राजस्थान विशेषांकः किताबी ज्ञान ही उच्च शिक्षा नहीं है

अगर हमारी सरकार समय रहते नहीं जागी तो आने वाले समय में शिक्षण संस्थाएं ज्ञान का केंद्र और नौकरी का जरिया न रहकर बेरोजगारी पैदा करने वाले केंद्र बन जाएंगी.

उच्च शिक्षा आज के युवाओं को उनकी प्रतिभा से भटका रही है. आज की उच्च शिक्षा पद्धति रटंत विद्या पर आधारित है. इसके कारण छात्रों में इनोवेशन की समझ विकसित नहीं हो पाती. यह शिक्षा पद्धति व्यावहारिक ज्ञान और आचरण को भी विकसित होने का अवसर नहीं देती. आज के शिक्षक से ज्यादा जानकारी और ज्ञान तो गूगल और इंटरनेट पर उपलब्ध है.

उच्च शिक्षा के विकास की बात करें तो पिछले एक दशक में भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में रिकॉर्ड तरक्की देखने को मिली है. देश में हजारों की संख्या में तकनीकी संस्थाओं और निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई है. सरकार के उदारवादी रवैए के कारण यह मुमकिन हुआ है. पिछले एक दशक में सरकार ने उच्च शिक्षा के तकनीकी संस्थानों जैसे आइआइएम, एनआइटी, आइआइटी, नेशनल लॉ यूनिवॢसटी और एम्स की स्थापना की है. इससे उच्च शिक्षा में छात्रों का जीईआर (ग्रॉस इनरोलमेंट रेट) बढ़ा है और यह 9 फीसदी पर आ गया है जो कि औसत ग्लोबल दर से 6 फीसदी कम है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तुलना में तो यह 50 फीसदी से भी कम है. सरकार की कोशिश 2020 तक इसे 30 फीसदी तक लाने की है.

नासकॉम के एक सर्वे के अनुसार देश में 2014 तक कुल 10 करोड़ युवा 17 से 19 वर्ष के बीच थे. इनमें से कुल 2 करोड़ छात्र उच्च शिक्षा तक पहुंचते हैं. बाकी 80 फीसदी लोग किसी-न-किसी कारण से पीछे रह जाते हैं. इसलिए देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की पर्याप्त संख्या मौजूद है. लेकिन देश में उच्च शिक्षा के इंजीनियर्स, आइटीआइ, फार्मेसी, होटल मैनेजमेंट, प्रबंध संस्थाओं आदि में पिछले दो—तीन सालों में रिकॉर्ड गिरावट भी देखने को मिली है. सरकार के करोड़ों—अरबों रुपयों से बनी संस्थाएं विद्यार्थियों की बाट देख रही हैं. सभी राज्यों में तकनीकी संस्थाओं में उच्च शिक्षा के प्रति छात्रों का रुख उदासीनता वाला रहा है. पिछले दो सालों में 30 फीसदी से ज्यादा निजी क्षेत्र के संस्थान या तो बंद हो गए हैं या उन्होंने अपनी सीटों की संख्या में कमी करवाई है. ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेज, प्रबंधन संस्थान, फार्मेसी और उच्च शिक्षा के कॉलेजों की बहुत-सी शाखाओं और कोर्सों के प्रति छात्रों का रुझान भी कम हुआ है.

सरकार की उदारवादी नीति का फायदा उठाकर बहुत-सी संस्थाओं ने अनेक कॉलेज खोल लिए और उनमें सीटों की संख्या बढ़ा ली. एक पारी की जगह संस्थाओं को दो-दो पारियों में चलाया, जिससे उच्च और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ा गया. इससे छात्रों का प्लेसमेंट बहुत ही निम्न या औसत रह गया. इसलिए छात्र शिक्षण संस्थाओं से विमुख होते जा रहे हैं.

उच्च और तकनीकी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है. आइए देखें वे कदम क्या हो सकते हैं:
- राष्ट्रीय स्तर पर उच्च और तकनीकी शिक्षा के सभी संस्थानों के लिए ''एक प्रवेश परीक्षा, एक पाठ्यक्रम और एक फीस'' की पद्धति लागू की जानी चाहिए.
- उच्च और तकनीकी शिक्षा का पाठ्यक्रम शोध/प्रैक्टिकल और ट्रेनिंग पर आधारित होना चाहिए.
- राष्ट्रीय स्तर पर उच्च और तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम और सुविधाओं को बाजार के अनुरूप और समयानुकूल बनाया जाए.
- व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए पूरे देश में समान पाठ्यक्रम और एक ही प्रवेश नीति आयोजित की जाए. इससे विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करने में छात्रों के समय और धन की बर्बादी नहीं होगी और वे एक ही लक्ष्य पर पूरी तरह फोकस कर पाएंगे.
- उच्च शिक्षा संस्थाओं में छात्रों की ट्रेनिंग के पाठ्यक्रम में उनके नंबर 75 फीसदी से अधिक होने चाहिए और  उनसे उच्च गुणवत्ता का कार्य करवाया जाए.
- कोई भी नई तकनीक यदि बाजार में आती है तो उसको उच्च शिक्षा के केंद्रों में लाना चाहिए, जिससे छात्रों में अच्छी समझ क्षमता विकसित हो.
- शिक्षकों को समय-समय पर दो से तीन महीने की ट्रेनिंग पर भेजा जाना चाहिए, जिससे वे अपने छात्रों को नई तकनीक समझा सकें.
- छात्रों को देश भर में कुछ समय के लिए दूसरे राज्यों की उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढऩे के लिए भेजा जाना चाहिए.
यदि हमारी सरकार समय रहते नहीं जागी तो आने वाले समय में शिक्षण संस्थाएं ज्ञान का केंद्र और नौकरी का जरिया न रहकर बेरोजगारी पैदा करने वाले केंद्र बन जाएंगी. आज हमारे पास समय है कि हम इसे स्किल इंडिया से जोड़ें और उच्च स्किल या कौशल विकसित करने के केंद्र खोले जाएं. किताबी ज्ञान को खत्म किया जाए.

(लेखक एपेक्स ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस (जयपुर-कोटा) के सीईओ हैं)

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