हर फन में फन्ने खां

वरुण ग्रोवर को अभी तक आप गीतकार, कॉमेडियन या पटकथा लेखक के रूप में जानते होंगे, पर हाल ही आई फिल्म कला ने बताया कि वे अभिनय भी कर सकते हैं. वे डायरेक्शन में भी उतर चुके हैं. क्या है जो वे नहीं कर सकते!

वरुण ग्रोवरः गीतकार, कॉमेडियन,पटकथा लेखक
वरुण ग्रोवरः गीतकार, कॉमेडियन,पटकथा लेखक

कला में परदे पर एक गीतकार का रोल निभाते क्या आपको अपने क्राफ्ट के बारे में कुछ नई सीख मिली?

गीतकार होने के बारे में तो नहीं पर यह सबक जरूर दे दिया कि अभिनय बड़ा मुश्किल काम है. ऐक्टर इसीलिए अक्खड़ और अनमने बन जाते हैं क्योंकि अच्छा अभिनेता बनने को उन्हें बड़ा पसीना बहाना पड़ता है. उन्हें को-ऐक्टर्स, कैमरा और संवादों के साथ लय साधनी पड़ती है. यह कुछ-कुछ सामूहिक ध्यान जैसा है.

कला और मोनिका, ओ माइ डार्लिंग के लिए लिखे आपके गाने गहरे अर्थ वाले हैं पर क्या आपको नहीं लगता कि हिंदी फिल्म म्युजिक ने अपनी पहले वाली अपील कहीं खो दी है?

गानों की तादाद बहुत बढ़ गई है और सबकी उम्र उतनी लंबी नहीं होती. बहुत-से गाने तो फौरी इस्तेमाल के लिए बनाए जाते हैं. फिर वे छह महीने में भुला दिए जाएं तो आप उन्हें कसूरवार नहीं ठहरा सकते. पर मुझे नहीं लगता कि हिंदी फिल्म म्युजिक का स्तर गिर गया है.

सेंसरशिप पर आपकी शॉर्ट फिल्म किस हाल ही में बीजिंग क्वीयर फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई. क्या चीन में इस पर कुछ लोगों की त्यौरियां चढ़ीं?

मैं तो यही सुनकर हैरत में था कि मेरी फिल्म चीन में दिखाई जाने वाली है. पर जैसा कि देखने में आता है, किसी मुल्क की एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग ही हमेशा इस सब्जेक्ट को आगे बढ़ाते हैं. मेरे ख्याल से आर्ट का मकसद ही प्लेटफॉर्म गढ़ना और एक खोई लिबरल जमीन फिर से हासिल करना है.

आप गीतकार, कॉमेडियन, डायरेक्टर, लेखक और क्या-क्या हैं, पर पसंदीदा विधा कौन-सी है?

सबसे ज्यादा तो मुझे कुकिंग पसंद है. हालांकि यह काम मैं खुद के लिए या फिर जिगरी दोस्तों की खातिर करता हूं, पर इसमें दो राय नहीं कि खाना बनाना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है. खैर, मजाक छोड़िए, एक लेखक होना और कॉमेडी, गानों या स्क्रीनराइटिंग में विचार व्यक्त करना भी मुझे बेहद पसंद है. इस सब में मुझे मजा आता है.

-श्रीवत्स नेवटिया

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