उद्धारक की तलाश में रेणु परिकथा

दक्षिणेश्वर इसी जनवरी में यहां आए थे और फरवरी के पहले हफ्ते तक रहे. वे फोन पर बताते हैं, ''1955-60 के बीच में यह फ्लैट मेरी छोटी मां और पिताजी ने मिलकर लिया था. पिता जब तक जीवित रहे, वहीं रहे. उस फ्लैट की उम्र भी साठ साल से अधिक हो रही है, ऐसे में उसका जर्जर होना स्वाभाविक है.

रेणु के गांव औराही हिंगना (जिला अररिया) में बनाए गए रेणु स्मृति भवन का भी कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा 
रेणु के गांव औराही हिंगना (जिला अररिया) में बनाए गए रेणु स्मृति भवन का भी कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा 

पुष्यमित्र

बिहार की राजधानी पटना के राजेंद्र नगर मोहल्ले के वैशाली गोलंबर के चारों तरफ पीले रंग की पुरानी हाउसिंग कॉलोनियां हैं. यह पटना शहर की सबसे पुरानी हाउसिंग कॉलोनियों में से है. इसी कॉलोनी के बी ब्लॉक के 30 नंबर फ्लैट में कभी हिंदी के मशहूर कथाकारों में से एक फणीश्वरनाथ रेणु रहा करते थे. आज यह सूना पड़ा है. फ्लैट की बाहरी दीवारों का पलस्तर उखड़ गया है, अंदर कमरे में बीम में दरार पड़ने लगी हैं.

इस पुराने और जर्जर फ्लैट में 2009 तक रेणु की तीसरी पत्नी लतिका रहा करती थीं. अब यहां रेणु और लतिका के इस्तेमाल किए गए पुराने फर्नीचर, दीवारों पर टंगी तस्वीरें, पुराने बरतन, रेणु के कुर्ते, बंडी, लुंगी, गमछे, उनका चश्मा, शेविंग सेट और ऐसी ही दूसरी चीजें रखी हुई हैं. इस खस्ताहाल फ्लैट में ऐतिहासिक महत्व की ये दुर्लभ चीजें यूं ही पड़ी हैं. हिंदी के इस नामचीन लेखक के व्यक्तिगत इस्तेमाल की इतनी चीजें यहां हैं कि एक ढंग का संग्रहालय तैयार हो सकता है. मगर इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है.

पुराने ढंग के बने इस फ्लैट में दरवाजे से अंदर घुसने के बाद एल आकार का गलियारा है. दो कमरे, किचन, एक स्टोर रूम और एक शौचालय. बताते हैं रेणु परती परिकथा के प्रकाशन के बाद इस फ्लैट में रहने आए थे. इस उपन्यास को लिखते वक्त वे लतिका के साथ इलाहाबाद और बनारस में रहे थे.

लतिका उनकी तीसरी पत्नी थीं, जो पटना के पीएमसीएच में नर्स थीं. रेणु की पहली पत्नी का देहांत हो गया था और दूसरी पत्नी पद्मा अररिया जिले के उनके गांव औराही हिंगना में रहती थीं. यह फ्लैट लतिका ने ही खरीदा था. 2009 तक वे इसमें रहीं. बुढ़ापा आने पर वे भी औराही हिंगना चली गईं. 2011 में वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली.

रेणु ने अपने आखिरी चर्चित रिपोर्ताज पटना-जलप्रलय में इस फ्लैट के बारे में विस्तार से लिखा है. यह पटना शहर में 1975 में आई भीषण बाढ़ का आंखों देखा हाल है, जो 26 अक्तूबर, 1975 को दिनमान में छपा और फिर उनके रिपोर्ताज संग्रह समय की शिला पर में.

यह फ्लैट आज भी लतिका रेणु के नाम पर है. इसकी चाभियां रेणु की दूसरी पत्नी से जन्मीं उनकी बेटी नवनीता सिन्हा के पास हैं, जो पास के ही मोहल्ले में रहती हैं और कभी-कभार आकर इस फ्लैट की देखरेख करती हैं. नवनीता कहती हैं, ''परिवार के लोगों ने एक बार इस फ्लैट की मरम्मत कराई है. बाबूजी की यादगार जो चीजें हैं, उन्हें मैं एक आलमारी में सहेजकर रखने की कोशिश करती हूं. मगर मेरे पास वह कौशल नहीं है कि इन्हें ठीक से संरक्षित करके रख सकूं.

जेपी आंदोलन में जब बाबूजी पर लाठियां बरसाई गई थीं, तब उनका कुर्ता खून से भीग गया था. उस कुर्ते को बाबूजी ने यादगार के तौर पर संभाल कर रखा था मगर वह बेहतर संरक्षण के अभाव में खराब हो गया.’’ वे बताती हैं कि सितंबर, 2020 में एक चोर ने इस फ्लैट में घुसकर रेणु की कुछ किताबें और पांडुलिपियां चुरा लीं. तब से थोड़ी सतर्कता बरती जा रही है. सारी दुर्लभ चीजें एक कमरे में बंद कर दी गई हैं और दूसरे कमरे में देखरेख के लिए एक छात्र को रहने की इजाजत दे दी गई है, ताकि देखभाल हो सके.

