महाराष्ट्रः हरियाली और रास्ता
सूखे पड़े तालाब, नालों, कुओं वगैरह से मिट्टी-गाद-पत्थर निकाल कर उनसे सड़क बनाने की महाराष्ट्र में एनएचएआइ की बुलढाणा परियोजना से सूखाग्रस्त विदर्भ में पानी और हरियाली पहुंची.

अशोक हटकर महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के हिवरखेड के रहने वाले हैं. अपनी बड़ी-बड़ी मूंछों को ताव देते हुए इस अलमस्त किसान को देखकर कहीं नहीं लगता कि यह उसी विदर्भ का रहने वाला है जिसका किसानों की आत्महत्या के मामले में देश के मानचित्र पर पहला स्थान है. पूछने पर मराठी मिश्रित हिंदी में अशोक कहते हैं, ''बाबूजी, दो साल पहले इस वक्त आते तो हम यहां नहीं मिलते. अपनी 500 से ज्यादा भेड़-बकरियों को लेकर यहां से 70 किलोमीटर दूर जालना में होते, ताकि मवेशियों को पीने का पानी मिल सके. या हो सकता था कि सूखे की वजह से खेती बचाने के लिए लाखों रुपए के कर्ज तले दबा होता क्योंकि यह पूरा इलाका ही सूखा था, फरवरी के बाद तो पानी के दर्शन तक नहीं होते थे. न तालाब में, न कुएं में पानी होता था. अब पानी और हरियाली, दोनों है तो न कहीं जाने का, न चेहरे पर फिकर लाने का.''
दो साल के अंदर इस सूखे इलाके में पानी कहां से और कैसे आ गया? दूसरे किसान सुरेंद्र सुखदेव हटकर कहते हैं, ''सड़क वालों (एनएचएआइ) के बुलढाणा मॉडल से. मतलब बुलढाणा मॉडल से सड़क बनाओ और पानी तथा हरियाली मुफ्त में पाओ.'' लेकिन यह बुलढाणा मॉडल है क्या? सड़क परिवहन मंत्रालय के प्रवक्ता मनीष सिंघल कहते हैं, ''एक वाक्य में कहें तो राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण और बिना खर्च जल संचय और संवर्धन का नाम बुलढाणा मॉडल है.''
मनीष बताते हैं कि सड़क बनाने के लिए मिट्टी-पत्थर वगैरह की बड़े पैमाने पर जरूरत होती है. इसके लिए एनएचएआइ को मिट्टी-पत्थर खरीदने पड़ते हैं. फिर खुदाई करके मिट्टी-पत्थर को लाना होता है. इससे सड़क निर्माण का खर्च तो बढ़ता ही है, जहां खुदाई होती है वहां के पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ता है.
लेकिन बुलढाणा मॉडल के तहत एनएचएआइ ने राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस बात के लिए राजी किया कि उनके इलाके में पडऩे वाले तालाब, नाले, कुंओं और पानी के अन्य ऐसे कैचमेंट एरिया, जो गाद-मिट्टी की वजह से सिकुड़ रहे हैं या फिर जिनकी तलहटी मिट्टी से पटती जा रही है, उसकी खुदाई कर मिट्टी और पत्थर एनएचएआइ को निकालने दें.
स्थानीय प्रशासन इसके लिए राजी हो गया. एनएचएआइ इन कैचमेंट एरिया से मिट्टी और गाद निकालकर सड़कों के निर्माण में इस्तेमाल कर रहा है.
मिट्टी-गाद-पत्थर निकलने की वजह से तालाब, नालों के कैचमेंट एरिया बड़े और गहरे हो गए, लिहाजा वहां ज्यादा पानी जमा होने लगा है. पानी जमा होने की वजह से आसपास के इलाकों में वाटर टेबल समृद्ध हो गया है. चारों तरफ हरियाली आ गई है. किसान पहले बड़ी मुश्किल से एक फसल ले पाते थे, अब दो से तीन फसल लेने लगे हैं.
एनएचएआइ के अधिकारियों का कहना है कि यह मॉडल, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की सोच है, जिसे वे पूरी तत्परता के साथ सफलतापूर्वक लागू कर रहे हैं और बुलढाणा जिला इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है.
इन अधिकारियों का कहना है, ''बुलढाणा जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग के 12 प्रोजेक्ट हैं. चिखली से खामगांव के बीच 56 किलोमीटर सड़क और खामगांव से शेगाव के बीच 22 किलोमीटर का प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो चुका है. इन 78 किलोमीटर के रास्ते के दोनों तरफ पडऩे वाले गांवों में पानी की समस्या समाप्त हो चुकी है.
