प्रतिरक्षाः एकीकृत कमान पर मतभेद

देश में 17 एकल-सैन्य कमानों की जगह चार थिएटर कमान बनाने के सरकार के इरादे को वायु सेना के विरोध की वजह से लगा झटका. क्या उसके एतराज मिलिटरी थिएटरों के गठन में अड़चन पैदा करेंगे?

कमान की फेहरिस्त
कमान की फेहरिस्त

आजादी के बाद भारत के सबसे बड़े सैन्य सुधार के दूसरे दौर का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवत: 15 अगस्त, 2021 को लाल किले की प्राचीर से करेंगे. रक्षा मंत्रालय भारत के पहले दो एकीकृत सैन्य थिएटर बनाना शुरू करेगा. एक कारवार स्थित एकीकृत समुद्री थिएटर कमान और दूसरी इलाहाबाद स्थित एकीकृत वायु सेना कमान.

एक थिएटर में युद्धपोत, गश्ती विमान, सैनिक और लड़ाकू विमान होंगे और दूसरे में जमीनी और हवाई रडारों के नेटवर्क के साथ मिसाइल और गन रेजिमेंट. इसके बाद दो और थिएटर कमान बनाई जाएंगी—पश्चिमी और पूर्वी थिएटर कमान. इन जमीन केंद्रित कमान की स्थापना का काम 15 अगस्त 2022 से शुरू होकर एक साल में पूरा होगा.

सैन्य सुधारों का पहला दौर 15 अगस्त, 2019 को शुरू हुआ, जब प्रधानमंत्री मोदी ने ''तीनों सेनाओं के कामकाज को जोड़ने’’ के लिए भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ या रक्षा प्रमुख की नियुक्ति का ऐलान किया. उसी साल 31 दिसंबर को सीडीएस के पद पर जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति हो गई.

उन्हें तीन साल के भीतर सैन्य थिएटर बनाने का फरमान मिला और इससे सेनाओं में खौफ की लहर दौड़ गई. ऐसा इसलिए कि 17 एकल-सेना कमानों में फिलहाल उन्हें बेरोकटोक अधिकार हासिल हैं जबकि अब महज चार थिएटर में उन्हें अपने समकक्षों के साथ अधिकार साझा करने पड़ेंगे.

यह खौफ भारतीय वायु सेना के मुख्यालय वायु सेना भवन में सबसे साफ सुनाई दिया. बीते 18 महीनों में सेना और नौसेना थिएटर कमान की सबसे प्रबल समर्थक रही हैं, लेकिन वायु सेना प्रतिरोध कर रही है. इधर, पहली दो थिएटर कमान बनाने का काम शुरू हुआ, उधर, बैठकों में जुबानी जंग, चिट्ठियों और पावरपॉइंट प्रस्तुतियों का सिलसिला चल निकला.

ये एतराज तब चरम पर पहुंच गए जब जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में वायु सेना और रक्षा मंत्रालय के नुमाइंदों ने नई थिएटर कमान को लेकर करीब दर्जन भर सवाल उठाए. इनमें एक कोस्ट गार्ड की भूमिका से जुड़ा था, जिसकी परिसंपत्तियां समुद्री थिएटर कमान (एमटीसी) में ली जानी हैं, जबकि एक अन्य सवाल गृह मंत्रालय के मातहत कार्यरत बलों, आइटीबीपी (इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस) और बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल), से जुड़ा था, जो थिएटर कमान के मातहत काम करेंगे.

जुबानी जंग, चिट्ठियां, आइएएफ, एमओडी
आइएएफ और एमओडी (रक्षा मंत्रालय) की आपत्तियां एक अहम मोड़ पर आईं. वह मोड़ है एमओडी का नोट जो सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की मंजूरी के लिए तैयार किया जा रहा है. प्रधानमंत्री के ऐलान से पहले इस अहम कदम के लिए भारत की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा संस्था की मंजूरी लेना जरूरी है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि जनरल रावत की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट जून के आखिरी हफ्ते में रक्षा मंत्रालय को दे दी.

