पवार का पैंतरा
बताया जा रहा है कि शरद पवार ने यह कदम अपनी ताकतों को एकजुट करने की गरज से उठाया, और अजित पवार को यह दिखाने के लिए भी कि एनसीपी में बॉस कौन है

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार ने 2 मई को यह कहकर धमाका कर दिया कि वे पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ना चाहते हैं. उनके इस कदम को भतीजे अजित पवार के साथ सियासी शतरंज में उनकी चाल के तौर पर देखा गया. अपनी आत्मकथा के नए संस्करण के विमोचन के मौके पर यह घोषणा उन्होंने उस वक्त की जब कहा जा रहा है कि अजित की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ बातचीत चल रही है, जिससे एनसीपी के भीतर भगदड़ का आलम है.
हालांकि अजित पवार इन रिपोर्टों का पुरजोर खंडन करते हैं, पर सूत्रों का कहना है कि चीजें कर्नाटक के विधानसभा चुनाव और महाराष्ट्र में जून 2022 के सत्ता परिवर्तन (जिसमें एकनाथ शिंदे और बागियों के उनके धड़े ने एनसीपी की शिरकत वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी या एमवीए की सरकार गिरा दी थी) से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रफ्तार पकड़ सकती हैं. एनसीपी का एक धड़ा केंद्रीय जांच एजेंसियों की आंच महसूस कर रहा है और पाला बदलने के लिए काफी अधीर बताया जाता है. इस मुहिम की अगुआई एक राष्ट्रीय नेता कर रहे हैं.
बताया जा रहा है कि बड़े पवार ने यह कदम अपनी ताकतों को एकजुट करने की गरज से उठाया, और अजित को यह दिखाने के लिए भी कि एनसीपी में बॉस कौन है. या फिर यह भी हो सकता है कि पवार एनसीपी को साथ रखने की खातिर रिश्ते सुधारने की पहल करते हुए अजित को बागडोर संभालने दें. ताकि एनसीपी अगर एमवीए से अलग होने का फैसला करे, तो वे इस कदम से अपने को अलग कर पाएं. पवार यह तक कह सकते हैं कि बहुमत की इच्छा का सम्मान करते हुए वे ''लोकतांत्रिक रुख'' अपना रहे हैं.
समर्थकों को हैरानी में डालते हुए पवार ने कहा, ''आज मैंने एनसीपी का अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया है.'' उन्होंने आगे कहा कि वे राज्यसभा का अपना कार्यकाल पूरा करेंगे, पर भविष्य में चुनाव नहीं लड़ेंगे. 82 वर्षीय नेता ने कहा कि अजित, बेटी सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे और दूसरों सहित एनसीपी के बड़े नेताओं की एक समिति नए पार्टी अध्यक्ष के बारे में फैसला करेगी.
उनके इस फैसले के बाद देखते ही देखते खलबली मच गई. पार्टी नेता और कार्यकर्ता मंच के इर्द-गिर्द जमा हो गए और पवार से इस्तीफा वापस लेने का अनुनय-विनय करने लगे, जबकि वे पत्नी प्रतिभा की बगल में तकरीबन पत्थर की मूरत की तरह जड़वत बैठे रहे. पूर्व मंत्री और राज्य अध्यक्ष जयंत पाटील सरीखे एनसीपी के नेता तो रो पड़े. कांपती आवाज में पाटील ने कहा, ''महाराष्ट्र में हम सब पवार साहेब के नाम पर वोट मांगते हैं. साहेब की वजह से पार्टी को वोट मिलते हैं. पवार साहेब हट जाते हैं तो अब हम लोगों के सामने कैसे जाएंगे?''
इस सबके बीच एक असहमति की आवाज थी—अजित. जब हर कोई उनके चाचा के आगे हाथ-पैर जोड़ रहा था, अजित ने मौजूद लोगों से कहा कि पवार के फैसले का सम्मान करें. बारामती की सांसद सुले से बोलने को कहा गया तो अजित ने तुरंत अपने को उनका 'मोठा भाऊ (बड़ा भाई)' बताकर चुप करा दिया. अजित ने कहा, ''भावुक होने की जरूरत नहीं. यह कभी न कभी तो होना ही था.'' उन्होंने यह भी खुलासा किया कि पवार ने शुरू में 1 मई को यह ऐलान करने का फैसला किया था, पर मुंबई में एमवीए गठबंधन की बैठक के कारण इसे एक दिन टाल दिया. अपने चिरपरिचित बेअदब अंदाज में अजित ने लोगों से चिड़चिड़े ढंग से बात की. जब एक कार्यकर्ता ने विरोध में भूख हड़ताल करने की धमकी दी, तो अजित ने पलटकर कहा: 'करो... बारीक होशिल (दुबले ही होओगे)!'
