हॉलमार्किंगः खरे पर खलबली!

जौहरियों की दिक्कतों और दस गुना तक बेहिसाब जुर्माने से डर के अलावा नए हॉलमार्क नियम के अमल में अड़चन यह भी है कि देश में करीब 500 जिलों में हॉलमार्क सेंटर हैं ही नहीं

जांच-परख चांदनी चौक, दिल्ली में जेवर की एक दुकान में गहनों की खरीदारी. अगले पखवाड़े से गहनों पर हॉलमार्क जरूरी होने जा रहा
जांच-परख चांदनी चौक, दिल्ली में जेवर की एक दुकान में गहनों की खरीदारी. अगले पखवाड़े से गहनों पर हॉलमार्क जरूरी होने जा रहा

देशभर के सर्राफा बाजारों में गहनों की खरीदारी के तौर-तरीके बदलने वाले हैं. मुमकिन है कि आप 15 जून के बाद अपने खास जौहरी की दुकान पर जाएं तो वह आपको अपना भारत मानक ब्यूरो (बीआइएस) का रजिस्ट्रेशन दिखाए, आपको मैग्नीफाइंग ग्लास देकर गहनों पर अंकित चिन्हों को देखने और समझने के लिए कहे और जब बिल बने तो गहने का वजन, शुद्धता और हॉलमार्किंग का शुल्क अलग-अलग लिखकर दे.

वैसे, सोने के गहनों और कलाकृतियों की हॉलमार्किंग की व्यवस्था नई नहीं है लेकिन अब यह पहले की तरह स्वैच्छिक न रहकर अनिवार्य हो गई है. मौजूदा समय में देश में सिर्फ 30 फीसद स्वर्ण आभूषण ही हॉलमार्क वाले हैं यानी गहने-जेवरों की खरीदारी मोटे तौर पर जौहरी के भरोसे चल रही थी. दरअसल, बीआइएस अप्रैल 2000 से ही सोने के आभूषणों पर हॉलमार्किंग योजना चला रहा है, लेकिन सोने के गहनों का करीब 70 फीसद कारोबार बिना हॉलमार्क के चलता रहा है.  

खरे पर खलबली

हॉलमार्किंग कीमती धातु (सोना-चांदी) की शुद्धता को प्रमाणित करता है. नवंबर 2019 में सरकार ने स्वर्ण आभूषण और कलाकृतियों पर 'हॉलमार्किंग' 15 जनवरी, 2021 से अनिवार्य किए जाने की घोषणा की. लेकिन कोविड के कारण जौहरियों की ओर से समयसीमा बढ़ाने की मांग के बाद इसे चार महीने आगे खिसकाकर 1 जून कर दिया गया था. इसके बाद 24 मई को हुई बैठक में इस व्यवस्था को फिर एक पखवाड़े के लिए मुल्तवी कर 15 जून करने का निर्णय लिया गया.

नई व्यवस्था के बाद अब जौहरी सिर्फ हॉलमार्क वाले सोने के गहने और कलाकृतियां ही बेच सकेंगे. यानी सोने के हर गहने या कलाकृति पर अब चार चिन्ह अनिवार्य रूप से गुदे होंगे. पहला बीआइएस का निशान, दूसरा सोने की शुद्धता से जुड़ा ग्रेड (14,18 या 22 कैरेट), तीसरा हॉलमार्क सेंटर का लोगो या चिन्ह और चौथा जौहरी की पहचान या नंबर.

कारोबारी क्यों परेशान?

लेकिन महामारी की चोट खाए बैठे सर्राफा कारोबारियों को हॉलमार्किंग कानून की बारीकियां डरा रही हैं. दिल्ली स्थित बुलियन ऐंड जूलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश सिंघल कहते हैं, ''हॉलमार्किंग वाले गहने बेचने में किसी भी कारोबारी को कोई परेशानी नहीं. लेकिन इस कानून में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिन्हें सरकार को वापस लेना चाहिए.'' वे कुछेक का जिक्र भी करते हैं. मसलन, बिना हॉलमार्क जूलरी मिलने पर उसकी कीमत के दस गुना या पिछले साल की टर्नओवर के दस गुने तक जुर्माने का प्रावधान हटना चाहिए.

सिंघल साफ कहते हैं जूलरी हॉलमार्क होने के बाद भी अगर शुद्धता संबंधी कोई शिकायत मिलती है तो इसकी जिम्मेदारी सरकार की ओर से अधिकृत हॉलमार्क सेंटर की होनी चाहिए जिसने उस पर मुहर लगाई न कि ज्वैलर की. इसके अलावा, सिंघल के शब्दों में, ''सरकार का मकसद हॉलमार्किंग के पीछे ग्राहकों तक शुद्ध सोना पहुंचाना है, ऐसे में हॉलमार्किंग खुदरा बिक्री के स्तर पर अनिवार्य होनी चाहिए.'' गहनों की आपूर्ति शृंखला में मैन्युफैक्चरर, सप्लायर, होलसेलर कई व्यापारी होते हैं.

हर स्तर पर पंजीकरण, हॉलमार्किंग करवाने से मुश्किलें बढ़ेंगी. मान लीजिए कोई रिटेलर दिन में 10 पीस बेचता है, उसके लिए हॉलमार्किंग कराना तो आसान होगा, लेकिन एक थोक व्यापारी जिसके पास 500 पीस के सौदे वाले अगर चार व्यापारी भी आते हैं, उसके लिए हॉलमार्किंग काफी जटिल काम होगा. हर उत्पाद का यूआइडी बनाने की प्रक्रिया में हर पीस का तौल और नाम लिखकर सेंटर को भेजना होगा और तौल या नाम में कोई ऊंच-नीच हुई तो सेंटर से फिर वापस आएगी. सिंघल कहते हैं कि ''हर पीस का नाम और वजन तथा यूआइडी नंबर आदि भरने में खासा समय लगेगा, जिससे गलती की संभावना ज्यादा रहेगी. ऐसे में इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा. इसलिए नया कानून जूलरी इंडस्ट्री को स्वीकार्य नहीं है.''

इंडिया बुलियन ऐंड जूलर्स एसोसिएशन की गवर्निंग बॉडी और नेशनल बोर्ड की निदेशक तान्या रस्तोगी कहती हैं, ''जो कारोबारी पहले से ही केवल हॉलमार्किंग का सामान बेचते हैं, उनके लिए दिक्कत नहीं होगी, पर जिनके पास पिछले साल का स्टॉक पड़ा है जो हॉलमार्किंग के स्टैंडर्ड का नहीं, उन्हें नुक्सान उठाना पड़ेगा.'' वजह: उन्हें फिर से गलाकर हॉलमार्किंग के स्टैंडर्ड की जूलरी बनानी होगी. गलाने की लागत करीब 10 फीसद बैठती है. कोविड के कारण करीब डेढ़ साल से बाजार सुचारू रूप से नहीं खुल पाए हैं. ऐसे में व्यापारियों के पास पुराना स्टॉक होना स्वाभाविक है.

चुनौतियां ये भी

गहने के निर्यात से जुड़े कारोबारी हॉलमार्किंग के दायरे में आएंगे या नहीं, इस पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है. रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के मुताबिक, सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जो सर्राफा कारोबारी सिर्फ निर्यात लेनदेन करते हैं, वे पूरी तरह से इस आदेश के दायरे से बाहर हैं. जीजेईपीसी के चेयरमैन कोलिन शाह भंडारण से जुड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सभी निर्यातक निर्यात और घरेलू क्षेत्र दोनों के लिए साझा भंडार रखते हैं. ''सोने के आभूषणों को जब तक घरेलू बिक्री के लिए नहीं रखा जाता, उनके लिए हॉलमार्किंग प्रावधानों का पालन अनिवार्य नहीं होना चाहिए.''

जीजेईपीसी की ही स्वर्ण समिति के संयोजक के. श्रीनिवासन कहते हैं, ''भारत में हॉलमार्क वाले उत्पादों की देश के बाहर स्वीकार्यता नहीं है. ऐसे में अगर निर्यातक को पूर्ण या आंशिक रूप से हॉलमार्किंग के लिए कहा जाता है, तो इससे निर्यात कारोबार की लागत बढ़ेगी. नतीजा: रत्न और आभूषणों का निर्यात आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं रह जाएगा.''

बहरहाल, हॉलमार्किंग कानून लागू करने की तारीख करीब आने के बाद भी जौहरियों में पंजीकरण कराने का कोई उत्साह नहीं दिख रहा. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, देशभर में करीब 4 लाख जूलर हैं. इनमें से सिर्फ 35,879 को ही अब तक बीआइएस सर्टिफिकेट हासिल है. कुल 10 फीसद जौहरियों ने भी अभी तक पंजीकरण नहीं करवाया है. जीजेईपीसी के चेयरमैन (गुजरात क्षेत्र) दिनेश नावदिया कहते हैं, ''सरकार ने पर्याप्त समय दिया, एसोसिएशन भी सेमिनार वगैरह करवाकर अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, धीरे धीरे पंजीकरण बढऩे लगेंगे.''

वे जीएसटी की याद दिलाते हुए कहते हैं कि शुरुआत में जीएसटी को लागू करने में भी कई तरह की दिक्कतें आई थीं लेकिन धीरे-धीरे व्यापारियों ने उसे अपना लिया और काम चल निकला. इसी तरह, उनके मुताबिक, बड़े महत्व का यह कानून जब अनिवार्य हो जाएगा तो जौहरियों के पंजीकरण में तेजी आएगी. वे कहते हैं, ''हर गली नुक्कड़ पर जब जौहरी की दुकानें खुलने लगी हैं तो यह बहुत जरूरी है कि ग्राहकों को शुद्ध माल मिले और उसकी पूरी जिम्मेदारी तथा जवाबदेही तय की जाए.''

हालांकि इंडिया गोल्ड पॉलिसी सेंटर के प्रमुख सुधीश नांबियाथ को लगता है कि ''पूरे देश में फैले असंगठित कारोबारियों के साथ इस कानून पर अमल बड़ी चुनौती होगी.'' असंगठित कारोबारी आभूषण उद्योग में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं. इसके अलावा 32,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड जौहरियों पर सिर्फ 940 हॉलमार्क सेंटर के बुनियादी ढांचे के साथ इस कानून को लागू करना भी भारी मशक्कत वाला काम होगा.

पिछले पांच वर्षों में हॉलमार्किंग सेंटरों में 25 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान उनकी संख्या 454 से बढ़कर 945 हो गई, पर अभी 940 परख और हॉलमार्किंग सेंटर ही काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, ''नई हॉलमार्किंग व्यवस्था पुरानी से बहुत अलग है. ऐसे में हॉलमार्किंग सेंटरों को ही नई व्यवस्था अपनाने में जौहरियों से ज्यादा परेशानी होने वाली है.'' एक अनुमान के मुताबिक, देश में करीब 500 ऐसे जिले हैं, जहां हॉलमार्किंग सेंटर हैं ही नहीं.

सरकार ने उचित तालमेल की पुख्ता व्यवस्था और कानून लागू करने संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए एक समिति का गठन किया है. बीआइएस के महानिदेशक प्रमोद तिवारी इस समिति के संयोजक होंगे. इसके अलावा, उपभोक्ता मामले विभाग में अपर सचिव निधि खरे और जूलर्स एसोसिएशन और हॉलमार्किंग निकायों वगैरह के प्रतिनिधि समिति में शामिल होंगे. तो उम्मीद कीजिए कि अब सोना खरा मिलेगा.

Read more!