अभिशाप बना वरदान

बिहार अपने उत्तरी जिलों से गंगा के बाढ़ का पानी दक्षिण के सूखे क्षेत्रों तक पहुंचाने की एक अनूठी परियोजना लेकर आया है.

खुशियों से लबालब:  गंगा जल आपूर्ति योजना के तहत राजगीर जिले में बनाया गया एक जलाशय
खुशियों से लबालब:  गंगा जल आपूर्ति योजना के तहत राजगीर जिले में बनाया गया एक जलाशय

खुशी का सूत्र

''गंगा का पानी न केवल पीने के लिए बल्कि नहाने, खाना पकाने और अन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा. इससे भू-जल स्तर में सुधार और सिंचाई में भी मदद मिलेगी’’
नीतीश कुमार,
मुख्यमंत्री, बिहार, परियोजना के उद्घाटन के मौके पर

गंगा जल आपूर्ति योजना, नवंबर, 2022 में योजना का उद्घाटन हुआ, बिहार

हर मॉनसून में बिहार अपने आप को एक अजीबोगरीब संकट में घिरा पाता है. जब उत्तरी बिहार उफनती हिमालयी नदियों के गंगा में आ मिलने के कारण आई बाढ़ से बेहाल रहता है और साल दर साल 20 लाख से अधिक परिवार प्रभावित होते हैं, उसी दौरान राज्य के दक्षिणी इलाके के लगभग 20 जिले खुद को सूखे जैसी स्थिति में फंसा हुआ पाते हैं. पानी की कमी के बहुत से कारण हैं. सोन को छोड़कर दक्षिणी बिहार की अधिकांश नदियों का बहुत छोटा होना, मिट्टी का पथरीली या रेतीली होना और अनियमित बारिश, आदि इनमें से कुछ प्रमुख हैं. 

2018 के अंत में एक सुबह इंजीनियर से राजनेता बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नौकरशाहों और राजनेताओं के एक चुनिंदा समूह के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे, तब उन्हें एक नया विचार आया. क्या कोई ऐसा तरीका हो सकता है जिससे राज्य के उत्तरी मैदानी इलाकों से बाढ़ के पानी को साफ करके दक्षिण के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचाना संभव हो जाए?

लेकिन जब जल संसाधन विभाग ने मुख्यमंत्री के विचार को व्यावहारिक समाधान में बदलने के लिए अपना शोध शुरू किया, तो पूरे भारत में उसे ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिला. फिर जून 2019 में, नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो अपने करीबी विश्वासपात्र संजय झा को जल संसाधन विभाग सौंपा. इसके बाद, परियोजना को फलीभूत करने के लिए हैदराबाद स्थित मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआइएल) के साथ एक समझौता किया गया.

इसका उद्देश्य मॉनसून के चार महीनों (जून-सितंबर) के दौरान अतिरिक्त गंगा जल को खींचकर, उसका भंडारण करना और साफ करके राज्य की राजधानी पटना से लगभग 90-130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित राजगीर (नालंदा जिला), गया और बोधगया (गया जिला) के ऐतिहासिक शहरों में साल भर पीने योग्य पानी की आपूर्ति करना था.

प्राचीन मगध साम्राज्य का केंद्र जिसके बौद्ध और जैन धर्म दोनों के संस्थापकों के साथ संबंध रहे हैं, बिहार के सबसे सूखे क्षेत्रों में से एक है. साल के अधिकांश समय यहां के हैंडपंप सूखे पड़े रहते हैं और स्थानीय लोगों को निकटवर्ती जिलों से पानी के टैंकर मंगवाने पड़ते हैं.

जल संसाधन सचिव संजय अग्रवाल मानते हैं कि इस क्षेत्र में बचे हुए गंगा जल को लाने की कल्पना जितनी आसान थी, उसे संभव करना उतना ही मुश्किल. 2020 और 2021 में दो कोविड-19 लहरों ने परियोजना की प्रगति को धीमा कर दिया, तो इससे भी बड़ी परेशानी इंजीनियरिंग से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने की थी. बाढ़ के पानी का दोहन करना एक बात थी, लेकिन फिर मौजूदा बुनियादी ढांचे के माध्यम से रास्ता बनाते हुए इसे एक घुमावदार इलाके में पहुंचाना एक पूरी तरह से नई चीज थी.

