वन्य जीव शिकारः पन्ना में खतरे की घंटी

एसटीएसएफ ने कहा कि पन्ना गिरोह ने खजुराहो के वन्यजीव कार्यालय से एक मुहर का इंतजाम किया था और लोगों को बेची जा रही वन्यजीवों की 'ट्रॉफियों' को प्रमाणपत्र देने और टैग जारी करने का काम कर रहा था.

दबे पांव पन्ना अभयारण्य में एक सुबह कैमरे में कैद बाघ
दबे पांव पन्ना अभयारण्य में एक सुबह कैमरे में कैद बाघ

अगस्त के मध्य में एक बाघ पी-123 का सड़ा-गला शव पन्ना नेशनल पार्क में केन नदी के किनारे पाया गया. पिछले सात महीनों में इस बाघ अभयारण्य में बाघों की मौत की यह पांचवी घटना थी. पार्क प्रबंधन ने दावा किया कि पी-123 की एक दूसरे बाघ पी-431 से इलाके को लेकर लड़ाई हुई थी. उस दौरान लगी चोटों के कारण उसने दम तोड़ दिया. उनका कहना है कि एक कर्मचारी ने इस लड़ाई को देखा भी था. एक महीने बाद पी-123 की ऑटोप्सी रिपोर्ट सामने आई और इसने राज्य में वन्यजीव प्रबंधन के लिए खतरे की घंटी बजा दी. बाघ के पंजे, सिर और निजी अंग गायब थे, जो अवैध शिकार का संकेत था. एक सप्ताह बाद राज्य की शिकार रोधी इकाई स्पेशल टाइगर स्ट्राइक फोर्स (एसटीएसएफ) ने पन्ना पार्क में संगठित अवैध शिकार गिरोह का भंडाफोड़ किया.


एक पार्क जिसने 2008 में अवैध शिकार के कारण अपने सभी बाघ खो दिए थे, अब अपने वयस्क बाघों का दसवां हिस्सा गंवा दिया है और आसपास के क्षेत्र में एक संगठित अवैध शिकार गिरोह की उपस्थिति गहरी साजिश का संकेत है. 17 सितंबर को एसटीएसएफ ने जबलपुर में तीन लोगों को गिरफ्तार किया और उनसे एक तेंदुए की खाल और एक चित्तीदार हिरण की खाल बरामद की. आरोपियों में से एक, पन्ना के बृजपुर निवासी जितेंद्र तिवारी से टीम को कुछ सुराग मिले और उसके गृहनगर में कुछ और बरामदगी हुई. चार दिन बाद, दो और तेंदुए और चित्तीदार हिरण की खालें बरामद की गईं. इस बीच, यह पता चला है कि पिछले कुछ महीनों में दो तेंदुओं के अवैध शिकार के मामले सामने आए थे.  


एसटीएसएफ ने पाया कि तिवारी और उसके साथी एक संगठित शिकार गिरोह चला रहे थे और वास्तव में वे अवैध रूप से वन्यजीवों के शिकार को वैध बनाने वाले गिरोह में पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिका निभा रहा था. हालांकि, एसटीएसएफ ने पी-123 या किसी भी अन्य लापता बाघ के किसी भी हिस्से को बरामद नहीं किया है.


अवैध को वैध करने का यह खेल किस प्रकार होता है? 2000 के दशक की शुरुआत में मध्य प्रदेश सरकार पुराने, अपंजीकृत वन्यजीवों के सींग-खाल जैसे अवशेषों को वैध बनाने के लिए एक योजना लेकर आई थी. इस योजना के तहत, पुरानी सींग, खाल और बारहसींगे की सींग जैसे वन्यजीवों के अंगों के मालिक, जिन्होंने पहले खुद को पंजीकृत नहीं किया था, उन्हें ऐसा करने का दूसरा मौका दिया गया. शिकार के बाद प्राप्त अंग (ट्रॉफी) को वन विभाग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना था, जो इसे टैग करके इसके स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी करता है. योजना समाप्त होने के बाद कोई भी 'ट्रॉफी' अवैध होगी, जिसका पंजीकरण नहीं कराया गया है और उसके लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.


एसटीएसएफ ने कहा कि पन्ना गिरोह ने खजुराहो के वन्यजीव कार्यालय से एक मुहर का इंतजाम किया था और लोगों को बेची जा रही वन्यजीवों की 'ट्रॉफियों' को प्रमाणपत्र देने और टैग जारी करने का काम कर रहा था.


शिकार गिरोह के पकड़े जाने के तुरंत बाद, प्रमुख वन्यजीव संरक्षक आलोक कुमार 23 सितंबर को विभाग की हुई किरकिरी को संभालने के मिशन पर पन्ना पहुंचे. कुमार ने कहा, ''पिछले एक मामले, जिसमें बाघ के शरीर के अंग गायब थे, को छोड़कर बाघों की मौत की सभी घटनाओं को गंभीरता से देखा गया और पाया गया कि सभी मौतें प्राकृतिक थीं. लेकिन मैं मानता हूं कि पार्क में प्रबंधन से जुड़े मुद्दे हैं जिन्हें ठीक किया जाना चाहिए.''


फिर भी, पन्ना में केवल बुरी खबरें ही नहीं हैं. सितंबर के अंतिम सप्ताह में, पार्क के निदेशक के.एस. भदोरिया ने दो नए शावकों की तस्वीरें जारी की जिनका जन्म जून में हुआ था.

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