कर्नाटक में नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट देने की होड़

कर्नाटक की राजनीति में वंशवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में बेटे-बेटियां सामने हैं.

 हाथ का सहारा मैसूरू में 2 अप्रैल को बेटे यतींद्र के लिए चुनाव प्रचार करते मुख्यमंत्री सिद्धरामैय
हाथ का सहारा मैसूरू में 2 अप्रैल को बेटे यतींद्र के लिए चुनाव प्रचार करते मुख्यमंत्री सिद्धरामैय

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में महज महीना भर बाकी है, लेकिन वे पूरी तरह तैयार हैं—सभी पार्टियों के नेताओं के बेटे-बेटियां, पत्नियां, दामाद वगैरह इस चुनाव को पारिवारिक सर्कस बना सकते हैं.

मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के पुत्र यतींद्र, पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के पुत्र बी.वाइ. विजयेंद्र, पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना और पूर्व केंद्रीय मंत्री एस.एम. कृष्णा की बेटी संभवी—ये सभी संभावित दावेदार हैं. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली के बेटे हर्ष मोइली को उस ट्वीट की वजह से चुनाव मैदान से हटने को मजबूर होना पड़ा है कि उम्मीदवारों के चयन में पैसे का खेल चल रहा है.  

वैसे, कर्नाटक की राजनीति में वंशवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में बेटे-बेटियां सामने हैं. एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री एन. धरम सिंह के बेटे अजय सिंह कांग्रेस प्रत्याशी हैं, पूर्व मुख्यमंत्री एस. बंगरप्पा के दो बेटे—मधु बंगरप्पा बतौर जनता दल (सेक्युलर) प्रत्याशी और कुमार बंगरप्पा बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. दिवंगत मुख्यमंत्री एस.आर. बोम्मई के पुत्र बसावराज बोम्मई भी भाजपा उम्मीदवार हैं.

मैसूरू के राजनैतिक विश्लेषक एन.एल. प्रकाश कहते हैं, ''परिवारवादी राजनीति कर्नाटक का अभिन्न अंग है. भाजपा और जद (एस) भले वंशवाद के लिए कांग्रेस को दोष दें, लेकिन वे भी बेहतर नहीं हैं.''

लेकिन हर कद्दावर नेता ने अपने परिजनों के लिए टिकट को संभवतः उचित बताया है. येदियुरप्पा चाहते हैं कि उनके बेटे विजयेंद्र सिद्धरामैया के पुत्र यतींद्र को वरुणा (मैसूरू) में 'तगड़ी' चुनौती दे. हालांकि पड़ोस के चामुंडेश्वरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे सिद्धरामैया जोर देकर कहते हैं, ''लोग यतींद्र को इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए किए काम और आगे की उसकी योजनाओं के लिए वोट देंगे, न कि इसलिए कि वह मेरा बेटा है.''

उनका बेटा हालांकि राज्य की राजनीति में अपेक्षाकृत नवागंतुक है, क्योंकि वह अपने भाई राकेश के 2016 में निधन के बाद सक्रिय हुआ है. उधर, भाजपा वरुणा में अपनी पैठ बनाकर और मांड्या जिले में कृष्णा की बेटी को उतारकर पुराने मैसूरू के वोकालिग्गा समुदाय के गढ़ में अपनी पहुंच बनाना चाहती है.

जानकारों का कहना है कि कर्नाटक में वंशवादी राजनीति की कामयाबी ने नेताओं के ज्यादा से ज्यादा रिश्तेदारों को राजनीति में उतरने को ललचाया है. उदाहरण के लिए, कर्नाटक के मौजूदा सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खडग़े लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े के पुत्र हैं. इसी तरह प्रकाश खांड्रे, डी.एस. कशप्पनवार, प्रिया कृष्णा, बी.एस. राघवेंद्र और एस.सी. उदासी सभी राजनैतिक परिवारों से हैं. जाहिर है, ये सभी कर्नाटक की राजनीति में वंशवाद के दबदबे के उदाहरण हैं.

वंशवाद का सबसे माकूल उदाहरण क्षेत्रीय पार्टी जद (एस) पेश करती है. उसमें हर चुनाव में नेताओं के रिश्तेदारों की चुनाव में उतरने की तादाद बढ़ती जाती है. जद (एस) मुखिया देवेगौड़ा के दो बेटों एच.डी. कुमारस्वामी (पूर्व मुख्यमंत्री) और एच.डी. रेवन्ना (पूर्व मंत्री) के अलावा इस बार चर्चा है कि कुमारस्वामी की पत्नी अनिता और रेवन्ना के पुत्र प्रज्ज्वल को भी चुनाव में उतारा जा सकता है. यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि रेवन्ना की पत्नी की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं काफी हैं.

इसके बावजूद सचाई यही है कि वंशवाद के लिए चर्चित कांग्रेस में ही इस बार चुनाव में उतरने वाले नेताओं के रिश्तेदारों की संख्या सबसे ज्यादा हो सकती है. दरअसल, कई कांग्रेसी नेता अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की कोशिशों में जुटे हैं. इनमें राज्य के गृह मंत्री आर. रामलिंग रेड्डी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.के. जाफर शरीफ, के. रहमान खान और के.एच. मुनियप्पा प्रमुख हैं, जो सूत्रों के मुताबिक, अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए जबरदस्त लामबंदी कर रहे हैं.

बहरहाल, इन चुनावों में चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, कर्नाटक के लोग पहले से जानते हैं कि यह निश्चित रूप से एक बड़ा पारिवारिक उत्सव होगा. हर पार्टी में जो नेता पुत्र-पुत्रियों की पौ-बारह है.

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