पश्चिम बंगालः नंदीग्राम का संग्राम

नंदीग्राम में कई लोग धार्मिक ध्रुवीकरण और धर्म के आधार पर किसी के सियासी झुकाव के अनुमान से असहज हैं

सहानुभूति वोट व्हीलचेयर पर बैठकर एक जनसभा को संबोधित करतीं ममता बनर्जी
सहानुभूति वोट व्हीलचेयर पर बैठकर एक जनसभा को संबोधित करतीं ममता बनर्जी

कोलकाता से लगभग 75 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में नंदकुमार क्रॉसिंग पर, चार दिशाओं में बंटने से पहले हाइवे एक शानदार लूप लेता है. वैसे, कौन-सा मोड़ नंदीग्राम लेकर जाएगा इसे बताने वाले साइनबोर्ड तो गिने-चुने हैं, पर सियासी संदेश वाले साइनबोर्ड्स की भरमार हैं. इनमें से दो होर्डिंग्स अन्य पर हावी हैं. एक तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का जिस पर 'बांगला निजेर मेये केई चाये (बंगाल को अपनी बेटी चाहिए)' लिखा है और दूसरा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का है जिस पर मोटे-मोटे अक्षरों में 'नंदिग्रामर भूमिपुत्र सुवेंदु' (नंदीग्राम की मिट्टी का लाल, सुवेंदु) अंकित है. हाइवे पर लगे ये होर्डिंग्स 2021 के विधानसभा चुनाव के सबसे दिलचस्प मुकाबले, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके पूर्व मंत्री सुवेंदु अधिकारी के बीच नंदीग्राम की लड़ाई—की दिशा बताते हैं.

नंदीग्राम में, कई अंडरकरंट—जैसे सत्ता-विरोधी रुझान—भी हैं जो स्थानीय लोगों के साथ बातचीत में उभरकर आता है. नंदीग्राम के रेयापारा के रहने वाले अमर बाग कहते हैं, ''पिछले तीन साल में सत्ता में बदलाव की मांग तेज हुई है. टीएमसी ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए लाभार्थी सूचियों का राजनीतिकरण कर दिया है और अपने पार्टी सदस्यों को जॉब कार्ड दिए हैं. मेरे साथ बदसलूकी की गई, मेरा चाय का खोखा तोड़ दिया गया और मेरा जॉब कार्ड रद्द कर दिया गया क्योंकि मैंने पार्टी के विरुद्ध बयान दिया था.'' अन्य स्थानीय लोग भी कई तरह की जबरन सियासी वसूली के आरोप लगाते हैं.

सरकार के प्रति लोगों के मन में दबा गुस्सा पिछले कुछ समय से वोटों के रूप में बाहर निकलते देखा गया है. 2016 में तामलुक लोकसभा सीट, जिसमें नंदीग्राम आता है, के उपचुनाव में भाजपा को करीब 1,96,000 वोट मिले थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में, यह आंकड़ा बढ़कर करीब 5,34,000 हो गया तथा इसने भाजपा और टीएमसी के वोटों के अंतर को नाटकीय रूप से पाट दिया. टीएमसी को करीब 7,34,000 वोट मिले थे. अब टीएमसी के कद्दावर नेता सुवेंदु अधिकारी भाजपा में चले आए हैं तो इससे उसकी पकड़ और मजबूत हुई है.

सुवेंदु अपनी नई पार्टी में सहज हो चुके हैं और एक नए अंडरकरंट—धार्मिक अपील—का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं. 'जय श्री राम' के नारे के उपयोग के अलावा, वे धार्मिक ध्रुवीकरण को भी आगे बढ़ा रहे हैं. वे भाजपा की चिरपरिचित शैली में अपने क्षेत्र की हिंदू और अनुसूचित जाति की आबादी को यह कह रहे हैं कि टीएमसी अगर सत्ता में लौटी तो उनके लिए अपने धर्म का पालन मुश्किल हो जाएगा.

