उत्तर प्रदेशः कुर्मी-मौर्य को साधने की जंग

साल 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजे सबसे ज्यादा इस बात पर निर्भर करेंगे कि कुर्मी-मौर्य जातियों को अपने पाले में करने में भाजपा और सपा में से कौन-सा दल कामयाब हो पाएगा

बड़ी चुनौती: सिराथू से चुनाव लड़ रहे केशव प्रसाद मौर्य के सामने कुर्मी-मौर्य वोटों को थामे रखने की चुनौती है
बड़ी चुनौती: सिराथू से चुनाव लड़ रहे केशव प्रसाद मौर्य के सामने कुर्मी-मौर्य वोटों को थामे रखने की चुनौती है

उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना नदियों के दोआब में बसे कौशाम्बी जिले की सियासी अहमियत बढ़ने के संकेत विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले ही मिलने लगे थे. पहली बार केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी 6 जनवरी को योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री और लोक निर्माण विभाग के मंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ कौशाम्बी जिले की चायल तहसील के सकाढ़ा गांव में आए थे. वहां गडकरी ने ढाई हजार करोड़ रुपए से अधिक की सड़क परियोजनाओं की नींव तो रखी ही, मंच पर मौजूद केशव मौर्य की तारीफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. 2022 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के ठीक अगले दिन 9 जनवरी को भाजपा कार्यसमिति सदस्य और केशव के करीबी अरुण अग्रवाल को कौशाम्बी की सिराथू विधानसभा सीट का प्रभारी बनाए जाने के बाद अटकलों का बाजार गर्म हो गया था. अटकलें सही साबित हुईं जब 15 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर और केशव को सिराथू सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया.

भाजपा ने सिराथू से केशव मौर्य को एक सोची-समझी रणनीति के तहत उम्मीदवार बनाया है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गढ़ रहे इस इलाके में भाजपा का जनाधार बनाने में केशव का काफी योगदान है. 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रतापगढ़, प्रयागराज और कौशाम्बी की कुल 22 विधानसभा सीटों में से एकमात्र सिराथू ही ऐसी सीट थी जहां भाजपा को जीत मिली थी. केशव मौर्य ने सिराथू सीट पर पहली बार भाजपा का खाता खोला था. सिराथू के अचानक हाइप्रोफाइल सीट बन जाने से उत्साहित नंदकिशोर पटेल बीते 20 वर्ष से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सिराथू के सामने दवा की दुकान चला रहे हैं. वे बताते हैं, ''केशव मौर्य ने बसपा समर्थक अतिपिछड़ी जातियों को भाजपा से जोड़ा.

उत्तर प्रदेशः कुर्मी-मौर्य को साधने की जंग

इसी समर्थन के बल पर वे 2014 में फूलपुर से सांसद बने और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दोबारा सिराथू सीट पर कब्जा जमाया.'' सिराथू में यह केशव का ही प्रभाव है कि 15 जनवरी को उम्मीदवारी की घोषणा होते ही इस सीट से वर्तमान विधायक शीतला प्रसाद उर्फ पप्पू पटेल कौशाम्बी में केशव मौर्य के आवास पर पहुंचने वाले पहले नेता थे. शीतला प्रसाद ने केशव के आवास के बाहर आतिशबाजी कराई और मिठाई बांटकर अपनी खुशी का इजहार किया. प्रसाद बताते हैं, ''केशव जी के सिराथू से विधानसभा चुनाव लडऩे का असर यूपी की गैर यादव पिछड़ी जातियों पर पड़ेगा. ये जातियां और मजबूती से भाजपा के समर्थन में जुटेंगी.''

गंगा नदी रायबरेली की ऊंचाहार, प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से सिराथू को अलग करती है. गंगा किनारे सब्जियों की खेती करने वाली जातियों में मौर्य की बहुलता है. गंगा नदी से करीब दस किलोमीटर दूर कानपुर-प्रयागराज फोरलेन हाइवे गुजरता है. इस हाइवे के इर्दगिर्द पटेल जातियों की बस्तियां हैं. सियासी दलों के अनुमान के मुताबिक, सिराथू विधानसभा सीट पर 28 हजार मौर्य और 30 हजार पटेल मतदाता हैं. सिराथू में सबसे ज्यादा करीब सवा लाख दलित मतदाता हैं. इन दलित मतदाताओं में 70 फीसद पासी जाति के हैं जो ज्यादातर खेतिहर मजदूर हैं.

