गेहूं चला सीधे गल्ला बाजार
गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यावहारिक नहीं है. इस वजह से किसान गेहूं की खेती से दूर हो रहे हैं. आने वाले दिनों में गरीबों के लिए गेहूं और उसी के चलते आटे का गंभीर संकट पैदा होने वाला है

लखनऊ से सीतापुर हाइवे के किनारे मौजूद खाद्य और रसद विभाग के डिपो में संचालित गेहूं क्रय केंद्र में कर्मचारियों का ज्यादातर समय किसानों की राह ताकने में ही बीत रहा है. पिछले 65 दिन से कर्मचारी रोज सुबह नौ बजे केंद्र पहुंच जाते हैं और शाम छह बजे तक घड़ी की सुइयां देखते रहते हैं. कड़ी धूप में दिन भर केंद्र पर बिताने के बाद भी हासिल कभी 5-6 बोरी गेहूं तो कभी वह भी नहीं. बख्शी का तालाब इलाके के इस बड़े क्रय केंद्र को 15 जून तक 10,000 क्विंटल गेहूं खरीदने का लक्ष्य दिया गया है. इसके मुकाबले 5 जून तक महज 300 क्विंटल गेहूं ही खरीदा जा सका है. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, गेहूं बेचने आने वाले किसानों की संभावना भी कम होती जा रही है. कर्मचारी बताते हैं कि क्रय केंद्र में लक्ष्य का पांच फीसद गेहूं भी खरीद लिया जाए तो यह चमत्कार ही होगा.
बख्शी का तालाब के गेहूं क्रय केंद्र में भले ही सन्नाटा पसरा हो लेकिन यहां से तीन किलोमीटर दूर तहसील मुख्यालय से सटे गल्ला बाजार में खासी चहल-पहल है. पास के गांव मलूकपुर के रहने वाले धमेंद्र वर्मा ने सरकारी क्रय केंद्र के बजाए गल्ला बाजार में गेहूं बेचना मुनासिब समझा. धर्मेंद्र के अपने पांच एकड़ खेत में करीब 70 क्विंटल गेहूं पैदा हुआ. वे बताते हैं, ''10 मई को मेरी बेटी की शादी थी जिसके लिए मुझे तुरंत पैसों की जरूरत थी. इसलिए मैंने सरकारी केंद्र में बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन, पल्लेदारी आदि झंझट से बचने को गल्ला बाजार में गेहूं बेचा. यहां सरकारी की तुलना में दाम भी 25 रुपए क्विंटल ज्यादा मिले और वह भी नकद. बाजार से लौटते वक्त मैं शादी की खरीदारी करते हुए घर आया.''
ये उदाहरण उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद की असल तस्वीर पेश करते हैं. सरकार की कई कोशिशों के बावजूद सरकारी गेहूं खरीद केंद्र किसानों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहे. सरकार ने प्रदेश में 1 अप्रैल से गेहूं खरीद शुरू की. सात एजेंसियों ने अलग-अलग जिलों में कुल 5,900 गेहूं खरीद केंद्र खोले. इन केंद्रों पर 2,125 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से 15 जून तक कुल 60 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जानी है. खाद्य और रसद विभाग की 5 जून को जारी रिपोर्ट खुद-ब-खुद इशारा कर देती है कि प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद मुंह के बल गिर चुकी है. रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे प्रदेश में 5 जून तक महज 2.10 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई जो निर्धारित लक्ष्य का महज 3.50 फीसदी है. हमीरपुर, झांसी, महोबा, ललितपुर, जालौन सर्वाधिक गेहूं खरीदने वाले जिले हैं जबकि आगरा, गाजियाबाद, बागपत, कन्नौज और लखनऊ जिले किसानों से गेहूं की सरकारी खरीद करने के मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं.
