तूफान की आहट
सरकार पर्यावरण के अनुकूल ई-वाहन ला रही है. ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जो पर्यावरण को नष्ट करता हो

मोअज्जम मोहम्मद, श्रीनगर से
शून्य से 20 डिग्री सेंटीग्रेड कम तापमान पर लद्दाख के ऊंचे पठारी इलाकों में कड़ाके की ऐसी सर्दी को शायद ही किसी बड़े प्रदर्शन के आयोजन का सही समय माना जाएगा. फिर भी ऐसे मौसम का बहादुरी से सामना करते हुए, शैक्षिक सुधारवादी और इनोवेटर सोनम वांगचुक के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए सैकड़ों लद्दाखी 31 जनवरी को लेह के पोलो ग्राउंड में इकट्ठा हुए. मैग्सेसे पुरस्कृत वांगचुक ने लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी की ओर ध्यान खींचने के लिए 26 जनवरी से लद्दाख के फ्यांग में पांच दिवसीय 'जलवायु-उपवास' शुरू किया था, जिसके बारे में उनका कहना है कि इसे अनियंत्रित विकास, पर्यटन और वाणिज्यिक गतिविधियों से गंभीर खतरा है. वांगचुक लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं, जिससे लद्दाखियों को उनकी भूमि पर हर दृष्टि से पहले से अधिक अधिकार मिल जाएगा.
अपने उपवास से चार दिन पहले वांगचुक ने खारदुंग ला, जो दुनिया के ऐसे सबसे ऊंचे दर्रों में से एक है जहां सड़कें हैं, से अपने 13 मिनट के वीडियो 'लद्दाख के मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित किया. फ्रीजिंग पॉइंट से नीचे के तापमान में बर्फ के बीच से गुजरते वांगचुक का संदेश बिल्कुल साफ था—अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के तीन साल बाद भी लद्दाख में 'सब कुछ ठीक नहीं है.' अगस्त 2019 में इस अनच्छेद को निरस्त करके जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, लद्दाख व जम्मू और कश्मीर में बांट दिया गया था.
केंद्र ने लद्दाख को कई बार छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया है. लद्दाख में लेह और करगिल जिले शामिल हैं. 90 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी के साथ यह क्षेत्र अब छठी अनुसूची में शामिल होने के लिए दबाव बना रहा है, ताकि इसकी जमीन, आजीविका और पर्यावरण की सुरक्षा पक्की हो सके. यह इलाका रणनीतिक रूप से भी बहुत अहम है. यह चीन और पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करता है और यहां की आबादी 2.7 लाख है. फिलहाल असम, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा छठी अनुसूची में शामिल हैं.
छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में विधायी और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ स्वायत्त जिला परिषदों की स्थापना की अनुमति देती है. हालांकि लेह और करगिल 1995 से स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों से शासित हैं पर यह दर्जा मिल जाने पर उनकी शक्तियां बढ़ जाएंगी. छठी अनुसूची में शामिल होने से भूमि, वन और व्यापार पर कानून बनाने का अधिकार मिलने के अलावा संपत्ति, बाजार, शिक्षा, टैक्सेशन और खनन गतिविधियों पर परिषद का नियंत्रण होगा. अक्तूबर 2020 में लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) के अपने चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ने छठी अनुसूची के तहत लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का वादा किया था.
11 सितंबर, 2019 को डॉ. नंद कुमार साय के नेतृत्व में अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की थी. केवल 50 प्रतिशत या उससे अधिक जनजातीय आबादी वाले क्षेत्र छठी अनुसूची के लिए अर्जी देने के हकदार हैं. लद्दाख अपनी बल्ती, बेदा, बोत, बोतो, ब्रोकपा, ड्रोकपा, डार्द, शिन, चंगपा, गर्रा, मोन और पुरिग्पा जनजातियों के साथ यह पात्रता रखता है. हालांकि, गृह मंत्रालय ने पिछले साल एक स्थायी संसदीय समिति को बताया कि ''आदिवासी आबादी को पांचवीं/छठी अनुसूची में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनका समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है'', जिसका ''लद्दाख का केंद्र शासित प्रशासन, इसके निर्माण के बाद से ही पूरा ध्यान रख रहा है.''