इसके अलावा मुस्लिम 50 हजार, यादव 22 हजार और ब्राह्मण 20 हजार हैं. केशव मौर्य ने दलित, पटेल और ब्राह्मण मतदाताओं के गठजोड़ से सिराथू को भाजपा के मजबूत गढ़ में तब्दील किया है. मौर्य के साथ पटेल (कुर्मी) मतदाताओं को साधे रखने के लिए ही 3 फरवरी को कौशाम्बी में केशव मौर्य के नामांकन में अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल भी मौजूद थीं. सिराथू से पटेल जाति के विधायक का टिकट कटने से उपजे सवालों को शांत करने लिए सिराथू से सटी चायल विधानसभा सीट पर अनुप्रि‍या पटेल ने 2018 में समाजवादी पार्टी (सपा) उम्मीदवार के तौर पर फूलपुर सीट पर लोकसभा उपचुनाव जीतने वाले नागेंद्र सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया है. 

उत्तर प्रदेशः कुर्मी-मौर्य को साधने की जंग

सिराथू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से मंझनपुर जाने वाली सड़क पर एक किलोमीटर की दूरी पर अपने केंद्रीय चुनाव कार्यालय में केशव मौर्य ने डेरा डाल रखा है. भाजपा के स्टार प्रचारक के रूप में शुमार केशव रोज शाम और दोपहर 12 बजे तक इसी कार्यालय में स्थानीय नेताओं के साथ बैठककर चुनावी तैयारियों का आकलन करते हैं. कार्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर कैथनबाग इलाके में एयरबस कंपनी का हेलिकॉप्टर तैयार खड़ा रहता है. केशव सिराथू से ही उड़ान भरकर दूसरे जिलों में प्रचार के लिए जाते हैं और वापस यहीं लौट आते हैं. कार्यालय में बने एक सभागार में अब तक एक दर्जन से अधिक प्रमुख नेताओं को भाजपा में शामिल कराया गया है. सिराथू में 13 फरवरी को एक साथ आठ सभाएं करने के बाद अगले दिन जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश कुशवाहा, दिवंगत विधायक राजू पाल के करीबी रहे बसपा नेता उमेश पाल को अपने साथ जोड़कर केशव भाजपा समर्थकों की संख्या बढ़ाने की कोशि‍श कर रहे हैं. केशव मौर्य चुनाव प्रचार में लगी भाजपा की दो दर्जन से अधिक टोलियों से केशव यह कहना नहीं भूलते, ''दलित के घर नहीं गए तो मेरा प्रचार अधूरा है.'' 

उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को उनके घर में ही घेरने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल की बड़ी बेटी पल्लवी पटेल को सिराथू से चुनाव में उतारा है. अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की चार बेटियों में सबसे बड़ी पल्लवी पटेल अपने चुनाव प्रचार में पूरे जोश के साथ जुटी हैं. पल्लवी छोटी-छोटी सभाएं करके समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही हैं. सपा के परंपरागत यादव-मुस्लिम वोट के अलावा पल्लवी इसमें पटेल मतदाताओं का समर्थन जोड़ने की जुगत लगा रही हैं.

हर सभा में अपने संबोधन की शुरुआत पल्लवी सोनेलाल पटेल और कृष्णा पटेल की जय बोलने के साथ करती हैं. पटेल स्वाभिमान जगाने के लिए पल्लवी, कृष्णा पटेल के नाम के आगे 'राजमाता' शब्द जरूर जोड़ती हैं. केशव की मजबूत घेराबंदी के लिए अखिलेश ने सिराथू से लगी हुई मंझनपुर (सुरक्षित) सीट से पासी जाति के इंद्रजीत सरोज को उम्मीवार बनाया है. सपा ने अपना दल (कमेरावादी) से गठबंधन करके उसे छह सीटें दी हैं. पटेल (कुर्मी) समुदाय को सकारात्मक संदेश देने के लिए 12 जनवरी को लखनऊ के 19 विक्रमादित्य मार्ग पर प्रदेश मुख्यालय में आयोजित सपा के सहयोगियों के साथ बैठक में अखिलेश ने कृष्णा पटेल को बीच की कुर्सी पर बिठाया और खुद सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया होने के बावजूद किनारे की कुर्सी पर बैठे.

पटेल वोटों की लामबंदी के लिए कृष्णा पटेल खुद कौशाम्बी से सटे जिले प्रतापगढ़ की सदर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं. सोनेलाल पटेल की तीसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) 18 सीटों पर भाजपा से गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है. प्रतापगढ़ (सदर) सीट से मां कृष्णा पटेल के उम्मीदवार बनते ही पारिवारिक मतभेद होने के बावजूद अनुप्रिया ने वहां पर अपनी पार्टी का दावा छोड़ते हुए इसे भाजपा को वापस कर दिया. नामांकन के अंतिम दिन भाजपा ने आनन-फानन वहां पर मिठाई कारोबारी राजेंद्र मौर्य को उम्मीवार बनाया है. सिराथू से सटी रायबरेली की ऊंचाहार सीट से भी भाजपा ने केशव के नजदीकी अमरपाल मौर्य को उम्मीदवार बनाया है.

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और यूपी की जाति व्यवस्था पर शोध करने वाले सुशील पांडेय बताते हैं, ''मौर्य और कुर्मी मतदाता बसपा के समर्थक थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मौर्य और कुर्मी मतों का एकतरफा समर्थन मिला था. 2022 के विधानसभा चुनाव में अखि‍लेश यादव ने केशव मौर्य जैसे कद्दावर नेता के सामने पल्लवी पटेल को उम्मीदवार बनाकर भाजपा समर्थक मौर्य-कुर्मी मतों में दरार डालने की कोशिश की है.''

गैर-यादव पिछड़ी जातियों को सहेजने की कोशिश में जुटे अखिलेश को कभी मायावती के करीबी रहे और बाद में भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ मिला है. वे भाजपा का साथ छोड़कर 14 जनवरी को सपा में आ गए. सपा ने उन्हें कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से उम्मीदवार बनाने के साथ मौर्य समेत पिछड़ी जातियों में साइकिल की पैठ बढ़ाने का जिम्मा सौंपा है. स्वामी बताते हैं, ''भाजपा सरकार में मौर्य-कुर्मी समेत सभी पिछड़ी जातियों को वह सम्मान नहीं मिला जिसकी वे हकदार थीं. अब ये जातियां भाजपा से अपने अपमान का बदला लेने को एकजुट हो रही हैं.'' स्वामी के छिटकने से भाजपा के सामने कोइरी मतों को सहेजने की चुनौती भी है. मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी जैसी जातियों के नाम से पहचाने जाने वाली कोइरी बिरादरी की पूर्वांचल में अच्छी तादाद है.

28 जिलों और 163 विधानसभा सीटों वाले पूर्वांचल में इन्हीं के एकतरफा समर्थन से भाजपा 114 सीटें जीतने में सफल हुई थी. इस इलाके में सपा ने 17 और बसपा ने 14 सीटें जीती थीं. सुशील पांडेय बताते हैं, ''केशव मौर्य को सिराथू से उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने यह संदेश भी देने की कोशि‍श की है कि पाला बदलने वाले नेताओं से भाजपा का पिछड़े वर्ग से जुड़ाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा.'' 2017 के विधानसभा चुनाव में न्यूनतम स्तर पर सिमटने वाली सपा 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संभावनाएं देख रही है. अखिलेश ने स्थानीय रूप से जाति‍ विशेष में प्रभाव रखने वाली छोटी पार्टियों से गठबंधन करने की रणनीति के तहत ही केशव देव मौर्य की पार्टी महान दल से भी गठबंधन किया है.

