जम्मू-कश्मीर- 'बाहरी' पर सितम
हत्या की घटनाओं से कश्मीर घाटी में प्रवासी मजदूरों के बीच दहशत फैल गई है. ये मजदूर हर साल सेब के सीजन में यहां आते हैं

मोअज्जम मोहम्मद
घाटी में लंबे वक्त से हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख रियाज नायकू ने फरवरी में एक ऑडियोटेप जारी कर चेतावनी दी थी कि अगर भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विशेष संवैधानिक प्रावधान के साथ छेड़छाड़ की तो खौफनाक नतीजे होंगे. नायकू ने प्रवासी मजदूरों और गैर-स्थानीय कारोबारियों को भी धमकी दी थी कि ऐसी स्थिति में वे फौरन कश्मीर छोड़कर चले जाएं.
यह राज्य में आतंक के 30 साल पुराने इतिहास में एक बड़ा बदलाव था, क्योंकि प्रवासी मजदूरों को—जिनमें से ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश से हर साल घाटी में काम करने के लिए आते हैं— शायद ही कभी निशाना बनाया गया था. वे कश्मीरी मुसलमानों के साथ रहते, जो उन्हें घर किराये पर दे दिया करते थे. इनमें दक्षिण कश्मीर के गांवों के विशाल भूभाग भी शामिल हैं, जहां सेब के बगीचे और धान के खेत हैं. नायकू इसी इलाके का रहने वाला है.
दक्षिण कश्मीर के जुड़वां जिलों पुलवामा और शोपियां में 14 अक्तूबर के बाद हुई तीन हत्या—राजस्थान के ट्रक ड्राइवर मोहम्मद शरीफ, छत्तीसगढ़ के मजदूर सेठी कुमार और पंजाब के फल कारोबारी चरनजीत सिंह के बाद सब बदल गया. शोपियां के ट्रेंज गांव के स्थानीय निवासी कहते हैं कि चरनजीत सिंह उनके साथ करीब एक दशक से जुड़े थे. वे हर साल गिरे हुए सेबों (सी-ग्रेड) की खरीद के लिए आते थे; पहले कभी कोई दिक्कत नहीं आई.
वे और उनके सहयोगी संजय कुमार इस साल देर से आए, क्योंकि अनिश्चितता के चलते सेब तोडऩे में देरी हुई. 16 अक्तूबर की शाम दो बंदूकधारी अचानक गांव में आ धमके और उन्होंने इन दोनों के साथ काम कर रहे दर्जन भर प्रवासी मजदूरों को घेर लिया. मगर उन्होंने केवल चरनजीत और सेठी को गोली मारी. कुमार श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था.
इन हत्याओं के चलते घाटी की प्रवासी आबादी के बीच दहशत की लहर फैल गई, जिससे सेब के व्यापार को जबरदस्त झटका लगा. दर्जनों गैर-कश्मीरी ट्रक वालों को, जो दक्षिण कश्मीर से सेव की ढुलाई के लिए यहां आए थे, 'सुरक्षित क्षेत्रों' में ले जाया गया. गांव के अंदरूनी हिस्से अब पहुंच से बाहर हैं और शहरों से गांवों की तरफ जाने वाली सड़कों पर केवल माल उठाने के लिए पिकअप पॉइंट बना दिए गए हैं, जहां सुरक्षा बल और पुलिस तैनात हैं.
सेब उत्पादकों का कहना है कि इस वजह से उनकी लागत बढ़ गई है क्योंकि उन्हें उपज इन ठिकानों तक पहुंचानी पड़ती है. शोपियां के जिला विकास आयुक्त मोहम्मद यासीन चौधरी कहते हैं कि यह 'अस्थायी व्यवस्था' है और सामान्य व्यापार जल्दी ही बहाल कर दिया जाएगा. जिले के 26,231 हेक्टेयर इलाके में सेब उगाए जाते हैं और इसे घाटी के 'सेब के कटोरे' के तौर पर जाना जाता है.
जम्मू और कश्मीर की पुलिस ने इन हमलों के लिए आतंकियों को दोषी ठहराया है. वांछित मुजरिमों का एक पोस्टर लगाया गया है, जिस पर कथित हिज्बुल मुजाहिदीन उग्रवादियों सईद नावेद मुश्ताक (उर्फ नावेद बाबू) और शोपियां के राहिल मागरे की तस्वीरें हैं. नावेद पुलिस का पूर्व जवान है जो 2017 में बडगाम से चार राइफलों के साथ भागकर हिज्ब में शामिल हो गया था. राज्य सरकार के एक शीर्ष अफसर कहते हैं, ''यह प्रवासियों के बीच डर फैलाने के लिए किया जा रहा है. हमने भरोसा कायम करने और प्रवासी मजदूरों का कश्मीर घाटी से पलायन रोकने के लिए इन इलाकों को महफूज कर दिया है. सरकार ने पर्याप्त बंदोबस्त कर दिए हैं.'' मगर यह काफी नहीं भी हो सकता है.
श्रीनगर में कश्मीर दस्तकारी के प्रमुख डीलर इम्तियाज अहमद बताते हैं कि उन्होंने अपनी कशीदाकारी की यूनिट के कामगारों को 14 अक्तूबर को मोबाइल सेवाएं बहाल होने के बाद ही बुलाया. दूसरे हजारों प्रवासी मजदूरों की तरह उनके 22 कामगार, जो बिहार के थे, 2 अगस्त को जारी की गई सरकारी एडवायजरी के बाद चले गए थे. इकाई तभी से ठप पड़ी है. अहमद कहते हैं, ''मैंने भरोसा दिलाया कि वे सुरक्षित रहेंगे, जिसके चलते मेरे मजदूर 1 नवंबर को लौटने के लिए तैयार थे. मगर हमलों के बाद उन्होंने फोन किया और अपनी मुश्किल जाहिर की.''
घाटी में कई बाशिंदे अब गैर-स्थानीय लोगों को किराये पर जगह नहीं देना चाहते. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद उनके मन में आशंका घर कर गई है कि ये लोग उनकी संपत्ति पर कब्जा कर सकते हैं.
श्रीनगर के हवल मुहल्ले के, जिसे प्रवासियों का अड्डा होने के नाते 'बिहार चौक' के नाम से ज्यादा जाना जाता है, एक निवासी कहते हैं, ''सरकार का असली एजेंडा जनसांख्यिकी बदलने का है.'' माहौल में असुरक्षा का बोलबोला है और कई बाशिंदे कहते हैं कि वे अपने मकानों को अब किराये पर नहीं देंगे.