महंगाईः देसी प्रोटीन पर ग्रहण

सरकार की ओर से पहले आयात आसान करना, फिर दालों के आयात के लिए नए एमओयू साइन करना और अब स्टॉक लिमिट तय करना...ये सारे निर्णय ही हाल में कीमतों में आई गिरावट का कारण बने हैं

पहुंच से दूर! पुरानी दिल्ली में खारी बावली थोक मार्केट में दाल और मेवे-मसालों की एक दुकान
पहुंच से दूर! पुरानी दिल्ली में खारी बावली थोक मार्केट में दाल और मेवे-मसालों की एक दुकान

कोविड के संक्रमण से बचने के लिए बढिय़ा खान-पान पहली शर्त है. लेकिन दूध, फल, सब्जियों के बाद एक बड़ी आबादी के लिए प्रोटीन का स्रोत मानी जाने वाली दालों को भी महंगाई की आंच लगने लगी है. देश की राजधानी दिल्ली के प्रमुख किराना बाजार कोंडली में अरहर दाल का भाव पिछले हफ्ते 110 रुपए किलो पहुंच गया. कीमतों को काबू करने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के बाद दाम बीते एक माह में 10 रुपए प्रति किलोग्राम तक कम हुए हैं, फिर भी वे पिछले साल (2 जुलाई, 2020 को 96 रुपए किलो) के मुकाबले अब भी करीब 15 फीसदी ऊपर ही हैं. उड़द, मसूर, मूंग समेत दूसरी दालों की भी त्यौरियां पिछले साल के मुकाबले कोई नीचे थोड़े ही हैं (देखें ग्राफिक्स).

कीमतों क्यों बढ़ीं?

जानकारों का मानना है कि कीमतों में उठान की कुछ वजहें लॉकडाउन में भी मौजूद हैं. पिछले साल और इस साल के लॉकडाउन में फर्क है, ''जिसका असर मांग पर भी दिखा है.'' रेस्तरां, होटल इस बार पूरी तरह बंद नहीं हैं. वैक्सीनेशन के बाद मांग में अच्छी वापसी की संभावना भी कीमतों में तेजी को बल दे रही है. केडिया कमोडिटीज के प्रबंध निदेशक अजय केडिया बताते हैं, ''दलहन की पैदावार भी इस साल अनुमान से कम रही और कोविड के कारण आयात में आने वाली अड़चनों ने कीमतों में इजाफे की अवधारणा को बल दिया.'' भारत में दालों की सालाना खपत करीब 250 लाख टन है. जरूरत पूरी करने के लिए हम 10-15 लाख टन दालें आयात करते हैं.

साल भर में कितनी महंगी दालें

तेजी पर लगेगा ब्रेक!

देश में दाल की कीमतें बढ़ने के साथ ही सरकार हरकत में आई. पहले आयात को आसान किया और फिर जमाखोरी पर अंकुश लगाने के प्रयास. सबसे ताजा कदम के तहत केंद्र सरकार की ओर से मूंग को छोड़ सभी दालों की स्टॉक सीमा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है, जो अक्तूबर 2021 तक लागू रहेगी. थोक, खुदरा विक्रेता, आयातक और मिल मालिक सभी इसके दायरे में आएंगे. थोक विक्रेताओं के लिए सीमा 200 टन होगी. साथ ही यह शर्त होगी कि वे एक ही दाल का पूरा 200 टन का स्टॉक नहीं रख सकेंगे. खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक सीमा पांच टन रखी गई है. मिल मालिकों के मामले में, यह सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी अधिक है, उसके मुताबिक होगी. आयातकों के मामले में स्टॉक सीमा 15 मई, 2021 से पहले रखे या आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर यानी 200 टन होगी.

स्टॉक सीमा तय करने से पहले भी कीमतों पर काबू पाने के लिए सरकार ने तुअर, उड़द और मूंग दाल के इस साल अक्तूबर तक बिना रुकावट के आयात की अनुमति दी है, जिससे दालों की समय पर उपलब्धता पक्की हो सके. इसके अलावा राज्यों से कहा गया है कि वे सभी आयातकों, व्यापारियों, दाल मिलों और स्टाकिस्टों से उनके पास उपलब्ध स्टॉक की जानकारी देने को कहें.

नीतियों में असमंजस

दालों की कीमत को काबू करने के लिए सरकार की ओर से लिए गए ताबड़तोड़ निर्णयों पर सवाल उठाते हुए कमोडिटी एक्सपर्ट आर. एस. राना कहते हैं, ''सरकार एक तरफ दलहन के मामले में आत्मनिर्भर होने की बात कहती है और दूसरी तरफ कीमतों में थोड़ी-सी भी तेजी आने पर ताबड़तोड़ निर्णय लेकर उसे रोकती है. इससे सरकारी नीतियों को लेकर असमंजस उभरता है.'' अपनी बात विस्तार से समझाते हुए वे कहते हैं कि इस समय खरीफ की बुआई जारी है. ऐसे में सरकार इस तरह के निर्णय लेगी तो किसानों में संदेश जाएगा कि उनकी फसल एमएसपी पर नहीं बिकेगी. इससे वे किसी और फसल पर शिफ्ट हो जाएंगे. राना आगे जोड़ते हैं, ''कोई भी दाल ऐसी नहीं जिसके दाम पिछले दो महीने में एमएसपी से बहुत ऊपर हों.''

चना अकोला मंडी में 4,600-4,700 रुपए क्विंटल बिक रहा है जबकि एमएसपी 5,100 रु. क्विंटल है. इसी तरह मसूर के भाव भी एमएसपी के करीब ही हैं. ऐसे में सरकार की ओर से पहले आयात आसान करना, फिर दालों के आयात के लिए नए एमओयू साइन करना और अब स्टॉक लिमिट तय करना...ये सारे निर्णय ही हाल में कीमतों में आई गिरावट का कारण बने हैं. राना के मुताबिक सरकार को तय करना होगा कि वह किसानों की आय दोगुना करना चाहती है या उपज को एमएसपी से नीचे बेचना चाहती है.

कहीं उल्टा न पड़ जाए दांव

स्टॉक लिमिट के फैसले पर दाल कारोबार से जुड़े लोग भी हैरत में हैं. इंडिया पल्स ऐंड ग्रेन एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बिमल कोठारी कहते हैं, ''यह कदम न केवल थोक और खुदरा व्यापारियों को प्रभावित करेगा बल्कि इसका असर किसानों और उपभोक्ताओं तक होगा.'' एक आयातक एक वेराइटी की अमूमन 3,000-5,000 टन दाल आयात करता है. अब 100 टन की सीमा से आपूर्ति प्रभावित होगी जिसका असर बाजार पर दिखेगा.''

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