इस तरह जब गेहूं खरीद की समय सीमा (15 जून) समाप्त होने में चंद दिन ही बचे हैं, निर्धारित 60 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद के सरकारी लक्ष्य का 5 फीसदी भी प्राप्त कर पाना खरीद एजेंसियों के लिए असंभव लग रहा है. 2023-24 लगातार दूसरा साल होगा जब गेहूं की सरकारी खरीद नाममात्र की ही होगी. 2022-23 में भी निर्धारित 60 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले केवल 5.58 फीसद गेहूं की खरीद हो पाई थी. 21 जिले तो ऐसे थे जहां लक्ष्य के मुकाबले एक फीसद भी गेहूं खरीदा न जा सका.
प्रदेश में पटरी से उतरती जा रही गेहूं की सरकारी खरीद की वजह भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के प्रदेश अध्यक्ष हरिनाम सिंह वर्मा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गणना को बताते हैं. वर्मा बताते हैं, ''2014 में गेहूं का समर्थन मूल्य 1,400 रुपए प्रति क्विंटल था. इसके बाद से अब तक डीजल, खाद, सिंचाई और अन्य कृषि सुविधाओं के दाम में करीब दोगुने का इजाफा हो गया है लेकिन उस अनुपात में न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा है. गेहूं की पैदावार घटने और मांग बढ़ने से बाजार में कीमत बढ़ी है, इसलिए किसान उसे खुले बाजार में बेच रहे हैं.'' इस वर्ष भी खुले बाजार में गेहूं का मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,125 रुपए प्रति कुंतल से कम से कम दो सौ रुपए ज्यादा 2,300 से 2,400 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है. बाजार में दाम ज्यादा होने का मुख्य कारण गेहूं की घटती पैदावार है. 2020-21 में यूपी में गेहूं की कुल पैदावार 374 लाख मीट्रिक टन थी जो 2022-23 में घटकर 360 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई. वर्मा की शिकायत है, ''बीते दस वर्षों में सरकार गेहूं की एक भी नई वेराइटी ईजाद नहीं कर पाई है जिससे पैदावार ज्यादा हो. पिछले दो वर्षों में फरवरी से अप्रैल के बीच मौसम में हो रहे बदलाव ने भी गेहूं की पैदावार को प्रभावित किया है. मांग के मुकाबले गेहूं की पैदावार कम होने से बाजार में दाम बढ़ गए हैं.''
न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में गेहूं का बाजार मूल्य ज्यादा होने के कारण बिचौलियों और कालाबाजारी के धंधे ने एक बार फिर सिर उठाया है. कालाबाजारी की जानकारी मिलने के बाद मुरादाबाद मंडल के खाद्य और रसद विभाग ने 10 और 11 मई को आटा मिलों और निजी गोदामों पर छापेमारी की. मुरादाबाद के उप क्षेत्रीय विपणन अधिकारी राजेश्वर प्रताप सिंह बताते हैं, ''जिले के 65 स्थानों पर छापेमारी कर 11,000 क्विंटल गेहूं बरामद किया गया. यह गेहूं उत्तराखंड और पंजाब भेजा जा रहा था.''
योगी सरकार ने 2017 में सत्ता संभालने के बाद सरकारी खरीद प्रक्रिया से बिचौलियों को बाहर करने का अभियान शुरू किया था लेकिन पिछले दो वर्षों से यह असर नहीं दिखा पा रहा है. खाद्य और रसद विभाग से सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर राजीव कुमार बताते हैं, ''गेहूं खरीद प्रक्रिया में एक बार फिर बिचौलिए हावी हो गए हैं. वे किसानों के दरवाजे से न्यूनतम समर्थन मूल्य या इससे कुछ कम पर गेहूं खरीदकर उसका नकद भुगतान करते हैं. रजिस्ट्रेशन या गेहूं के मानक अनुरूप न होने, क्रय केंद्र तक ले जाने के झंझट से बचने के लिए किसान भी इन बिचौलियों को गेहूं बेच देते हैं. बिचौलिए इसे बाजार में ज्यादा दाम पर बेचकर खासा मुनाफा कमाते हैं.''
सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों पर किसानों को भुगतान की समस्या से भी दो-चार होना पड़ रहा है. चित्रकूटधाम मंडल में डेढ़ महीने के भीतर 203 गेहूं क्रय केंद्रों में लक्ष्य के मुकाबले 19 फीसद ही खरीद हुई लेकिन जो मुट्ठीभर किसान गेहूं बेचने सरकारी केंद्र पहुंचे, उन्हें समय पर भुगतान न होने की पीड़ा भी सहनी पड़ी.
प्रदेश सरकार ने गेहूं बेचने के 72 घंटे के भीतर किसान के खाते में भुगतान करने का आदेश दिया है. लेकिन चित्रकूटधाम मंडल में 16 मई तक गेहूं बेचने वाले 1,082 किसानों का कुल 1,156 लाख रुपए का भुगतान एक हफ्ते का समय बीतने के बाद भी नहीं हुआ था. संभागीय खाद्य नियंत्रक, चित्रकूटधाम मंडल दिनेश शर्मा बताते हैं, '' उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ) का 80 फीसद गेहूं खरीद का भुगतान बकाया है. अधिकारियों को तुंरत भुगतान के निर्देश दिए गए हैं.''
गेहूं की नाममात्र की सरकारी खरीद का असर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना पर भी दिखाई पड़ सकता है. इसके तहत गरीबों को मुफ्त गेहूं वितरण के लिए साल भर में करीब 40 लाख मीट्रिक टन गेहूं की जरूरत है. यूपी में गेहूं खरीद की निगरानी कर रहे खाद्य और रसद विभाग में अपर आयुक्त (विपणन) राजीव मिश्र बताते हैं, ''भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से करीब 118 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है. अच्छा स्टॉक होने के कारण यूपी में गेहूं का संकट नहीं होगा.''
धरे रह गए सारे इंतजाम
केंद्र सरकार की ओर से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,125 रु. प्रति क्विंटल के आधार पर यूपी में भी 1 अप्रैल से 15 जून तक गेहूं खरीद हो रही है.
खरीद के लिए बोरों और कृषकों को भुगतान की वित्तीय व्यवस्था को देखते हुए संभावित क्रय लक्ष्य 60 मीट्रिक टन निर्धारित किया गया है.
खाद्य विभाग, मंडी परिषद, पीसीएफ, कोऑपरेटिव यूनियन, उपभोक्ता सहकारी संघ, भारतीय खाद्य निगम, नैफेड के कुल 5,900 गेहूं क्रय केंद्र खोले गए हैं.
क्रय केंद्रों और भारतीय खाद्य निगम के डिपो की जियो टैगिंग की गई है. जियो टैगिंग को ई-उपार्जन पोर्टल से जोड़ा गया है.
क्रय केंद्रों पर बिक्री के लिए किसानों को खाद्य विभाग के पोर्टल पर जरूरी दस्तावेजों के साथ मोबाइल ओटीपी से पंजीकरण कराना अनिवार्य है.
क्रय केंद्रों पर लैपटॉप, प्रिंटर, इंटरनेट की व्यवस्था होगी. खरीद की रियल टाइम एंट्री ऑनलाइन करने का प्रावधान है.
जिन किसानों की उपज 60 क्विंटल या इससे कम है, उन्हें गेहूं खरीद में प्राथमिकता दी जा रही है ताकि वे 'डिस्ट्रेस सेल' के शिकार न हों.
गेहूं के मानक अनुरूप न होने पर उसे अस्वीकृत किया जाएगा. असंतुष्ट किसान तहसील स्तर पर क्षेत्रीय विपणन अधिकारी के पास अपील कर सकता है.
सरकारी क्रय केंद्र में 100 क्विंटल तक गेहूं बेचने पर सत्यापन नहीं होगा. इससे ज्यादा पर राजस्व विभाग सत्यापन करेगा.
''गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यावहारिक नहीं है. इस वजह से किसान गेहूं की खेती से दूर हो रहे हैं. आने वाले दिनों में गरीबों के लिए गेहूं और उसी के चलते आटे का गंभीर संकट पैदा होने वाला है''
—हरिनाम सिंह वर्मा, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक)