हरियाणाः दूसरा रास्ता

भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी पार्टी कांग्रेस से इतर एक नया समीकरण बनाने की जुगत में हैं, लेकिन क्या वे इसमें कामयाब हो पाएंगे?

गेट्टी इमेजेज
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हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा नया समीकरण तैयार कर रहे हैं. उन्होंने बीते महीने रोहतक में नए तेवर में 'महारैली' की और चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए समर्थक विधायकों तथा पूर्व मंत्रियों के साथ 36 सदस्यीय कमेटी बनाई. इससे लगता है कि हुड्डा कांग्रेस की जरूरत हो सकते हैं, पर उनको अब कांग्रेस की जरूरत नहीं है. हुड्डा विरोधी अभय चौटाला से भी पींगें बढ़ा रहे हैं. हुड्डा की चुनाव समिति के सदस्य और पूर्व मंत्री आफताब अहमद कहते हैं, ''हम विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.'' हुड्डा ने अनुच्छेद 370 के मसले पर पार्टी लाइन से इतर केंद्र सरकार का समर्थन किया है. उन्होंने यह भी कह दिया, ''कांग्रेस कुछ भटक गई है.''

दरअसल, यह हुड्डा की मजबूरी भी है, क्योंकि दबाव बनाने के बावजूद हाइकमान ने उनके हाथ में प्रदेश की बागडोर नहीं सौंपी है. हरियाणा में कांग्रेस कई गुटों में बंटी है, जिसमें सबसे बड़ा धड़ा हुड्डा का है. इनके अलावा कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, विधायक किरण चौधरी, विधायक कैप्टन अजय यादव, कुमारी शैलजा आदि भी अलग-अलग गुटों की नुमाइंदगी करते हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए अशोक तंवर भी अलग धड़े से हैं. तंवर विरोधी तमाम गुट इस पर एकमत हैं कि तंवर के नेतृत्व में हरियाणा में पार्टी मजबूत होने की बजाए रसातल में चली गई है. पिछले छह वर्षों में आज तक न तो संगठनात्मक चुनाव हुए हैं और न ही विभिन्न चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है. हुड्डा समर्थक विधायकों की संख्या 13 है. उनमें से एक विधायक करण दलाल दावा करते हैं, ''अगर प्रदेश कांग्रेस की बागडोर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंप दी जाए और उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़े जाएं तो पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.''

पिछले छह वर्षों में कांग्रेस हाइकमान तीन बार प्रदेश प्रभारी बदल चुका है, पर वे भी गुटबाजी खत्म नहीं कर पाए. मौजूदा प्रभारी गुलाम नबी आजाद हैं, पर विधानसभा चुनाव नजदीक होने के बाद भी वे प्रदेश से नदारद हैं. हुड्डा को लगता है कि इन परिस्थितियों में कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएगी, इसलिए उन्होंने गैर कांग्रेसी जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है. रोहतक की रैली में न तो उन्होंने सोनिया गांधी या राहुल गांधी का नाम लिया और न ही कहीं उनके पोस्टर लगवाए. हुड्डा के नए समीकरण में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) शामिल हो सकता है. इनेलो के मुखिया ओप्रकाश चौटाला कहते हैं कि उन्हें कांग्रेस विरोधी किसी भी समान विचार वाले दल के साथ जाने में कोई ऐतराज नहीं हैं. हुड्डा और चौटाला की जाट तथा ग्रामीण मददाताओं पर खासी पकड़ है. इनके साथ आने से भाजपा को परेशानी हो सकती है.

आम आदमी पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, पर वह हुड्डा के साथ जा सकती है. वहीं, भाजपा से अलग होकर पार्टी बनाने वाले पूर्व सांसद राजकुमार सैनी कहते हैं, ''हम जाट विरोधी नहीं हैं.'' इससे पहले वे इसी मुद्दे पर चौटाला और हुड्डा को घेरते रहे हैं. उनके बदले सुर को भी हुड्डा की सियासी चाल का हिस्सा माना जा रहा है.

कुरुक्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार सरबजोत सिंह दुग्गल कहते हैं, ''हुड्डा ने अनुच्छेद 370 का समर्थन खास रणनीति के तहत किया है, ताकि चुनाव में इस मुद्दे पर भाजपा को काटा जा सके.'' पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला कहते हैं, ''हुड्डा की यह चाल हमें नहीं रोक पाएगी.'' इस बीच, अनुच्छेद 370 पर हुड्डा केरुख से मेवाती मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के कांग्रेसी असमंजस में हैं. राज्य की कम-से-कम आठ सीटों पर मेव मुस्लिम वोटरों का सीधा प्रभाव है.

हुड्डा की रोहतक रैली के लिए मेवात से बड़ी संख्या में गाडिय़ां उपलब्ध कराने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ मेव नेता ममन खान इंजीनियर कहते हैं, ''हम अनुच्छेद 370 के मामले में हुड्डा का समर्थन नहीं करते. हम पार्टी लाइन के साथ हैं.''

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