सीएनटी-एसपीटी ऐक्ट पर झारखंड में छिड़ी जंग

इन दोनों पुराने काश्तकारी कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव से झारखंड में भारी उबाल, विरोध-प्रदर्शन जारी.

झारखंड में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संसोधन के खिलाफ प्रदर्शन
झारखंड में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संसोधन के खिलाफ प्रदर्शन

जब दो साल पहले झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी ने रघुबर दास को चुना था, तो विपक्ष और आदिवासी संगठनों ने आदिवासी-विरोधी होने का आरोप लगाया. तब यह आरोप दबी-जुबान ही था. लेकिन इस आरोप को हवा 2016 में लगी जब रघुबर दास के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने नई डोमिसाइल नीति और दो पुराने काश्तकारी कानूनों—छोटानागपुर काश्तकारी ऐक्ट (सीएनटी) 1908 और संथाल परगना काश्तकारी ऐक्ट (एसपीटी) 1949 में बदलाव की कवायद की. राज्य में पूरे साल यही दोनों मामले छाए रहे. सरकार पहले तो अप्रैल में नई डोमिसाइल नीति ले आई. इसके तहत 30 साल या इससे ज्यादा समय से झारखंड में रह रहे लोगों को भी 'स्थानीय' का दर्जा हासिल होगा. विरोधियों के मुताबिक, यह 'बाहरियों' को लाभ पहुंचाने के मकसद से बनाया गया. यह विरोध सीएनटी और एसपीटी ऐक्ट में संशोधन के प्रस्ताव पर और तीखा हो गया. विपक्ष और विभिन्न स्थानीय समूहों के अलावा खुद बीजेपी के कुछ आदिवासी नेताओं ने भी इसका विरोध किया. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने भी सीएनटी और एसपीटी ऐक्ट में संशोधन के खिलाफ नाराजगी जताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. नवंबर में विधानसभा में भारी हंगामे के बीच इसे पारित कर दिया गया. संशोधन के मुताबिक, लोग अपनी जमीन गैर-कृषि कार्यों या व्यावसायिक कार्यों के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. वे जमीन सड़क, बिजली परियोजनाओं के लिए दे सकते हैं जबकि पहले जमीन की खरीद-बिक्री की मनाही थी. विभिन्न संगठन इसे आदिवासियों की जमीन कब्जाने का जरिया बता रहे हैं. 25 नवंबर को विपक्ष के झारखंड बंद के अलावा 2 दिसंबर और 14 दिसंबर को भी बंद किया था. संशोधन को अभी राष्ट्रपति से मंजूरी मिलनी बाकी है और प्रदर्शन जारी है.

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