समें वायु सेना और रक्षा मंत्रालय की आपत्तियों का जवाब देते हुए थिएटर के निर्माण को हरी झंडी दिखाई गई है. समिति की रिपोर्ट वैसे भी औपचारिकता ही मालूम देती है. जून के मध्य में हुई बैठक में राजनाथ सिंह ने निर्देश दिया कि ‘‘सारे संदेह 15 अगस्त तक दूर कर लें’’. इससे भी संकेत मिलता है कि राजनैतिक वर्ग के मन में बिल्कुल साफ है कि अगले दो सालों में वह भारतीय सेना की क्या शक्ल देखना चाहता है. ‘‘थिएटरीकरण’’ की प्रक्रिया से अब पीछे नहीं हटा जा सकता.

थिएटर क्यों अहम हैं
1947 में मात्र दो भौगोलिक कमान थीं. लखनऊ स्थित सेना की पूर्वी कमान और पुणे में दक्षिणी कमान. तब से इन 74 बरसों में सेनाओं ने एक-एक करके 17 एकल-सेना कमान (सेना और वायु सेना के लिए सात-सात और नौसेना के लिए तीन) बना लीं. संयुक्त सैन्य कौशल दुर्लभ है क्योंकि अगली जंग लड़ने के लिए सेनाएं खुद को अलग-अलग प्रशिक्षित, नियोजित और सुसज्जित करती हैं.

1971 के भारत-पाक युद्ध में वे साथ मिलकर काम करते दिखाए दीं तो इसलिए कि राजनैतिक निर्देश दोटूक थे और उन्होंने पाकिस्तानी सेना का समर्पण करवाकर और बांग्लादेश बनाकर सैन्य फतह हासिल की थी. सरकार के एक बड़े अफसर तब सेना प्रमुख फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को अर्ध-सीडीएस की तरह मानते हैं, जो एक तरफ राजनैतिक नेतृत्व के संपर्क में थे और दूसरी तरफ उनके पश्चिमी और पूर्वी कमांडर आइएएफ और नौसेना की ओर से समर्थित थिएटर कमांडरों की तरह लड़ रहे थे.

उस जीत ने 1962 की भारत-चीन जंग की कड़वी यादों को मिटा दिया, जिसमें सरकार ने आइएएफ के लड़ाकू दस्ते तैनात नहीं किए और पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) ने भारतीय सेना को धूल चटा दी.

1999 की करगिल जंग के कारणों की जांच करने वाली करगिल समीक्षा समिति (केआरसी) ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को गहराई तक नए सिरे से ढालने की जरूरत बताई. उसने सैन्य थिएटर बनाने की सिफारिश तो नहीं की, पर सेना प्रमुखों पर काम के भारी बोझ का जिक्र जरूर किया, क्योंकि उन्होंने 'ऑपरेशनल कमांडरों और राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों की भूमिका एक साथ निभाई, जिसकी वजह से खराब नतीजे मिले.

उनका ज्यादा वक्त ऑपरेशनल भूमिका को समर्पित था जिसका खमियाजा भविष्योन्मुखी, लंबे वक्त की योजना बनाने को भुगतना पड़ा’. मई 2001 में मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) की रिपोर्ट ने केआरसी की सलाह को आगे बढ़ाते हुए सीडीएस की नियुक्ति सहित व्यापक रक्षा सुधारों की सिफारिश की. एक त्रि-सेना संगठन, एकीकृत रक्षा मुख्यालय (एचक्यूआइडीएस) तो बना दिया गया लेकिन सीडीएस की नियुक्ति न होने से उसका कोई प्रमुख नहीं था.

इस बीच सशस्त्र बल अपने-अपने खोल में काम करते रहे. 20 नवंबर 2008 की रात जब 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई में हमला किया, उसका जवाब देने वाले सभी सुरक्षा बलों ने आपसी तालमेल के बगैर अलग-अलग कार्रवाई की. पुणे स्थित दक्षिणी कमान के मातहत थल सेना की एक बटालियन (800 सैनिक) हमले की जद में आए दो होटलों और यहूदी केंद्र से महज दो किलोमीटर दूर थी.

