उत्तराखंडः किराये पर खेती की जमीन
उत्तराखंड सरकार ने राजस्व बढ़ाने और जमीन के अधिकतम उपयोग का नया तरीका खोजा

उत्तराखंड में कृषि के लिए लीज पर जमीन लेना अब संभव है. साढ़े बारह एकड़ से अधिक भूमि खरीद और 30 वर्ष के लिए भूमि लीज पर देने को लेकर चार महीने से अटके अध्यादेश को राजभवन की हरी झंडी मिल गई है.
अध्यादेश में भांग (औद्योगिक हेंप) के लिए भूमि लीज पर देने का प्रावधान था, जिस पर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने आपत्ति व्यक्त करते हुए इसे रोक लिया था. बाद में सरकार ने इसे हटा दिया. सरकार ने तय किया है कि सरकारी जमीन का जिला स्तर पर रजिस्टर बनेगा और भूमि आवंटन के लिए टेंडर निकलेंगे.
लीज के बदले काश्तकारों को किराये का भुगतान करना होगा. इसकी अधिसूचना के अनुसार, अब कोई संस्था, कंपनी, फर्म या स्वयं सहायता समूह गांवों में खेती की जमीन लीज पर ले सकेंगे. अधिकतम 30 एकड़ भूमि तीस साल की लीज पर ली जा सकेगी. सरकार विशेष परिस्थितियों में 30 एकड़ से ज्यादा जमीन भी लीज पर दे सकती है. ऐसी जमीन के आसपास सरकारी भूमि है तो इसे जिलाधिकारी की अनुमति से शुल्क चुकाकर पट्टे पर लिया जा सकेगा.
सरकार के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी में आ रही दिक्कतों के मद्देनजर उसने लैंड लीज की पॉलिसी बनाई है. वहीं यूकेडी के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी मानते हैं कि जानवरों से फसलों की बर्बादी से पीछा छुड़ाने के लिए लोग पलायन को मजबूर हैं.
वे पूछते हैं कि सरकार इसका समाधान ढूंढे बिना भूमि को लीज पर देने में इतनी रुचि क्यों ले रही है? इस पॉलिसी में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की भी मांग हो रही है.
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