गुजराती भाषा को घर में मिला सम्मान
नए कानून में कक्षा 1-8 तक गुजराती की पढ़ाई अनिवार्य की गई है; ऐसा न करने वाले स्कूलों को दंडित किया जाएगा

भाषाई आधार पर गठित एक राज्य के संदर्भ में यह बात हैरान करने वाली ही है कि गुजरात को अपने सभी स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं तक मूल भाषा यानी गुजराती की पढ़ाई को अनिवार्य बनाने में छह दशक लग गए. अब, राज्य में गुजराती भाषा पढ़ाना अनिवार्य होगा भले ही पढ़ाई का माध्यम या संबद्धता का आधार कुछ भी हो. ऐसा करके गुजरात भी महाराष्ट्र (1960 में राज्य गठन के पहले यह भी गुजरात की तरह तत्कालीन बॉम्बे स्टेट का हिस्सा था), पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है जिन्होंने बीते सालों के दौरान इसी तरह के कानून बनाए हैं.
गुजरात गुजराती भाषा अनिवार्य शिक्षण एवं अधिगम विधेयक, 2023 के तहत प्रस्तावित इस नए कानून को 28 फरवरी को विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया. वैसे तो यह कानून 2018 में सरकार की तरफ से जारी सरकारी संकल्प (जीआर) को सख्ती से लागू करने की कवायद है, जिसमें सभी स्कूलों, गैर-गुजराती माध्यम वाले भी, में गुजराती भाषा पढ़ाने पर जोर दिया गया था. अब, यह नियम न मानने वाले स्कूलों पर पहले तो तीन बार क्रमश: 50,000 रुपए, 1 लाख रुपए और 2 लाख रुपए का जुर्माना भरना होगा. और तीसरी बार उल्लंघन पर उनका पंजीकरण भी रद्द हो सकता है.
राज्य सरकार की तरफ से यह विधेयक ऐसे समय लाया गया जबकि पिछले महीने ही एक जनहित याचिका (पीआइएल) पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाइकोर्ट ने उसकी खिंचाई की थी. याचिका में 2018 के जीआर को 'उसकी मूल भावना के साथ पूरी तरह' लागू करने की मांग की गई थी. राज्य के प्राथमिक शिक्षा विभाग के अनुसार, अदालत के निर्देश पर सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि 4,520 स्कूलों में से केवल 14 में गुजराती नहीं पढ़ाई जा रही थी. हालांकि, जनहित याचिका दायर करने वाले अहमदाबाद के एनजीओ मातृभाषा अभियान का दावा है कि ऐसे स्कूलों की संख्या 100 के ऊपर है, जहां गुजराती बिल्कुल नहीं पढ़ाई जाती या फिर एक वैकल्पिक विषय है. वैसे अदालत ने संख्या की पुष्टि के लिए एक और सर्वेक्षण पर जोर दिया, लेकिन सरकार ने कानून लाने का फैसला किया.
गुजरात के प्राथमिक शिक्षा निदेशक डॉ. एम.आइ. जोशी के अनुसार, राज्य के गैर-अधिवासी छात्रों को गुजराती भाषा में पढ़ाई की अनिवार्यता से छूट दी गई है, जिनके माता-पिता 'अस्थायी रूप से' यहां काम कर रहे हैं, और इस तरह नियमों में आड़े आने वाले मसलों पर ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने जोड़ा, ''इसके अलावा, हमें केवल व्यावहारिक तौर पर होने वाली दिक्कतों को लेकर आपत्तियां आ रही हैं. स्कूलों को निश्चित रूप से एक अतिरिक्त विषय समायोजित करना होगा, लेकिन एक साल के भीतर इससे जुड़े मुद्दे हल हो जाने चाहिए.'' यह दावा करते हुए कि 2018 के जीआर आने के बाद से स्कूल इस तरह के कदम की उम्मीद कर रहे थे, जोशी ने यह भी कहा कि इससे उन युवाओं के लिए भी नौकरी के अवसर उत्पन्न होंगे जो गुजराती भाषा में स्नातक हैं.
मातृभाषा अभियान के एक ट्रस्टी राजेंद्र पटेल कहते हैं कि यह तथ्य 'वैज्ञानिक तौर पर सुस्थापित है' कि किसी छात्र की प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए ताकि वह बुनियादी अवधारणाओं को ठीक से समझ सके. वे कहते हैं, ''हम उच्च तकनीकी शिक्षा और बिजनेस की भाषा के लिहाज से अंग्रेजी की अहमियत को कमतर नहीं आंकते. लेकिन अंग्रेजी में प्रवीणता हासिल करना मातृभाषा की कीमत पर नहीं होना चाहिए.''
इसी क्रम में मौजूदा कानून पहली से आठवीं कक्षा तक गुजराती भाषा को केवल एक अनिवार्य विषय बनाता है और किसी भी स्थिति में यह नहीं कहता कि इसे स्कूलों में शिक्षण का माध्यम होना चाहिए.
गुजरात में 9,965 प्राथमिक स्कूल हैं, जिनमें लगभग 31 लाख बच्चों का नाम दर्ज है. इनमें करीब 25 लाख छात्रों वाले 6,018 स्कूलों में शिक्षा का माध्यम गुजराती है. पटेल कहते हैं कि अंग्रेजी 'आकांक्षित भाषा' है, और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल लगातार बढ़ रहे हैं. इनकी संख्या 3,478 यानी कुल का 35 फीसद है और यहां तक कि राज्य के अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी इनकी पैठ बढ़ रही है. भाषाविदों को यह आशंका सताती रही है कि कुछ दशकों में गुजराती अक्षर ज्ञान की भाषा नहीं रह जाएगी और सिर्फ बोल-चाल में ही बची रह जाएगी. विडंबना ही है कि पिछली बार 2020 में जब गुजरात शिक्षा बोर्ड ने दसवीं कक्षा की नियमित परीक्षा आयोजित की थी, तब अपनी पूरी स्कूली शिक्षा ही गुजराती माध्यम से करने वाले 14.5 प्रतिशत विद्यार्थी गुजराती भाषा के पेपर में फेल हो गए थे.
पटेल कहते हैं, ''शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे न केवल वर्णमाला सिखाएं, बल्कि छात्रों को गुजराती साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित भी करें.'' फिलहाल, कानून ही तय करेगा कि राज्य के बच्चे मातृभाषा में पढ़ें-लिखें.