समुद्री कमांडो की जिन छोटी-छोटी टीमों ने आंतकियों को घेरा, वे मुंबई स्थित पश्चिमी नौसैन्य कमान के मातहत थीं. जिस कोस्ट गार्ड ने आतंकियों की ओर से अगवा ट्रॉलर के ठिकाने का पता लगाया, वह रक्षा मंत्रालय के मातहत था, जबकि एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) गृह मंत्रालय के अधीन था.

थिएटर कमान के जरिए 26/11 सरीखे हमले का ज्यादा तेज जवाब दिया जा सकता था. रक्षा मंत्रालय ने 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेकटकर की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की जो समिति बनाई थी, उसने भी थिएटर बनाने का साफ जिक्र किया था. उसकी रिपोर्ट हालांकि जारी नहीं हुई है, लेकिन माना जाता है कि उसने थिएटर की जरूरत की वजह के तौर पर चीन और पाकिस्तान की तरफ से दो मोर्चों पर खतरे का हवाला दिया है.

यह रिपोर्ट उसी साल सौंपी गई जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के व्यापक सैन्य सुधार शुरू हुए. चीनी सेना ने अपने सात सैन्य क्षेत्रों को खत्म करके पांच थिएटर कमानों का गठन किया. इनमें शिनजियांग से लेकर तिब्बत प्रांत तक फैली पश्चिमी थिएटर कमान (डब्ल्यूटीसी) सबसे बड़ी है. यह डब्ल्यूटीसी ही थी, जिसने पिछली मई में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर सैन्य टुकड़ियां तैनात कीं.

सीडीएस के दफ्तर ने पूरे जतन से पक्का किया कि तीनों सेनाएं आक्रामक चीनी लामबंदी का तालमेल के साथ एकजुट जवाब दें. जनरल रावत, जिनके हाथ में कोई कमान नहीं है, ने पिछले दिसंबर में इंडिया टुडे से कहा कि गतिरोध के दौरान उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि तीनों सेनाओं ने एक दूसरे से बात की, बार-बार मिलीं और रणनीति पर चर्चा की.

लद्दाख के टकराव का फौरी नतीजा अलबत्ता यह है कि उत्तरी थिएटर कमान का काम रुक गया. सरकार के शीर्ष अफसर पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर तनाव और बगावत-विरोधी ढांचे को बाधा पहुंचने की आशंका का हवाला देते हैं और कहते हैं कि इनकी वजह से इस अहम थिएटर (जिसका मुख्यालय शायद लखनऊ में होगा) की स्थापना आखिरी होगी. मगर उससे पहले, 15 अगस्त 2023 तक चारों थिएटर कमान बनाई जानी हैं.

वे चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) को रिपोर्ट करेंगी, जिसके प्रमुख सीडीएस हैं, जो रक्षा मंत्री और सीसीएस को रिपोर्ट करेंगे (देखें ग्राफ कमान की फेहरिस्त). सेनाओं के प्रमुख योजना, अधिग्रहण और प्रशिक्षण पर ध्यान देंगे और सैन्य कार्रवाइयों का काम चार थिएटर कमांडरों पर छोड़ देंगे. आइएडीसी (एकीकृत वायु रक्षा कमान) और आइएमटीसी (एकीकृत समुद्री थिएटर कमान) के थिएटर कमांडरों की नियुक्ति अगस्त 2022 तक ही होगी, जब उनकी कमान पूरी तरह स्थापित हो जाएंगी.

आसान सा काम
पिछले साल जनरल रावत ने आइएडीसी और आइएमटीसी को ‘आसान सा काम’ कहा था, जिन्हें तेजी से स्थापित किया जा सकता है क्योंकि इनमें एक ही सेना का वर्चस्व है. पश्चिमी, पूर्वी, दक्षिणी और त्रि-सैन्य अंडमान तथा निकोबार कमान को मिलाकर बनने वाली आइएमटीसी में नौसेना का बाहुल्य है.

