज पर है, जहां वह संसाधनों के बेहतरीन से बेहतरीन इस्तेमाल, एकजुटता और कामकाज की दक्षता के लिए अपने सशस्त्र बलों के थिएटर बनाने की तरफ बढ़ रहा है

बाएं से, सीडीएस जनरल अनिल चौहान, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी.आर. चौधरी, थल सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे और नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार
बाएं से, सीडीएस जनरल अनिल चौहान, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी.आर. चौधरी, थल सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे और नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार

भारतीय सशस्त्र बलों के थिएटरों का निर्माण. 'एक सरहद, एक बल' के सिद्धांत पर आधारित इस कवायद में सेना, नौसेना और वायु सेना की इकाइयों को निश्चित भौगोलिक क्षेत्रों, यानी थिएटरों, में एक कमांडर के तहत एकीकृत कर दिया जाएगा. लॉजिस्टिक्स, ट्रेनिंग और सहायक सेवाएं इस एक इकाई में गूंथ दी जाएंगी, ताकि सैन्य संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल हो सके, कामकाज में दक्षता आ सके, और कार्रवाइयों में 'जॉइंटनेस' या एकजुटता हासिल हो सके.

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) यानी रक्षा प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने इसकी शुरुआत की थी. मगर उनकी असमय मृत्यु और अलग-अलग सेनाओं की तरफ से विरोध के चलते इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. मौजूदा सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने इसे नया जोश और रफ्तार दी है.फिलहाल तीनों सेनाएं 17 स्वतंत्र कमान के साथ काम करती हैं. सेना और वायु सेना की सात-सात कमान हैं और नौ सेना की तीन.

भारत ने 2001 में पोर्ट ब्लेयर स्थित अंडमान और निकोबार कमान के साथ एकीकृत कमान बनाई थी. स्ट्रैटजिक फोर्सेज कमान या रणनीतिक बल कमान भी त्रि-सेना कमान के रूप में काम करती है, जिसके हाथ में देश के परमाणु बलों का दारोमदार है. थिएटर कमान की सिफारिश 2000 में करगिल समीक्षा समिति ने तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए की थी. जनरल रावत की 2020 की मूल योजना के मुताबिक पांच थिएटर कमान बनाई जानी थीं—पूर्वी, पश्चिमी, प्रायद्वीपीय, समुद्री और वायु रक्षा कमान. दो क्रियाशील कमान—संयुक्त प्रशिक्षण कमान और ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स कमान—की भी योजना थी. मगर अब भारतीय सैन्य बलों को तीन एकीकृत थिएटर कमान में पुनर्गठित किया जाएगा. दो जमीन आधारित कमान होंगी—एक का ध्यान पाकिस्तान पर, दूसरी का चीन पर होगा—और तीसरी समुद्री कमान होगी, जो हिंद महासागर क्षेत्र की देखरेख करेगी. 

सीडीएस चौहान ने सैन्य बलों के थिएटर बनाने को सबसे महत्वाकांक्षी, 'बुनियादी' और अहम सैन्य सुधार बताया है, जिसके दूरगामी निहितार्थ होंगे. लोकसभा ने 4 अगस्त को अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक 2023 पारित कर दिया, जो केंद्र को तीन थिएटर कमान बनाने का अधिकार देता है. इस विधेयक को राज्यसभा ने 8 अगस्त को पारित कर दिया. साउथ ब्लॉक के एक बड़े अफसर के मुताबिक अब रक्षा मंत्री के दफ्तर की शुरुआती मंजूरी हासिल करने की कोशिशें की जा रही हैं, जिसके बाद ही प्रधानमंत्री ऐलान करेंगे. वे कहते हैं, ''इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ मुख्यालय में इस प्रस्ताव को अंतिम रूप देने की संजीदा कोशिशें की जा रही हैं.''

  • थिएटर कमान क्यों?


साल 1971 में भारत ने आखिरी पारंपरिक जंग लड़ी थी और उसके बाद टेक्नोलॉजी, थिएटर पैटर्न और युद्ध लड़ने के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आ चुका है. मुख्य खतरा अब ज्यादा बड़े दुश्मन चीन से है, जो पाकिस्तान के साथ सांठ-गांठ करके काम करता है. लिहाजा दो मोर्चों पर जंग की सुदूर संभावना भारत के सामने मौजूद है. ज्यादा सामान्य रूप से कहें, तो आला टेक्नोलॉजी के साथ कई क्षेत्रों में लड़ी जा रही जंग, जिसमें दुश्मन परमाणु हथियारों से लैस हों, तुरत-फुरत और गतिशील जवाबी कार्रवाई की मांग करती है.

