जूता उद्योग : छोटे कारोबारियों को चुभने लगे बड़े कांटे

पहली जुलाई से भारतीय मानक ब्यूरो के प्रावधान लागू होने के बाद आगरा के छोटे फुटवियर कारोबारियों पर बढ़ा संकट

आगरा के टोली खाल इलाके में कारीगरों के साथ काम करते मोहम्मद रिजवान
आगरा के टोली खाल इलाके में कारीगरों के साथ काम करते मोहम्मद रिजवान

आगरा फोर्ट स्टेशन से करीब 400 मीटर दूर हींग की मंडी के रूप में विख्यात इलाका अब जूता-चप्पल निर्माण का बहुत बड़ा केंद्र बन चुका है. यहां करीब सात हजार परिवार बतौर कुटीर उद्योग जूता निर्माण कर रोजी-रोटी चला रहे हैं. इन्हीं में टोली खाल इलाके में रहने वाले 37 वर्षीय मोहम्मद रिजवान भी हैं. वे एक छोटे-से कमरे में जूता-चप्पल बनाने के अपने पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं. जूता बनाकर सालाना पांच से आठ लाख रुपए की आमदनी करने वाले रिजवान के सामने गुणवत्ता नियंत्रण करने के सरकारी फरमान को पूरा करने की असंभव-सी चुनौती आ गई है. रिजवान को अब अपनी छोटी-सी फैक्ट्री में लाखों रुपए खर्च करके टेस्टिंग लैब लगानी होगी और भारतीय मानक ब्यूरो से लाइसेंस भी लेना होगा. वे अपनी मजबूरी जताते हैं, ''क्वालिटी निर्माण के प्रावधान पूरा करने में ही मेरी सारी आमदनी लग जाएगी, इसके बाद परिवार का पेट कैसे भरेंगे?’’

सदर भट्टी-मीरा हुसैनी मार्ग पर हाजी परवेज की स्पोर्ट्स शूज बनाने की फैक्ट्री और गोदाम है. इनकी फैक्ट्री के सस्ते और टिकाऊ जूते देश भर में बिकने के लिए जाते हैं. बारिश के हर मौसम में जूते का कारोबार धीमा रहता है लेकिन इस बार तो बिल्कल ठप-सा है. ज्यादातर दुकानदार नए सरकारी नियमों से आशंकित हैं कि अगर उन्होंने भारतीय मानक ब्यूरो से बिना प्रमाणित जूते खरीदे तो उन्हें बेचने में दिक्कतें आएंगी. इसलिए ज्यादातर खरीदारों ने परवेज की दुकान के बेहतरीन जूतों से मुंह मोड़ लिया. नतीजा करीब 10,000 जोड़ी से ज्यादा जूते गोदाम में भरे पड़े हैं.

फुटवियर उद्योग या जूता कारोबार को 1 जुलाई से भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) के दायरे में लाने की सरकारी कवायद से आगरा के कारोबारियों के माथे पर पसीना आ गया है. नए नियमों के मुताबिक पहली जुलाई से फुटवियर निर्माण में काम आने वाले रबर सोल समेत कुल 21 उत्पादों पर भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) लाइसेंस लेना अनिवार्य हो गया है. 1 जनवरी, 2024 से लघु और सूक्ष्म फुटवियर इकाइयों को भी बीआइएस लाइसेंस लेना अनिवार्य हो जाएगा. आगरा-मथुरा रोड के सिगना इलाके में प्रदेश सरकार के आगरा ट्रेड सेंटर में खुली प्रदेश की पहली और अत्याधुनिक बीआइएस लैब के संचालक निशेष अग्रवाल बताते हैं, ''देश में जूते से जुड़े करीब 90 प्रतिशत उत्पाद चीन या अन्य देशों से आयात होते हैं. इनकी गुणवत्ता की कोई जांच नहीं होती. देश में गुणवत्तापरक फुटवियर का निर्माण बढ़ाने की मंशा से ही सरकार ने बीआइएस लाइसेंस को जरूरी बनाया है.’’ हालांकि सरकार के इस कदम का सबसे ज्यादा असर आगरा के जूता कारोबार पर पड़ने वाला है, जहां करीब 7,000 लघु और मध्यम जूता इकाइयों से 4 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं.