आइएडीसी की अगुआई वायु सेना के हाथ में होगी और इसमें कोर ऑफ आर्मी एयर डिफेंस की 40 रेजिमेंट और लड़ाकू इंटरसेप्टर विमानों (जिनकी संख्या अभी स्पष्ट नहीं है) के जत्थे समाहित होंगे. यह समूचे भारतीय वायु क्षेत्र की रक्षा के लिए जिम्मेदार होगी.

वायु सेना मूलत: बहुत-से थिएटरों की अवधारणा के ही खिलाफ है. उसका मानना है कि उसके बहुत थोड़े-से संसाधन—40 की जरूरत के बदले 30 लड़ाकू जत्थे, मुट्ठी भर हवाई रिफ्यूलर और अवाक्स—विभिन्न थिएटरों के छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाएंगे. उसके विरोध की असल वजह बेशक यह डर है कि थल सेना उसे निगल लेगी और इससे भी बदतर यह कि उसे सेना के वायु बल की तरह काम करना पड़ेगा.

वायु सेना के कर्ताधर्ता चाहते हैं कि पूरे भारत को एक थिएटर के तौर पर बरता जाए. हाल की बैठकों में उनकी लड़ाई का लब्बोलुबाब यह है कि आइएएफ की संपत्तियां भले ही थिएटरों को सौंप दी जाएं लेकिन उन पर पूरा नियंत्रण वायु सेना प्रमुख के हाथ में हो. दूसरी सेनाएं इसके खिलाफ हैं.

2018 में जब सरकार के भीतर थिएटरों पर चर्चा चल रही थी, चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन एडमिरल सुनील लांबा ने खुलेआम कहा था कि वायु सेना थिएटर कमान अवधारणा के खिलाफ है.

वायु सेना आखिर आइएमटीसी और आइएडीसी को मान लेगी, लेकिन अपनी ताकत अगले साल की उस लड़ाई के लिए बचाकर रख रही हो सकती है जब रक्षा मंत्रालय जमीनी थिएटर पर काम शुरू करेगा. तब वायु सेना के पश्चिमी और पूर्वी थिएटर के लड़ाकू, ढुलाई विमानों और हेलिकॉप्टरों के जत्थों का बड़ा हिस्सा उन थिएटरों में शामिल कर लिया जाएगा जिन्हें वह थल सेना के दबदबे वाले थिएटर मानती है.

पूर्वी और पश्चिमी एयर कमान के एओसी-इन-सी एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार एयर डिफेंस या वायु रक्षा कमान को पोंगापंथी करार देते हैं. वे कहते हैं, ''वायु रक्षा किसी भी हवाई कार्रवाई का अभिन्न भाग है, चाहे वह भारतीय भूभाग पर वायु रक्षा हो या विदेशी वायु क्षेत्र में संपत्तियों की वायु रक्षा हो.

लिहाजा लड़ाकू विमान, मिसाइलें, गन, सेंसर, नेटवर्किंग, सभी हमारी वायु शक्ति का अभिन्न हिस्सा हैं. अब इन्हें एक वायु रक्षा कमान में रखना मूर्खतापूर्ण होगा.’’ रक्षा अधिकारियों का कहना है कि छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने का तर्क भ्रामक है क्योंकि यह माना जाता है कि वायु सेना की परिसंपत्तियां जबरन थिएटर में डाल दी जाएंगी और फिर बाहर नहीं आएंगी.

एक रक्षा अधिकारी ने अपना नाम न छापने के आग्रह के साथ कहा, ‘‘दुनिया की सबसे ताकतवर सेना के पास भी अपने कामों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संपत्तियां कभी नहीं होंगी. संसाधनों के बंटवारे का सिद्धांत कहता है कि थिएटर कमांडर के पास निश्चित संख्या में परिसंपत्तियां होंगी ताकि उनसे वह अपनी कार्रवाइयों की योजना बना सके. संपत्तियों के फिर से बंटवारे की मांग नहीं की जा रही है. कार्रवाई की स्थिति के आधार पर संपत्तियों के फिर से बंटवारे का अधिकार सीओएससी के पास होगा...ताकि थिएटरों के बीच संपत्तियों की आवाजाही हो सके.’’