महान दल का यूपी में सियासी आधार बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, आगरा, बिजनौर और मुरादाबाद जिले की अति पिछड़ी जातियों के बीच है. 2017 के विधानसभा चुनाव में महान दल 14 सीटों पर लड़कर एक भी सीट नहीं जीत सका, पर पार्टी ने कुल मिलाकर 97,087 वोट हासिल किए थे. मौर्य और समान सामाजिक संरचना वाली अन्य पिछड़ी जातियों में सपा के लिए समर्थन जुटाने को केशव देव ने पिछले वर्ष अगस्त में पीलीभीत से इटावा तक जनाक्रोश यात्रा निकाली थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी और महान दल की उपाध्यक्ष सुमन मौर्य फर्रुखाबाद सदर सीट से उम्मीदवार हैं जबकि बेटा प्रकाश चंद्र मौर्य बिल्सी से मैदान में है. 

राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबकि, पार्टी में कद्दावर नेताओं की गैरमौजूदगी में कुर्मी वोटरों में पैठ बनाना सपा के लिए कठिन है. सुशील पांडेय बताते हैं, ''सपा के संस्थापक रहे बेनी प्रसाद वर्मा के देहांत के बाद पार्टी के पास कुर्मी समाज का कोई प्रभावशाली नेता नहीं है. नरेश उत्तम को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अखिलेश यादव ने कुर्मी समाज को साथ जोड़ने की पहल की पर वे ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा पाए.'' बेनी वर्मा के परिवार से करीबी दिखाते हुए अखि‍लेश ने उनके बेटे राकेश वर्मा को बाराबंकी की कुर्सी सीट से उम्मीदवार बनाया है. साथ ही बेनी की पौत्री और राकेश वर्मा की बेटी श्रेया वर्मा को महिला सभा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है. बसपा के गढ़ रहे आंबेडकर नगर जिले में दो कुर्मी नेताओं राम मूर्ति वर्मा और लालजी वर्मा का प्रभाव है. राममूर्ति पहले से ही सपा में रहे हैं और बसपा विधानमंडल दल के नेता रहे लालजी वर्मा भी अब साइकिल पर सवार होकर कटेहरी सीट से सपा उम्मीदवार हैं.

कुर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले नरेश उत्तम की प्रतिष्ठा उनके गृह जिले फतेहपुर में दांव पर लगी है. कुर्मी वोटरों के प्रभाव वाले फतेहपुर जिले की खागा विधानसभा सीट के नरसिंहपुर करवहा गांव के मंदिर में मारे जा चुके डकैत ददुआ की प्रतिमा लगी है. 2016 में सपा सरकार के दौरान ददुआ की मूर्ति लगाने और भंडारे के आयोजन के बाद हुए विवाद से कुर्मी मतदाता सपा के विरोध में आ गए थे. इसका खामियाजा सपा को फतेहपुर की सभी छह विधानसभा सीटें हारकर भुगतना पड़ा था. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से नरेश उत्तम कुर्मी समाज को साइकिल के पक्ष में लामबंद करने के लिए जोर लगाए हुए हैं. पिछले वर्ष 29 अगस्त से सीतापुर से नरेश उत्तम ने 'किसान नौजवान पटेल यात्रा' की शुरुआत की थी. सात चरणों में 64 दिनों की यह यात्रा 46 जिलों से गुजरते हुए 31 अक्तूबर को प्रयागराज में समाप्त हुई थी. विधानसभा चुनाव के दौरान नरेश उत्तम कुर्मी बाहुल्य चार दर्जन विधानसभा सीटों की सीधी निगरानी कर गैर-यादव पिछड़े मतों में सपा की सेंध लगाने की मंशा को कामयाब करने में जुटे हैं.

10 मार्च को विधानसभा चुनाव के नतीजे सबसे ज्यादा इस बात पर निर्भर करेंगे कि भाजपा कुर्मी-मौर्य वोटबैंक को साथ जोड़े रखने में कितना सफल हो पाती है और सपा इनमें कितना सेंध मार पाती है.

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