मुगलकाल के दौरान आगरा में हींग की मंडी क्षेत्र में चमड़े के मश्क (विशेष प्रकार का थैला) में हींग आता था. यह मश्क खाली फेंक दी जाती थी. बाद में हींग की मंडी में काम करने वाले कर्मचारियों ने मश्क का उपयोग जूते बनाने में शुरू किया. इस तरह धीरे-धीरे हींग की मंडी में जूता बनाने का बाकायदा कारोबार शुरू हुआ. मुगलकाल से जूते बनाने का हुनर पीढ़ी-दर-पीढ़ी कारीगरों में पहुंचने लगा. ब्रिटि‍श काल में भी जूते का कारोबार बढ़ा लेकिन इसे तेजी मिली आजादी के बाद. जब 1948 में वासन शू कंपनी ने अफ्रीका के बाजार में पहला जूता आगरा से निर्यात किया. अफ्रीकी बाजार में आगरा के जूते की चाल ने यहां के व्यापारियों को नई राह दिखाई और यहां का जूता दुनिया भर में छाने लगा. 75 से ज्यादा देशों में आगरे का जूता शान का प्रतीक बन गया. देश से निर्यात होने वाले जूतों में एक-चौथाई से ज्यादा हिस्सेदारी आगरा की है जबकि घरेलू जूता बाजार में दो-तिहाई हिस्सा यहां के जूतों का है. दुनिया की करीब सभी बड़ी जूता कंपनियां आगरा के कारोबारियों के साथ मिलकर व्यापार कर रही हैं.

इन कारोबारियों पर सबसे ज्यादा संकट बीआइएस के मानक लेकर आए हैं. लघु और मध्यम जूता कारोबारियों को बीआइएस का लाइसेंस लेने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ेंगे. इससे न केवल जूते की कीमत बढ़ेगी बल्कि कुटीर उद्योग में बनने वाले जूतों को बड़ी फैक्ट्रियों में तैयार हुए जूते से प्रतिस्पर्धा भी करनी पड़ेगी. आगरा शू मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ओपेंद्र सिंह लवली बताते हैं, ''बड़ी फैक्ट्री में बना बीआइएस प्रमाणित जूता आगरा के कुटीर उद्योग में बने जूते पर कहीं भारी पड़ेगा. इससे एक ओर बड़े उद्योगपतियों को तो फायदा होगा लेकिन दूसरी ओर छोटे और मध्यम उद्योग धीरे-धीरे बंद होते जाएंगे.’’ आगरा में सौ रुपए से 10,000 रुपए तक के जूते बनते हैं. लवली बताते हैं, ''गरीबों के लिए आगरा में बने सस्ते जूतों से किसी को भी कभी किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा हुई हो, ऐसी जानकारी सामने नहीं आई है. ऐसे में इन जूतों को गुणवत्ता के दायरे में लाना गरीबों के साथ खिलवाड़ करना ही है.’’ 

बता दें कि बीआइएस के मानकों को पूरा करना इतना आसान नहीं है. सबसे ज्यादा जरूरत तो काबिल टेक्नीशियनों की ही होगी. देश में कोई भी ऐसा संस्थान नहीं जहां फुटवियर टेस्टिंग के टेक्नीशियनों का कोई कोर्स चलाया जाता हो. इस वक्त देश में फुटवियर से जुड़ी जांच करने वाली कुल 11 लैब हैं. इनसे जुड़े टेक्नीशि‍यन ही बीआइएस से जुड़े मानकों की जांच में दक्ष हैं. देश भर में इन टेक्नीशि‍यनों की संक्चया यही कोई 100 के आसपास है. आगरा में बड़ी इकाइयों के पास तो अपनी लैब है लेकिन 7,000 छोटी इकाइयों के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं. इन इकाइयों में लैब और उसके संचालन के लिए कम से कम 1,000 टेक्नीशियनों की तुरंत जरूरत पड़ेगी. इसके बिना लैब का संचालन संभव न होगा. इतना ही नहीं, बड़ी संख्या में लैब स्थापित होने से इसके लिए जरूरी मशीनों की मांग पूरी करना अचानक संभव नहीं होगा. आगरा में थाना मंटोला के पास फुटवियर फैक्ट्री के संचालक मोहम्मद जाहिद बताते हैं, ''बड़ी कंपनियों ने बीआइएस लाइसेंस न होने के चलते आगरा की छोटी फैक्ट्रियों में बने जूते लेना बंद कर दिया है. दूसरी ओर छोटे दस्तकारों को बीआइएस लाइसेंस लेने में अभी कई कठिनाइयां हैं. ऐसे में आगरा के छोटे जूता कारोबारियों पर दोहरी मार पड़ी है. ऐसे ही हालात रहे तो इसके धंधे में बड़ी मंदी देखने को मिलेगी.’’

आगरा के जूता कारोबार को कई झंझावातों से भी जूझना पड़ रहा है. 2020 से एक साल तक कोविड महामारी में बंदी की मार झेलने के बाद यह तेजी पकड़ ही रहा था कि जीएसटी के प्रावधानों ने एक नया संकट खड़ा कर दिया. आगरा शू फैक्ट्रीज फेडरेशन के अध्यक्ष गगनदास रामानी बताते हैं, ''2020-21 में कोविड काल के दौरान आगरा में जूता निर्यातकों के ऑर्डर घटकर 50 फीसद से भी कम रह गए थे. सरकार ने चमड़े के आयात पर 10 फीसद कर लगाने के साथ जूते की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इंपोर्ट लाइसेंस स्कीम को भी रद्द कर दिया. इससे जूता निर्माण महंगा हो गया.’’ 1 जनवरी, 2022 से एक हजार रुपए तक की कीमत वाले जूतों पर जीएसटी 5 फीसद से बढ़ाकर 12 फीसद करने से आम आदमी के लिए जूते की कीमतें बढ़ीं हैं. इससे सस्ते जूते के कारोबार में भी गिरावट आई है. रामानी बताते हैं, ''जूते और कपड़े पर एक साथ जीएसटी बढ़ाया गया था. कपड़ा कारोबारियों के दबाव में सरकार ने जीएसटी घटाकर 5 फीसद कर दिया लेकिन जूता कारो‍बारियों को कोई राहत नहीं दी. रूस-यूक्रेन युद्ध का असर भी जूता कारोबार पर पड़ा है. आगरा से होने वाले कुल निर्यात में 20 फीसदी से अधिक की कमी आई है.’’

राहत तो अभी तक आगरा के उन जूता कारो‍बारियों को भी नहीं मिली है जिनके लिए सरकार ने समय-समय पर विशेष योजनाएं शुरू की थीं. 2008 में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में आगरा में जूता और चमड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए दो योजनाएं बनी थीं. शहर से 17 किलोमीटर दूर आगरा-जयपुर हाइवे पर तहसील किरावली के गांव महुअर, पाली सदर, बरोदा की करीब 283 एकड़ जमीन पर ''लेदर पार्क परियोजना’’ की नींव रखी गई. 350 करोड़ रुपए की लागत से इसका निर्माण होना था. वर्ष 2010 के बजट में लेदर पार्क के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया. इसके बाद तत्कालीन उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक प्राधिकरण) ने इस परियोजना को पूरा करने का काम शुरू किया. काम कुछ आगे बढ़ा था कि ताज सरंक्षित क्षेत्र के नियम आड़े आ गए. मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया और 2013 में लेदर पार्क का काम बंद हो गया. इसके बाद लगातार उद्योग बंधु की बैठक में बंद पड़े लेदर पार्क को लेकर चर्चाएं होती रहीं लेकिन यह अभी अधूरा ही पड़ा है.