एमओडी की बैठकों में वायु सेना के अफसरों ने जंग लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए थिएटर के बजाए और ज्यादा मिल-जुलकर योजना बनाने की पेशकश की. सेना और नौसेना ने दलील दी कि यह अवधारणा गड़बड़ है क्योंकि संयुक्त योजना बना लेने से ही कार्य संचालन के स्तर पर एकीकरण नहीं हो जाता. एक रक्षा अधिकारी ने कहा, ‘‘अगर हम एक साथ सीखते और काम नहीं करते, तो हम साथ लड़ भी नहीं सकते.’’

इसी साल एचक्यूआइडीएस ने थिएटरों पर विचार के लिए तीन चरणों की टेबल टॉप एक्सरसाइज (टीटीएक्स) तैयार की. इन टीटीएक्स में थिएटर कमान के परिचालन, संगठन और कामकाज से जुड़े पहलुओं की जांच-पड़ताल की गई. रक्षा अधिकारियों का कहना है कि वायु सेना इन कवायदों में अनिच्छा से शामिल हुई और थिएटरों के व्यवहार्य नहीं होने और एकीकरण किए बगैर सेना-केंद्रित हिस्सों की जरूरत के अपने रुख पर डटी रही.

शेकटकर कहते हैं कि थिएटरों के प्रति वायु सेना का विरोध गलत है. वे उन्हें एक और थिएटर देने की तरफ इशारा करते हैं. कहते हैं, ‘‘जब (पाकिस्तान के सम्मुख) पश्चिमी थिएटर की स्थापना हो जाए तो इसकी अगुआई वायु सेना के पास होनी चाहिए, क्योंकि उसके पास सुदूर ईरान तक वायु शक्ति के प्रक्षेपण की क्षमता है.’’

विश्लेषकों का कहना है कि अधिकारों की लड़ाई में अहम मुद्दे धुंधले पड़ रहे हैं. इनमें थिएटरों की कमान और नियंत्रण तथा दिल्ली में सीओएससी में, जिसे थिएटर कमांडर रिपोर्ट करेंगे, संयुक्त योजना की गुणवत्ता में सुधार लाने सरीखे मुद्दे हैं. सिंगापुर के एस. राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के दक्षिण एशिया प्रोग्राम में एसोसिएट प्रोफेसर अनित मुखर्जी कहते हैं, ‘‘जरूरत इस बात की है कि सीडीएस संयुक्त ऑपरेशनल कमान में निवेश करें और संयुक्त युद्ध लड़ने वाले विशेषज्ञों का काडर बनाएं.’’

सरकार को अभी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पेश करनी है. इसी से राष्ट्रीय सैन्य रणनीति निकलेगी और उसके आधार पर सशस्त्र बल युद्ध लड़ने की अपनी रणनीतियां बना पाएंगे. यह युद्ध लड़ने की योजना के उस अकेले वर्गीकृत दस्तावेज 'रक्षा मंत्री के ऑपरेशनल निर्देश’ की जगह लेगी जो आम तौर पर दशक में एक बार जारी किया जाता है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक अफसर मानते हैं कि सरकार को थिएटर कमान के मामले में सावधान रफ्तार से आगे बढऩा चाहिए. वे कहते हैं, ‘‘पहले दौर में सीडीएस और स्टाफ को आकस्मिक परिदृश्यों के आधार पर ऑपरेशनल योजना और कमान तथा कंट्रोल में रच-बस जाने देना चाहिए. दूसरे दौर में वे थिएटर बनाने का अभीष्टतम मॉडल तय कर सकते हैं.’’ मगर सुधारों की सिफारिश को पहले ही 20 साल हो चुके हैं और अब उसमें देरी के लिए दी गई हर दलील अजीबोगरीब मालूम देती है.

वायु सेना को डर है कि थल सेना उसे निगल लेगी. वायु सेना की संपत्तियां थिएटरों को सौंपने की सूरत में भी उन पर वायु सेना प्रमुख का नियंत्रण सुनिश्चित करने की लड़ाई अभी चल रही है.

Read more!