सुवेंदु ने यह भी तर्क दिया है कि ममता ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें 'नंदीग्राम से प्रेम' है, बल्कि इसलिए कि इस निर्वाचन क्षेत्र में भारी मुस्लिम आबादी—करीब 25 से 30 फीसद—को देखते हुए वे इसे अपने लिए सुरक्षित सीट मान रही हैं. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी आरोप लगाए कि ममता अपने लिए सीट चुनने में भी 'मुस्लिम तुष्टिकरण के हथकंडे' का इस्तेमाल कर रही हैं. वैसे सुवेंदु यह भी कहते हैं कि वे '30 फीसद'—नंदीग्राम के मुस्लिम वोटरों के संदर्भ में—से चिंतित नहीं हैं और उन्हें भरोसा है कि '70 फीसद' मतदाता सही फैसला लेंगे.
नंदीग्राम की हिंदू आबादी को अपनी अपील में, ममता भी धार्मिक भावनाओं को भुनाने की कोशिश में हैं.

9 मार्च को यहां अपनी पहली सार्वजनिक रैली में उन्होंने भाजपा नेताओं को चुनौती दी कि वे हिंदू कार्ड खेलना बंद करें. ममता ने कहा, ''मैं एक हिंदू ब्राह्मण परिवार की बेटी हूं. मैं चंडी श्लोक (दुर्गा स्तुति) करने के बाद ही घर से निकलती हूं.'' उन्होंने अपनी दो दिवसीय यात्रा का बड़ा हिस्सा नंदीग्राम के मंदिरों में दर्शन-पूजन में बिताया और 19 मंदिरों में हाजिरी लगाई. स्थानीय निवासी जयंती जना का मानना है कि भाजपा यह प्रचारित करने की कोशिश कर रही है कि ममता 'हिंदू नहीं' हैं. वे कहती हैं, ''चाहे कितना भी दुष्प्रचार किया जाए, ममता हिंदू ही रहेंगी.''

नंदीग्राम में कई लोग धार्मिक ध्रुवीकरण और धर्म के आधार पर किसी के सियासी झुकाव के अनुमान से असहज हैं. शेरखान चौक के मोहम्मद अजीज कहते हैं, ''हम मुसलमान अपना मुंह खोलने से डरते हैं. भाजपा हमें संदेह के साथ देखती है क्योंकि उन्हें लगता है कि हम दीदी के (ममता के) समर्थक हैं.'' पर कुछ किलोमीटर दूर चौरंगी बाजार में माहौल अलग है जहां ममता के भरोसेमंद सहयोगी अबू ताहिर समर्थकों को जमा कर रहे हैं. उसके तुरंत बाद, एक विरोध मार्च शुरू होता है. टायर जलाए गए, 'मीर जाफ़र' और 'गद्दार' के नारे लगाते हुए मोर्चा आगे बढ़ता है. टीएमसी छोड़ने के बाद सुवेंदु को गद्दार के रूप में दर्शाने की कोशिश हो रही है. ताहिर कहते हैं, ''एक मंत्री के रूप में इतने लंबे वक्त तक सभी फायदों का आनंद लेने और लाभ के पदों पर अपने परिवार के सदस्यों को नियुक्त करने के बाद, उन्होंने टीएमसी छोड़ दी और ममता पर वंशवादी राजनीति का आरोप लगा रहे हैं. उनकी बात पर कोई यकीन नहीं करने वाला.''

ताहिर और टीएमसी के एक अन्य नेता शेख सूफियन का कहना है कि नंदीग्राम में मुकाबला कांटे का होगा, पर पलड़ा ममता के पक्ष में झुका है. ताहिर पूछते हैं, ''अगर दीदी यहां व्हीलचेयर पर आती हैं, तो क्या नंदीग्राम इसे नजरअंदाज करेगा? इसके अलावा, ये हम (वह और सूफियन) ही थे जो सुवेंदु के लिए बूथ स्तर पर चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभालते थे और हम बखूबी जानते हैं कि मुकाबले को कैसे अपने पक्ष में मोडऩा है.''

जादवपुर विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर इमान कल्याण लाहिड़ी कहते हैं कि नंदीग्राम आंदोलन के दो प्रमुख चेहरों—ममता और सुवेंदु—का अब एक-दूसरे के खिलाफ होना दुखद है. वे कहते हैं, ''लोग अपने-अपने चहेते नेताओं के पीछे खड़े हो रहे हैं और उनमें स्पष्ट विभाजन है. पर भाजपा को जो फायदा मिल रहा है उसके पीछे असली वजह, उपेक्षा और विकास के धरातल पर न पहुंचने का लंबा इतिहास है. वंचितों और भेदभाव के शिकार लोगों के लिए धर्म एक तात्कालिक कारण के रूप में उभरकर आया है.''

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