सभी सैन्य और गैर-सैन्य शाखाओं में युद्ध के तीव्रतर होने के क्रम के फुर्तीले प्रबंधन के लिए थिएटर कमान की जरूरत होती है, यानी एक ही आधिकारिक सत्ता हो जो उसी वक्त तत्काल सेनाओं के बीच तालमेल बिठा सके. एकीकृत थिएटर कमान यही क्षमता प्रदान करेंगी. इसी तरह एकीकृत थिएटर कमान योजना में सियाचिन ग्लैशियर में सालतोरो रिज पर इंदिरा कोल से गुजरात तक फैली पाकिस्तान केंद्रित पश्चिमी थिएटर कमान की परिकल्पना की गई. इसका मुख्यालय जयपुर में होने की उम्मीद है. इसी तरह लद्दाख की पर्वतमालाओं से अरुणाचल प्रदेश में किबिथू तक पूरी 3,488 किमी लंबी नियंत्रण रेखा को शामिल करते हुए चीन केंद्रित उत्तरी थिएटर कमान बनाई जाएगी. इसका मुख्यालय लखनऊ में होने की उम्मीद है. समुद्री थिएटर कमान कर्नाटक के कारवार में स्थित होगी.

अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस सहित बड़ी सैन्य शक्तियों के सशस्त्र बल थिएटर कमान के अधीन काम करते हैं. भारत की योजना अमेरिका या चीन की तर्ज पर ही है. मगर अमेरिका और चीन के विपरीत भारतीय थिएटर कमान सीडीएस को रिपोर्ट करेंगी, जो चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) के स्थायी अध्यक्ष भी हैं. चर्चा यह है कि थिएटर कमान केवल परिचालक भूमिका निभाएंगी और उन पर शायद प्रशासनिक जिम्मेदारियां न डाली जाएं. सेना, नौसेना और वायु सेना के अपने-अपने प्रमुख प्रशिक्षण, आपूर्ति शृंखला, लॉजिस्टिक्स, अनुशासन और दूसरे प्रशासनिक मामलों के लिए जिम्मेदार होंगे.

इस विषय में भी बातचीत चल रही है कि थिएटर कमांडर चार स्टार या पांच स्टार रैंक के अधिकारी होंगे. अभी सीडीएस और तीनों सेना प्रमुख चार स्टार रैंक के अधिकारी हैं. अफसरों का मानना है कि पदानुक्रम को लेकर सजग सैन्य बलों में सेना प्रमुखों को शायद यह रास न आए कि निचले रैंक के थिएटर कमांडर उन्हें आदेश दें. इस तरह के मुद्दों की आशंका को देखते हुए अंतर-सेवा संगठन विधेयक तीनों सेनाओं के अपने-अपने कानूनों—सेना अधिनियम 1950, वायु सेना अधिनियम 1950, और नौसेना अधिनियम 1957—के तहत कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और प्रशासनिक कार्रवाई करने का अधिकार कमांडर-इन-चीफ या त्रिसेवा संगठन/थिएटर कमान के किसी अन्य अधिकारी को देता है.

चूंकि थिएटर कमान में तीनों सेनाओं के तमाम अधिकार क्षेत्रों में कार्यरत अधिकारी शामिल होंगे, इसलिए मानव संसाधन नीतियों को नया रंग-रूप देने का काम अभी चल रहा है. सैन्य बलों ने 100 से ज्यादा अधिकारियों को एक सेना से दूसरी सेना में पदस्थ किया है ताकि वे दूसरी सेनाओं का कामकाज समझ सकें.

इस जबरदस्त आमूलचूल बदलाव को लागू करने में आने वाली संभावित अड़चनों का समाधान निकालने के लिए सीडीएस चौहान तीनों सेना प्रमुखों के नियमित संपर्क में हैं. सशस्त्र बलों को दरअसल थिएटर कमान के तहत कामकाज, लॉजिस्टिक्स और बलों के प्रयोग को संभालने के तौर-तरीकों में व्यापक बदलाव लाने होंगे. जनरल चौहान ने कहा, ''इस यात्रा की शुरुआत जॉइंटनेस और इंटीग्रेशन की दिशा में उठाए गए पहले सही कदमों पर निर्भर करती है.''

इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (पॉलिसी प्लानिंग और फोर्स डेवलमेंट) के पूर्व डिप्टी चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल आहूजा का कहना है कि सेनाओं के संयुक्त प्रशिक्षण के मामले में भारत दशकों से दुनिया का अगुआ रहा है—एनडीए (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) तीनों सेनाओं के अधिकारियों को प्रशिक्षण देती है, और डीएसएससी (डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज), वेलिंगटन, और एनडीसी (नेशनल डिफेंस कॉलेज) में अधिकारियों के लिए संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके बावजूद जॉइंटनेस या एकजुटता को लेकर तीनों सेनाओं के बीच समझ/सहमति अपर्याप्त है. लेफ्टिनेंट जनरल आहूजा का यह भी कहना है कि संगठन के मौजूदा ढांचे कामकाज की समन्वित योजना बनाने और संसाधनों के समन्वित इस्तेमाल के लिए उपयुक्त नहीं हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि तीनों सेनाएं अपने परिचालक सिद्धांतों से परिभाषित अपने-अपने बंद कमरों में काम करती हैं. वे कहते हैं, ''इन कमियों से उबरने के लिए ही एकीकृत थिएटर कमान के गठन की कोशिश की जा रही है.''