अलबत्ता बड़े पवार से इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश का समवेत गान चलता रहा, जिससे साफ हो गया कि अजित पार्टी में कम से कम अभी तो अलग-थलग पड़ गए हो सकते हैं. उधर, महाराष्ट्र के तमाम जिलों में एनसीपी के पदाधिकारी पवार को मनाने की गरज से अपने-अपने पार्टी पदों से इस्तीफे देने लगे. बाद में अजित पवार ने मीडिया से कहा कि शरद पवार अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को राजी हो गए हैं.
कांग्रेस के एक बड़े नेता और पूर्व मंत्री ने कहा कि यह महज नेतृत्व बदलने का मुद्दा नहीं है, बल्कि कहीं ज्यादा गहरा ''अंदरूनी सत्ता संघर्ष'' है, जिसमें शरद पवार अजित को अलग-थलग करने के लिए ''इमोशनल पॉलिटिक्स'' खेल रहे हैं. उन्हें लगता है कि पार्टी अब ''पवार के पीछे गोलबंद'' हो जाएगी और अजित को दिखा दिया जाएगा कि दरअसल बॉस कौन है.
पवार के ऐसे पैंतरे पहले भी कारगर रहे हैं. 2019 में जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससीबी) में कथित धनशोधन के लिए पवार के खिलाफ मामला दर्ज किया, तो उन्होंने आक्रामक रुख अपनाते हुए जांच के सिलसिले में एजेंसी के दफ्तर जाने की धमकी देकर इसे राजनैतिक पूंजी में बदल लिया. ईडी को पीछे हटना पड़ा और ग्रामीण महाराष्ट्र व दबदबे वाले मराठा समुदाय में, जहां उनका आधार है, पवार के लिए सहानुभूति पैदा हुई. बाद में जब राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की जीत तय लग रही थी तो कैंसर को मात दे चुके और तब 79 वर्ष के शरद पवार ने सतारा में मूसलाधार बारिश में जनसभा को संबोधित करके जोरदार वापसी की.
कांग्रेस के एक नेता बताते हैं, ''जब तक सेहत अच्छी है, पवार नेतृत्व की भूमिका नहीं छोड़ेंगे... अजित को धीरे-धीरे अलग-थलग किया जा रहा है. शरद पवार अंतत: इस्तीफा वापस ले सकते हैं या सुप्रिया सुले को उत्तराधिकारी चुन सकते हैं. इस घटना से वे मजबूत होकर उभरे, तो अंतत: अजित को हटाकर जयंत पाटील सरीखे अपने किसी विश्वासपात्र को विधानसभा में विपक्ष का नेता बना सकते हैं.'' एक अन्य कांग्रेस नेता कहते हैं, ''अजित और उनकी टीम की महत्वाकांक्षा पवार के लिए परेशानी बन रही थीं... पार्टी का बिना शर्त समर्थन न मिले तो टीम को साथ लेकर चलने वाला खिलाड़ी भी परेशान हो जाता है.'' उन्हें लगता है कि आने वाले दिनों में सुप्रिया सुले को एनसीपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चुना जा सकता है.
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के बड़े नेता भी ऐसा ही सोचते हैं. उनमें से एक नेता ने कहा, ''पवार खूंटा हलवुन बळकत करताहेत (पवार और गहरे बिठाने के लिए कील को हिला रहे हैं).'' पवार के कदम के लिए कई और पार्टी नेताओं ने भी इसी मुहावरे का इस्तेमाल किया.
इस बीच 4 मई को शरद पवार ने पार्टी नेताओं की एक बैठक बुलाकर अपने कदम की वजह बताई. हमारे सहयोगी चैनल आजतक की खबर के अनुसार, पवार चाहते थे कि वे इस्तीफे के फैसले पर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा करें और उन्हें भरोसे में लें. उन्होंने कहा, ''अगर मैंने इस फैसले के बारे में सबसे पूछा होता तो स्वाभाविक रूप से सभी इसका विरोध करते. इसलिए मैंने सीधे इसकी घोषणा करने का फैसला किया.'' लिहाजा, वे जल्दी ही कोई निर्णायक फैसला सुनाएंगे ताकि उनके समर्थकों को पार्टी के विभिन्न संगठनों से इस्तीफा देकर आंदोलन न करना पड़े.
संपादक और विश्लेषक निखिल वागले ने इस कदम को ''अजित पर फेंकी गई पवार की गुगली'' कहा, और यह भी कि ''ऐसी शॉक थेरैपी उनकी राजनीति का हिस्सा हैं''. वागले को लगता है कि पवार परदे के पीछे से पार्टी को नियंत्रित करते हुए सुप्रिया सुले को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने का मंसूबा बना रहे हो सकते हैं. सवाल यह है: क्या अजित को यह मंजूर होगा?