भारत-रूस: एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से बेहतर
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत के साथ रिश्तों में धीमी प्रगति पर नाखुशी जाहिर की.

इस बात को 16 साल हो चुके हैं जब मुझे रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन का इंटरव्यू करने का मौका मिला था. वर्ष 2000 में जब मैंने इंडिया टुडे के लिए क्रेमलिन में उनसे बातचीत की थी, उस समय पुतिन हाल ही में राष्ट्रपति बने थे. वे रूस में सबसे ताकतवर पद पर सीधे आसीन हो गए थे और उनके नाम के साथ कोई पिछली उपलब्धि भी नहीं जुड़ी थी, सिवा इसके कि वे केजीबी के पूर्व जासूस रह चुके थे, पार्टी के वफादार थे और जूडो में ब्लैक बेल्ट धारी थे.
कई चुनौतियां थी सामने
पुतिन के सामने रूस को गहरे दलदल से बाहर निकालने की चुनौती थी, जिसमें वह बुरी तरह धंस चुका था— हर तरफ अराजकता का माहौल था, अर्थव्यवस्था कुलीनों के हाथ में थी, सड़कों पर नई माफियाशाही का राज था, और भ्रष्टाचार चरम पर था. लेकिन उन्होंने इस चुनौती से पार पाने के लिए पूरी दृढ़ता (उनके विरोधियों ने इसे निर्ममता बताया था) दिखाई.
इन 16 सालों में काफी कुछ बदला
पिछले हफ्ते सेंट पीटर्सबर्ग में मैं खास बातचीत के लिए दुनिया भर से कुछ चुने हुए संपादकों के समूह के साथ पुतिन से मिला. वे रूस के लौह पुरुष बन चुके हैं. इन 16 वर्षों में वे अडियल संघों को काबू में कर चुके हैं, उन्होंने देश की चरमराती अर्थव्यवस्था को तेल की कमाई के बल पर फिर से मजबूत किया और उनके देशवासियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह कि देश के गौरव को फिर से स्थापित किया है. पश्चिम भले ही उन्हें नया, खलनायक मानता हो, लेकिन क्रीमिया को बलपूर्वक यूक्रेन से बाहर निकालने का साहस दिखाने के लिए अपने देश में उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाता है, भले ही इसके कारण आर्थिक प्रतिबंध लगने से उनकी नौकरियां प्रभावित हुई हों या कीमतें बढ़ी हों.
सत्ता में बनाई गहरी पैठ
हालांकि, पुतिन की पसंद के लोग, जिन्हें सिलोविकी कहा जाता है, अब सत्ता और कारोबार में ऊंची जगहों पर विराजमान हैं, पर उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है.
कई स्तरों पर किए बदलाव
पुतिन से बातचीत के लिए सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम (एसपीआइईएफ) को चुना गया था. उन्होंने इस फोरम को दावोस के समानांतर खड़ा किया है. यह खूबसूरत बंदरगाह वाला शहर पुतिन की पसंदीदा जगह रही है— यही वह जगह थी, जहां युवा डिप्टी मेयर और 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में शक्तिशाली कमेटी फॉर फॉरेन इकोनॉमिक रिलेशंस के मुखिया के रूप में उन्होंने एक दृढ़निश्चयी, परिश्रमी और अटल व्यक्ति के रूप में ख्याति अर्जित की थी. उनकी इस ख्याति के चलते ही तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का ध्यान उनकी तरफ गया था. एसपीआइईएफ 2016 में पुतिन मेजबान थे और उन्होंने फरीद जकरिया की अध्यक्षता वाले सत्र में पूरे दो घंटे बिताए, जहां वे सभी सवालों के जवाब देने के लिए तैयार दिखे.
करीब आधी रात का समय हो रहा था जब हमने फोरम के प्रेसिडेंशियल विंग के सम्मेलन कक्ष में पुतिन से मुलाकात की. पूरा दिन व्यस्त रहने के बावजूद वे पूरी तरह फिट और तरोताजा दिख रहे थे. टीएएसएस के प्रमुख सर्गे मिखाइलोव ने जब उन्हें याद दिलाया कि 2000 में उन्होंने विदा होते समय 'जल्दी ही फिर मिलेंगे' कहा था तो पुतिन मुस्कराते हुए मेरी तरफ मुड़े और कहा, 'देखिए मैंने अपना वादा पूरा किया.'
सभी सवालों के दिए जवाब
मैंने छोटी-सी बातचीत के दौरान उनसे कई सवाल किए—क्या वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को फोन करेंगे और उनसे कहेंगे कि वे एनएसजी में भारत को सदस्यता दिलाने का समर्थन करें? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के दौरे के बाद भारत के अमेरिका के करीब जाने से हम रूस से दूर हो गए हैं? क्या उन्होंने कभी योगाभ्यास की कोशिश की है? पुतिन ने मेरे सभी सवालों के जवाब दिए और योगाभ्यास के बारे में सबसे पहले जवाब दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि वे 'योगाभ्यास करने वालों से ईर्ष्या रखते थे' लेकिन फिटनेस का शौक रखने के बावजूद 'दूर से ही देखना पसंद करते थे.'
एनएसजी में भारत की सदस्यता के सवाल पर पुतिन ने खुलासा किया कि वे चीन के संपर्क में थे और चीन की कुछ गंभीर आपत्तियों, जिन्हें सुलझाने की जरूरत है, के बावजूद उन्हें सकारात्मक नतीजे की पूरी उम्मीद है. इसके बाद उन्होंने भारत-रूस संबंधों की प्रगति पर अपनी बेचैनी जाहिर की और बताया कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक कारोबार 10 अरब डॉलर था, जो कम था. उन्होंने कहा, 'हमें अपने संबंधों को विभिन्न दिशाओं में बढ़ाने, निवेश बढ़ाने और संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की आवश्यकता है.'
अमेरिका को लेकर क्या है नजरिया?
अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियों से क्या रूस नाराज है, इस सवाल पर रूसी राष्ट्रपति के दो-टूक जवाब ने मुझे चौंका दिया. पहले तो कहा, 'यह स्वाभाविक प्रक्रिया है.' लेकिन फिर उन्होंने बताया कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले अमेरिका ने उन्हें वीजा देने से भी मना कर दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री बनते ही प्रतिबंध हटा लिया. पुतिन का मतलब साफ था: रूस ज्यादा भरोसेमंद मित्र है और मोदी को मौकापरस्त लोगों पर फिदा नहीं होना चाहिए. या जैसा कि पुरानी रूसी कहावत है: एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से बेहतर होता है. मोदी जी इसे नोट कर लें.