इस धरोहर को दिखाने के आग्रह पर बेटे विक्रांत के साथ फ्लैट में पहुंचकर नवनीता अपने पिता की यादगार चीजें बड़े प्यार से दिखाती हैं. साथ ही वे अपनी विवशता भी जाहिर करती जाती हैं कि यह सब संभाल पाना अब उनके बस की बात नहीं. ''मेरी उम्र भी अधिक हो रही है. छोटी मां (लतिका) जी की कोई संतान न थी वरना वे लोग देखरेख करते. अभी मैं और कभी-कभार मेरे भाई (दक्षिणेश्वर प्रसाद राय) आते हैं. वे गांव में रहते हैं.’’

दक्षिणेश्वर इसी जनवरी में यहां आए थे और फरवरी के पहले हफ्ते तक रहे. वे फोन पर बताते हैं, ''1955-60 के बीच में यह फ्लैट मेरी छोटी मां और पिताजी ने मिलकर लिया था. पिता जब तक जीवित रहे, वहीं रहे. उस फ्लैट की उम्र भी साठ साल से अधिक हो रही है, ऐसे में उसका जर्जर होना स्वाभाविक है.

हम लोग पिता की विरासत को गांव से लेकर पटना तक संभालने की कोशिश करते हैं, मगर हमारी आय इतनी नहीं है कि यह सब संभाल सकें. किसी दिन फ्लैट की छत गिर-गिरा गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हमारी स्थिति ऐसी नहीं है हम उसका जीर्णोद्धार करवा सकें. ऐसे में सरकार को पहल करनी चाहिए.’’

रेणु की यादगार कई स्मृतियां उनके पैतृक गांव औराही हिंगना में हैं, जिन्हें दक्षिणेश्वर राय और उनके बड़े भाई पूर्व विधायक पद्मपरागराय वेणु ने संभाल कर रखा है. उस इलाके में अक्सर शोधार्थी, साहित्य प्रेमी और राजनेताओं का आना-जाना लगा रहता है. इसी को देखते हुए 2013 में उनके गांव में एक रेणु स्मृति भवन का निर्माण पौने दो करोड़ रुपए की लागत से कराया गया था. उसमें संग्रहालय, पुस्तकालय और शोधार्थियों के रहने की व्यवस्था भी की जानी थी. वहां 75 लाख रुपए की सामग्री की खरीद भी की गई. मगर जनवरी, 2020 में वहां भी चोरों ने एलईडी टीवी समेत नौ लाख रुपए की सामग्री चुरा ली.

इस बारे में दक्षिणेश्वर कहते हैं, ''दरअसल, रेणु स्मृति भवन की व्यवस्था अगर ठीक से हुई होती तो आज यह दिक्कत नहीं आती. वहां भवन बन गया, कुछ सामान खरीदे गए, मगर न उनकी ठीक से व्यवस्था हुई, न देखरेख के लिए स्टाफ रखा गया. संग्रहालय का कमरा सूना पड़ा है. उस कमरे में मेरे पिता की धरोहर को सजाकर रखा जाता तो वह वहां संरक्षित रहती.

मगर यह काम कोई संग्रहालय विशेषज्ञ ही कर सकता है. हम लोगों जैसे गैरतजुर्बेकार व्यक्तियों से यह सब मुमकिन नहीं. पुस्तकालय में आलमारी की खरीद हो गई है, मगर किताबें नहीं आई हैं. एक तरफ तो पौने दो करोड़ रुपए का भवन खाली पड़ा है, दूसरी तरफ पटना का वह फ्लैट जहां मेरे पिता की विरासत है, जर्जर हाल में है और कभी भी गिर सकता है.’’

हिंदी के चर्चित कवि आलोक धन्वा अपनी युवावस्था में रेणु के काफी करीब रहे. पटना वाले फ्लैट पर वे अक्सर उनसे मिलने आया करते थे. वे कहते हैं, ''मेरा मानना है कि उस फ्लैट को तो बचाया ही जाए, मगर रेणु की यादगार चीजों को उनके गांव के संग्रहालय में सजाकर रखा जाए.

राष्ट्रकवि दिनकर, अज्ञेय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और रघुवीर सहाय जैसे बड़े साहित्यकार और बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने गिरिजा प्रसाद कोइराला जैसे नेता उस फ्लैट में रेणु से मिलने आते थे. लतिका जी की मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने सरकारी तौर पर तय किया था कि फ्लैट का जिम्मा अब रेणु जी के बच्चों और दक्षिणेश्वर का होगा.’’

इस मामले में बिहार सरकार के संग्रहालय और पुरातत्व निदेशक दीपक आनंद की प्रतिक्रिया विस्मयबोधक थी: ''रेणु जी को स्कूलों में ही पढ़ा था. पटना में उनका फ्लैट है और वहां धरोहर से जुड़ी चीजें हैं, यह मालूम न था. मुझे इस बारे में भी कोई सटीक जानकारी नहीं कि उनके गांव में रेणु स्मृति भवन बना है, और उसमें संग्रहालय बनाने की भी योजना है. इस बारे में पता करवाता हूं, तभी कुछ कह पाऊंगा.’’ 

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