वास्तव में, पानी की पाइपलाइनों का सामना कुल 29 रोड क्रॉसिंग, 28 नदी, नाले और बड़े नाले के क्रॉसिंग, 11 तेल पाइपलाइन क्रॉसिंग और 7 रेलवे क्रॉसिंग से होना था. इसलिए, जब इंजीनियर इन सभी बुनियादी ढांचे और जमीनी चुनौतियों से निबटने के लिए एक मॉडल तैयार करने में जुटे थे, तब नौकरशाहों को परियोजना की प्रगति की निगरानी के अलावा, अनापत्ति मंजूरी के लिए कई केंद्रीय एजेंसियों को साधना था. 

लेकिन जल संसाधन विभाग ने समस्याओं से ज्यादा समाधान पर ही ध्यान लगाए रखा. और अंत में, एक विचार जो शुरू में असंभव सा लग रहा था, वह पिछले साल नवंबर के अंत में परवान चढ़ गया जब नीतीश कुमार ने 4,000 करोड़ रुपए की गंगाजल आपूर्ति योजना शुरू की. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राजगीर में परियोजना का शुभारंभ करते हुए सीएम ने घोषणा की, ''आपके घर में पहुंचा गंगा का पानी न केवल पीने के लिए बल्कि नहाने, खाना पकाने और अन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा... यह इन जिलों में भूजल स्तर में सुधार करके सिंचाई जरूरतों को पूरा करने में भी मदद करेगा.’’ 

ये अभी शुरुआती दिन हैं. अब तक, राजगीर, गया और बोधगया में लगभग 1,00,000 घरों, या 50 लाख की आबादी को, नलों के माध्यम से उनके घरों में उपचारित गंगा जल उपलब्ध कराया जा रहा है. औसतन प्रत्येक व्यक्ति के पीने और घरेलू उपयोग के लिए प्रतिदिन लगभग 135 लीटर पानी मिल रहा है. राजगीर से 25 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में नवादा में बन रहा एक और वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, नवादा बस्ती में आपूर्ति के लिए प्रतिदिन 360 लाख लीटर पानी को शुद्ध करेगा. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह साल के अंत तक चालू हो जाना चाहिए.

यदि विनाशकारी बाढ़ के पानी को बिहार के सूखे क्षेत्रों के लिए वरदान में बदलने का विचार शानदार है, तो इसका क्रियान्वयन इंजीनियरिंग उत्कृष्टता का एक उदाहरण है. इसमें पटना जिले में गंगा के तट पर स्थित हाथीदह से लाखों लीटर पानी को भूमिगत और जमीन के ऊपर स्टील पाइपलाइनों के एक जटिल नेटवर्क के माध्यम से समुद्र तल से औसतन 123 मीटर ऊपर गया के जेठियन हिल्स के पास ले जाना शामिल है.

सबसे पहले, पानी को नवादा में मोटनाजे में एक संग्रह केंद्र में स्थानांतरित कर दिया जाता है (घर्षण और पारगमन हानि को कम करने के लिए), जहां से इसे आगे तीन बड़े जलाशयों में ले जाया जाता है इनमें से दो गया में और एक राजगीर में है. इनमें से 150 किमी पर हाथीदह का जलाशय सबसे अधिक दूरी पर स्थित है. यहां से पाइपलाइनों, उपचार संयंत्रों और आपूर्ति स्टेशनों के एक अतिरिक्त नेटवर्क के माध्यम से पानी को साफ करके इसकी विभिन्न घरों में पानी आपूर्ति की जाती है. 

फिलहाल, परियोजना की क्षमता 2051 तक अनुमानित आबादी को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. लेकिन, गया, नालंदा और नवादा जिलों के अन्य हिस्सों तक पहुंचने के लिए नेटवर्क का और विस्तार किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परियोजना एक ऐसे मॉडल के रूप में काम करेगी जिसे दोहराकर गंगा और उसकी सहायक नदियों से बाढ़ के पानी की राज्य के अन्य जल संकट वाले क्षेत्रों में आपूर्ति की जा सकेगी.

—अमिताभ श्रीवास्तव

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