पोलो ग्राउंड में वांगचुक ने कहा, ''राजनेता कभी-कभी विकास के लिए जलवायु के खिलाफ निर्णय लेकर विकास को विनाश में बदल देते हैं. हम छठी अनुसूची के तहत अपने क्षेत्र की सुरक्षा चाहते हैं.'' उन्होंने यह भी कहा कि पूरा क्षेत्र हिमालय के ग्लेशियरों के पानी पर निर्भर है, और कैसे हाल के अध्ययनों ने मानव गतिविधियों के कारण लद्दाख के दो-तिहाई ग्लेशियरों के विलुप्त होने की भविष्यवाणी की है. वे पूछते हैं, ''आज छठी अनुसूची के बारे में बात करना अपराध क्यों है? पुलिस युवाओं को इस बारे में बात करने के लिए गिरफ्तार कर रही है. यह अलगाव का कारण बन सकता है. क्या आपको अपने वादों की याद दिलाना कोई अपराध है?''
वांगचुक का यह विरोध लेह एपेक्स बॉडी ऑफ पीपल्स मूवमेंट फॉर सिक्स्थ शेड्यूल (एपेक्स) और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) के संयुक्त संघर्ष के साथ जुड़ गया है, जबकि इन संगठनों में आपस में कई मतभेद हैं. यह बौद्ध-मुस्लिम गठबंधन संयुक्त रूप से पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपाय, नौकरी में आरक्षण, लोक सेवा आयोग की स्थापना और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या एक से बढ़ाकर दो करने की अपनी चार सूत्री मांगों के लिए अभियान चला रहा है.
गृह मंत्रालय ने लद्दाख की भूमि और नौकरी के अधिकारों और भाषा व संस्कृति की सुरक्षा पर चर्चा करने के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व में 2 जनवरी को एक 17 सदस्यीय पैनल का गठन किया. हालांकि, एपेक्स और केडीए ने इसे खारिज कर दिया क्योंकि उनके चार सूत्र पैनल के एजेंडे में शामिल नहीं हैं. 20 जनवरी को अपनी प्रतिक्रिया में गठबंधन ने इन सूत्रों पर बात करने की जरूरत पर जोर दिया.
पैनल के 17 सदस्यों में नामित, करगिल में प्रभावशाली इस्लामिया स्कूल से रिश्ता रखने वाले और केडीए सदस्य सज्जाद हुसैन करगिली का कहना है कि उन्हें जवाब का इंतजार है. वे मानते हैं कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद लोगों की दिक्कतें बढ़ गई हैं. 40 वर्षीय करगिली कहते हैं, ''हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. सभी निर्णय नौकरशाह लेते हैं. हम अपनी विधानसभा चाहते हैं. हमारे युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं क्योंकि जमीन और नौकरियों की कोई सुरक्षा नहीं और अब जलवायु संकट भी सामने है.'' संयुक्त गठबंधन 15 फरवरी को नई दिल्ली में जंतर मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहा है. वांगचुक संभवत: एपेक्स-केडीए गठबंधन का समर्थन करने जा रहे हैं.
लद्दाख भाजपा के अध्यक्ष फुनचोक स्टैनजिन का कहना है कि उनकी पार्टी पारिस्थितिकी के संरक्षण और स्थानीय लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का समर्थन करती है, लेकिन छठी अनुसूची लद्दाख के लिए संभव नहीं है. वे कहते हैं, ''पर्यावरण और छठी अनुसूची का आपस में कोई संबंध नहीं है. इसमें कुछ कमियां हैं और यह हमारे लिए उपयुक्त नहीं. यह पूर्वोत्तर के लिए था जहां अधिकांश भूमि वनों से आच्छादित है. एलएडीएचसी के पास भूमि और पर्यावरण की रक्षा के लिए अनुच्छेद 370 की तर्ज पर शक्तियां हैं.'' यही नहीं, ''उच्च अधिकारसंपन्न कमेटी लद्दाख की सुरक्षा के लिए थी, लेकिन लोग इस पर चर्चा करने से बचने के लिए बहाने बना रहे हैं.'' स्टैनजिन ने लद्दाख में 13 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की निकासी और ग्रिड एकीकरण के लिए 20,700 करोड़ रुपए की अंतरराज्यीय पारेषण प्रणाली परियोजना का जिक्र करते हुए लद्दाख को लेकर केंद्र की प्रतिबद्धता की ओर इशारा किया. वे कहते हैं, ''सरकार पर्यावरण के अनुकूल ई-वाहन ला रही है. ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जो पर्यावरण को नष्ट करता हो.''
इस बीच, मांगें पूरी न होने पर वांगचुक अब 10 दिनों के उपवास की योजना बना रहे हैं और फिर धीरे-धीरे इसकी अवधि बढ़ाएंगे. वे कहते हैं, ''10 दिन बाद मैं 15 दिन के लिए उपवास करूंगा, फिर 20 और यह तब तक बढ़ेगा जब तक सरकार हमारी मांगों को नहीं सुनती.''