चारों तरफ हरियाली है और लोग मछली पालन भी करने लगे हैं. लांजूड तालाब में छह महीने पहले मछली के बीज डाले गए थे. अब मछुआरे रोजाना इस तालाब से 50-100 किलो मछली निकाल कर बेचने लगे हैं. पहले इन इलाकों में पीने का पानी टैंकरों से भेजना पड़ता था. मेहकर से चिखली के बीच 39 किलोमीटर का प्रोजेक्ट पहले ही पूरा हो चुका है. सड़कों के कुल 12 प्रोजेक्ट के तहत 491 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनेंगे.''
बुलढाणा मॉडल से जुड़े महाराष्ट्र लोकनिर्माण विभाग के पूर्व चीफ इंजीनियर बालासाहेब कहते हैं, ''बुलढाणा जिले की खामगांव तहसील का लांजूड जलाशय, जो पहले सूख जाता था, अब पूरे साल लबालब भरा रहता है.
इससे लांजूड के अलावा बालापुर, खामगांव, मलकापुर, सुटाला, पिंपरी, सुजातपुर, मोरगांव जैसे 12 गांवों में 42,877 लोगों को लाभ हुआ है. इन गांवों में 272 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि खेती योग्य हो गई है.
इस मॉडल की वजह से 1737 टीएमसी जलसंचय वाले तालाबों को और 700 कुओं को पुनर्जीवित किया गया है. इन जलाशयों और कैचमेंट एरिया से 55.10 लाख क्यूबिक मीटर मुरम मिट्टी निकालकर इनका इस्तेमाल सड़कों के निर्माण के लिए किया गया है.''
एनएचआइए के अधिकारियों का दावा है कि जब 491 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा तो लाखों लोगों को इसका लाभ मिलेगा. गर्मी के दिनों में गांवों से पलायन रुक गया है. पहले किसान कर्ज तले दबे होते थे. अब लोगों ने मोटरसाइकिल और कारों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. हालांकि एनएचआइए के वरिष्ठ अधिकारी परोक्ष रूप से यह कहते हैं कि बुलढाणा मॉडल देश भर में लागू करना काफी कठिन काम है. यहां तक कि पूरे महाराष्ट्र में ही इसे लागू करने में पसीने छूट रहे हैं. लेकिन जब इस मॉडल में राज्य सरकारों को कुछ खर्च नहीं है तो फिर दिक्कत किस बात की है? अधिकारी कहते हैं कि इस तरह के काम के लिए विभिन्न सरकारी विभागों में समन्वय की जरूरत है.
लालफीताशाही काफी अधिक है. साथ ही राजनैतिक वजह भी है. स्थानीय नागरिक भी कहते हैं कि कुछ राजनैतिक दलों की शह पर कुछ ऐसे किसान भी बुलढाणा मॉडल के विरोध में खड़े हो जाते हैं जिन्हें सूखे के नाम पर सरकारी सहायता मिलती है. किसानों के नाम पर नेतागीरी करने वाले लोग भी इस तरह के प्रोजेक्ट में अड़ंगा डालते हैं. जो टैंकर से पानी की सप्लाई के बहाने कमिशन खाते थे, सूखे के समय में औने-पौने दाम पर किसानों से भेड़-बकरियां खरीदते थे, उनके लिए अब मुश्किल हो रही है. जाहिर है, ऐसे लोग विरोध करते हैं.
केंद्रीय परिवहन मंत्री गडकरी कहते हैं, ''वे कई राज्य सरकारों से आग्रह कर चुके हैं कि इस मॉडल को लागू करने में सहयोग करें. पानी की कमी दूर होने से गांव के लोग, गरीब लोग खुद ही खुशहाल हो जाएंगे. पलायन तो रुकेगा ही, आर्थिक तरक्की भी होगी. लेकिन दिक्कत इच्छाशक्ति की है.'' उनका कहना है कि नेता सियासत को किनारे रख कर इस प्रोजेक्ट से जुड़ेंगे तो देखते-देखते देश की किस्मत बदल जाएगी. उम्मीद है कि इस साल के अंत तक अजंता से बुलढाणा 49 किमी, बालापुर-चिखली 82 किमी, जलगांव जमोद-नंदुरा 25 किमी, चिखली-ताकडख़ेड 39 किमी का काम पूरा हो जाएगा. इस तरह कुल 195 किमी सड़क के दोनों ओर बसे गांव हरियाली और पानी से आबाद दिखने लगेंगे.
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