महुअर गांव निवासी और चमड़े के व्यवसाय से जुड़े रमेश लावनिया बताते हैं, ''अगर लेदर पार्क परियोजना को समय से शुरू कर दिया गया होता तो यह अब तक पूरी हो चुकी होती. एक ही जगह फैक्ट्री और लेदर विक्रेता के साथ अन्य सुविधाओं की एक ही स्थान पर मौजूदगी से आगरा का जूता और चमड़ा उद्योग तेजी से आगे बढ़ता.’’ लावनिया के मुताबिक, बेवजह का भाड़ा न देना पड़ता. इससे आगरा के चमड़ा उत्पाद की लागतें प्रतिस्पर्धी बन जातीं. नेशनल चैंबर आफ इंडस्ट्रीज ऐंड कॉमर्स के एक दल ने अगस्त 2019 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर लेदर पार्क परियोजना को शुरू करने में आ रही कानूनी अड़चनें दूर करने की अपील की थी. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को इस दिशा में प्रयास करने के निर्देश भी दिए थे लेकिन स्थिति जस की तस है. हालांकि उद्योग विभाग के अधि‍कारी मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.

हींग मंडी से करीब तीन किलोमीटर दूर पंचकुइयां रोड पर जूता कारोबार से जुड़े दलितों, गरीबों के उत्थान की एक महत्वाकांक्षी योजना भी बदहाल पड़ी है. बसपा के समर्थक वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने शासनकाल के दौरान 7 सितंबर, 2010 को आगरा में जूता प्रदर्शनी प्रशिक्षण और कल्याण केंद्र का लोकार्पण किया था. आगरा विकास प्राधिकरण ने 21 करोड़ रु. की लागत से 6,870 वर्ग मीटर जमीन पर तीन तल के इस भवन में कुल 280 दुकानें बनाई थीं जिन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को ही आवंटित किया जाना था. केंद्र में जरूरी सुविधाओं का विकास न होने से गरीब दलित जूता कारोबारियों ने यहां दुकानें लेने में कोई रुचि नहीं दिखाई. नतीजा दो साल में 10 फीसदी दुकानें भी नहीं आवंटित की जा सकीं.
सपा सरकार बनने के बाद वर्ष 2015 में नियम बदलकर दलितों के साथ अन्य जाति के लोगों को भी इस केंद्र में दुकान लेने के लिए पात्र कर दिया. जूता प्रदर्शनी एवं कल्याण केंद्र समिति के अध्यक्ष वाइ. के. सरन बताते हैं, ''केंद्र में बैंक नहीं है, एटीएम बंद है. प्रदर्शनी हाल, फूड कोर्ट कभी खुले ही नहीं. ऐसे में यहां कोई क्यों आएगा?’’ हालांकि, आगरा विकास प्राधिकरण ने एक बार फिर इस केंद्र की दुकानों के आवंटन नियमों में बदलाव की रूपरेखा तैयार की है. प्राधिकरण के उपाध्यक्ष चर्चित गौड़ बताते हैं, ''प्राधिकरण ने शासन को प्रस्ताव भेजा है कि एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत केंद्र की दुकानें चमड़े के सभी कारोबारियों के लिए आवंटित करने का प्रावधान किया जाए.’’

जूता कारोबारियों ने समस्याओं को लेकर हाल ही केंद्रीय वाणि‍ज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मुलाकात की है लेकिन आश्वासन के अलावा अभी कुछ भी हाथ नहीं आया है. अगर छोटे और मझोले जूता कारोबारियों के हितों को ध्यान में न रखा गया तो आगरा अपनी वह पहचान खो देगा जिसके बारे में मशहूर है कि ''दुनिया का हर पांचवां शख्स आगरा के बने जूते पहनता है.’’ 

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