भारतीय सेना के पूर्व ऐजटेंट जनरल और सामरिक विश्लेषक लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा का कहना है कि एकीकृत थिएटर कमान गेमचेंजर होगी. वे थिएटर कमान के बारे में कहते हैं, ''यह लचीलेपन और चाहे गए संपर्क बिंदुओं पर संगठित लड़ाकू शक्ति के प्रयोग की तरफ ले जाएगी.''

  • यात्रा में खंदक-खाइयां


थिएटर कमान बनाने में जबरदस्त चुनौतियां हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि उनमें सबसे अव्वल है सेनाओं के भीतर और उनके बीच संचार व नेटवर्कों का नाकाफी एकीकरण; समग्र संसाधनों और खासकर वायु परिसंपत्तियों और लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपों व मिसाइलों की कमी; संयुक्त सेना माहौल में प्रशिक्षित कमांडरों और स्टाफ का न मिलना; नाकाफी ढंग से परिपक्व खुफिया ढांचा और नवजात रक्षा उद्योग. परिचालन कमान की शृंखला सहित कमान और नियंत्रण के मसले चुस्त-दुरुस्त करना अभी बाकी है, और राजनैतिक-सैन्य मार्गदर्शन की शृंखला को भी अभी औपचारिक रूप दिया जाना है. इन मसलों का समाधान एकीकृत सैन्य थिएटर कमान बनाने से पहले करने की जरूरत है.

लेफ्टिनेंट जनरल आहूजा कहते हैं, ''इस प्रक्रिया को एक-एक ईंट जोड़कर और ढांचों का विधिवत परीक्षण करके चरणबद्ध तरीके से लागू करना होगा. आधारभूत विजन दस्तावेज और रोडमैप विकसित करने के लिए भी अभी ज्यादा देर नहीं हुई है.'' अफसरों का कहना है कि सेनाओं के साथ एकसारता को तोड़कर निकलना आसान नहीं है, खासकर जब तीनों सेनाओं की कामकाज की संस्कृतियां अलग-अलग हैं. शर्मा बताते हैं कि मौजूदा कमान स्तर पर परिचालन और प्रशासनिक शाखाओं को संबंधित सेनाओं के बीच बांटना होगा. उनका कहना है कि यह मुश्किल काम है.

थिएटर कमान के इरादे को मूल चुनौती सेनाओं के तबकों से ही मिली, जो इस मामले में एक राय नहीं थे. हालांकि सीडीएस अनिल चौहान, जिन्हें इस पद पर अब 10 माह हो चुके हैं, उनके बीच मतभेद सुलझाने में कामयाब रहे. मसलन, आइएएफ वायु रक्षा कमान बनाने का जोरदार विरोध कर रही थी. उसका कहना था कि उसके साजो-सामान का बड़ा हिस्सा मिराज, मिग 29, सुखोई और यहां तक कि नए भर्ती राफेल सरीखे बहुउद्देश्यीय विमान हैं, जो केवल रक्षात्मक ही नहीं बल्कि आक्रामक कार्रवाई के लिए आदर्श हैं. उसने दलील दी कि ऐसी कमान सीमित संसाधनों को उसके और दूसरी कमान के बीच बांट देगी और साथ ही उसने बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों को पूरी तरह रक्षा या जमीनी हमलों की भूमिकाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने की नादानी की तरफ इशारा किया. जनरल चौहान की योजना में वायु रक्षा कमान को तिलांजलि दे दी गई. अलग-अलग आइएएफ कमान अब अपने ठिकाने के मुताबिक थिएटर कमान में शामिल होंगी. माना जा रहा है कि सेना और आइएएफ बारी-बारी से पश्चिमी थिएटर कमान के शीर्ष पद संभालेंगी. समुद्री थिएटर कमान नौसेना के पास ही रहेगी.

अभी स्थिति यह है कि जनरल चौहान थिएटर बनाने के प्रस्ताव को अंतिम शक्ल दे रहे हैं और फिर इसे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के पास भेजा जाएगा. उनकी मंजूरी मिलने के बाद योजना को रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति से अंतिम स्वीकृति लेनी होगी. साउथ ब्लॉक के अफसरों का आकलन है कि अब से 12 से 15 महीनों के भीतर थिएटर कमानों की शुरुआत हो जाएगी. थिएटर कमान बनाने के बाद सेना में काफी बदलाव आएगा. उसके परिचालन का तरीका, लॉजिस्टिक्स और बल का इस्तेमाल पहले जैसा नहीं रह जाएगा.
 

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