समलैंगिकों की शादी पर संशय

अगर समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिली तो बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. दूसरी ओर, समलैंगिकों के साथ कई तरह के भेदभाव हो रहे हैं

अधिकारः कई तरह के भेदभाव
अधिकारः कई तरह के भेदभाव

पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री के बीच यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होने के साढ़े चार साल बाद अब समलैंगिक विवाह का मुद्दा चर्चा में है. समलैंगिक गुहार लगा रहे हैं कि उनकी शादी को सुप्रीम कोर्ट मान्यता दे दे. लेकिन केंद्र सरकार इसके विरोध में है. उसने कोर्ट में अपने जवाब में कहा कि भारत के सभी समाजों और कानूनों में शादी सिर्फ महिला और पुरुष के बीच में होती है, अगर समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिली तो बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. दूसरी ओर, समलैंगिकों के साथ कई तरह के भेदभाव हो रहे हैं जिनमें उनके रक्तदान पर पाबंदी और सुरक्षाबलों में नियुक्ति पर रोक जैसी बातें शामिल हैं. 13 मार्च को प्रधान न्यायाधीश डी.वाइ. चंद्रचूड़ ने यह मसला संविधान पीठ के हवाले कर दिया. चंद्रचूड़ उस पीठ में भी शामिल थे जिसने समलैंगिक यौन संबंधों को गैर-आपराधिक बनाने का फैसला सुनाया था.

क्या चाहते हैं समलैंगिक 

समलैंगिकों की ओर से दाखिल याचिकाओं में स्पेशल मैरिज ऐक्ट, फॉरेन मैरिज ऐक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है. सम्मान से जीने के अधिकार के तहत विवाह का हक मिलना चाहिए
केंद्र सरकार ने क्या कहा 

अपने 56 पेज के जवाब में केंद्र ने कहा कि भारत में हिंदू मैरिज ऐक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ समेत सभी वैवाहिक कानूनों में बायोलॉजिकल महिला और बायोलॉजिकल पुरुष की शादी का प्रावधान है. शादी की परिणति परिवार नामक संस्था में होती है. समलैंगिकों के विवाह को मान्यता देने से तलाक और उत्तराधिकार जैसे कई कानूनों में बदलाव करना होगा. कानून-बनाना और उसमें बदलाव करना विधायिका का काम है, लिहाजा याचिकाकर्ता कोर्ट से कानून बदलने का अनुरोध नहीं कर सकते

विरोध में तर्क 

समलैंगिकों का विरोध करने वाले कह रहे कि सुप्रीम कोर्ट के जल्लीकट्टू और सबरीमला के फैसले लागू नहीं हो सके क्योंकि वे जनभावना के विरुद्ध थे. गे मैरिज होगी तो कई मुश्किलें आएंगी

पक्ष में दलीलें 

जब बलात्कार के कानून को लिंग निरपेक्ष बनाया जा सकता है तो अन्य कानूनों को भी लिंग निरपेक्ष बनाया जा सकता है. संसद और नेताओं में इच्छाशक्ति होनी चाहिए

संसद का रुख 

समलैंगिकों के समर्थक दलील देते हैं कि धारा 377 पर कितनी बार बहस हुई. संसद दरअसल समलैंगिकों के मुद्दों पर बात नहीं करना चाहती क्योंकि यह वर्ग उनके लिए वोटबैंक नहीं है

समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के मसले पर कानून बनाने का काम समाज और अन्य कारकों को ध्यान में रखकर संसद को तय करना चाहिए  -तुषार मेहता, सॉलिसिटर जनरल (सुप्रीम कोर्ट में)

अब हम 21वीं सदी में आ गए हैं. समलैंगिकों को शादी का अधिकार ही नहीं, अन्य वे सभी अधिकार भी मिलने चाहिए जो शादीशुदा महिला-पुरुषों को मिलते हैं 
-अंजलि राजगोपाल, नाज फाउंडेशन

2018—में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को गैर-आपराधिक बनाने का क्रांतिकारी फैसला सुनाया था. इससे पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध बनाना अपराध था

18 अप्रैल 2023 से इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी जिसे आम लोग कोर्ट के यूट्यूब चैनल पर लाइव देख सकेंगे

Read more!