सत्ता विरोधी भावनाओं को क्या पलट पाएगा वसुंधरा का बजट ?

राजे का हर बजट कागजों पर तो अच्छा रहा है, पर असल बात घोषणाओं पर अमल की है, जो नहीं होता. अब उन्हें अफसरशाहों से जवाब मांगना चाहिए कि वे निवेश लाने में नाकाम क्यों रहे.

अग्निपरीक्षा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे
अग्निपरीक्षा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मौजूदा कार्यकाल के आखिरी बजट में समाज के हर तबके को खुश करने की कोशिश की है. मगर सवाल है कि क्या वे अपने वादे पूरे कर पाएंगी और क्या अकेला बजट उस तगड़ी सत्ताविरोधी भावना को पलट सकता है जिसका वे कमजोर राजकाज, जवाबदेही की कमी और पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं के बीच खुशगवारी का एहसास पैदा करने की नाकाबिलियत के आरोपों के बीच सामना कर रही हैं.

दरअसल, सरकार के साथ कुछ गड़बड़ी के संकेत तभी दिखाई देने लगे थे जब पार्टी ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों की प्रचंड जीत के फौरन बाद 2014 में हुए उपचुनावों में चार में से तीन विधानसभा सीटें गंवा दी थीं.

पिछली कांग्रेस सरकार ने भी चुनावी साल में लोकलुभावन योजनाओं के लिए खजाने का मुंह खोल दिया था और तेल रिफाइनरी तथा बुजुर्ग पेंशन सरीखी योजनाओं पर 6,000 करोड़ रु. के वादे किए थे, पर इन योजनाओं का फायदा उठाने वालों में से किसी ने उसे वोट नहीं दिया.

उपचुनावों के नतीजों से पता चलता है कि बीजेपी की सरकार को भी उन योजनाओं पर अमल करने या रिफाइनरी के काम को आगे बढ़ाने के एवज में लोगों के वोट नहीं मिले.

राजे का हरेक बजट कागजों पर तो अच्छा रहा है, पर असल बात घोषणाओं पर अमल की है, जो नहीं होता. राजे की मंडली ने उन पर निजी क्षेत्र को लाने पर जोर डाला और औद्योगिक और श्रम सुधारों के जरिए खासा प्रचार किया.

नतीजतन दो साल तो रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारी में और 20,000 किमी सड़कें बनाने के लिए निजी क्षेत्र को न्यौता देने में बर्बाद हो गए. तीसरे साल का अंत आते-आते यह बिल्कुल साफ हो गया कि रिसर्जेंट राजस्थान में निवेश के जो वादे किए गए थे, उनमें से दस फीसदी भी दिन का उजाला नहीं देख पाएंगे और सड़कों के निर्माण में रकम खर्च करने के लिए कोई नहीं आएगा.

अब मौजूदा बजट में राजे ने 8,500 किमी ग्रामीण सड़कों, 882 किमी शहरी सड़कों और उसके अलावा बाकी बचे गांवों में गौरव पथ के काम पूरे करवाने के लिए धन मुहैया किया है.

वॉटर ग्रिड बनाने या नहरों और नदियों को जोडऩे के ज्यादातर प्रस्ताव अब तक महज कागजों पर ही हैं और ये तब तक शुरू नहीं हो सकते जब तक कि केंद्र इनके लिए रकम मुहैया न करे, जो हजारों करोड़ रु. में हैं.

राजे का बजट केवल सिंचाई और पेयजल के लिए 52,000 करोड़ रु. की एक परियोजना शुरू करने की बात करता है, पर जब तक फौरन इसका काम शुरू नहीं करवाया जाता, तब तक भाजपा को इसका ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा.

ऊर्जा क्षेत्र में एक बार फिर वितरण के काम में निजी क्षेत्र की चुनिंदा शिरकत का ऐलान किया गया है, पर उपभोक्ताओं को इसके फायदों का साफ संदेश अभी पहुंचाया जाना है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में सात लाख नए कनेक्शनों और किसानों के लिए दो लाख कृषि कनेक्शनों से उनकी लोकप्रियता में जरूर इजाफा होगा.

अपने जिन फैसलों से वे किसानों की परवाह नहीं करने की आलोचना को खामोश करने की उम्मीद कर रही हैं, उनमें सहकारी बैंकों से लिए गए 50,000 रु. तक के कम वक्त के फसल कर्जों को माफी और राजस्थान राज्य किसान कर्ज राहत आयोग की स्थापना शामिल हैं.

प्रस्तावित आयोग कर्ज की समस्याओं की नियमित निगरानी करेगा और समाधान निकालेगा. उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरसों और चने की खरीद के लिए ब्याज मुक्त कर्ज और कृषि जलाशय बनाने, खुदाई करने, हरित मकान बनाने वगैरह के लिए भी लोगों को अतिरिक्त सब्सिडी देने का ऐलान किया है. मगर सचिन पायलट की अगुआई में कांग्रेस ने और विधायक अमरा राम के मातहत माकपा ने कर्ज माफी को बड़ा मुद्दा बना दिया है.

अब वक्त आ गया है जब उन्हें अपने अफसरशाहों से जवाब मांगना चाहिए कि वे भामा शाह, राशन बांटने के लिए पीओएस मशीन, राशन दुकानों को डिपार्टमेंटल स्टोरों में बदलने सरीखी योजनाओं के नतीजे क्यों नहीं दे सके और उद्योगों, पर्यटन और सड़कों के लिए निवेश लाने में नाकाम क्यों हुए? केवल अफसरों को हड़काकर वे खोई जमीन दोबारा हासिल करने की उम्मीद नहीं कर सकतीं.

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