"नया बिहार बनाने के लिए नई सरकार बनाएंगे"
27 अक्तूबर को चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद तेजस्वी यादव ने इंडिया टुडे टीवी की मारिया शकील से NDA के प्रचार की काट, अपने चुनावी वादों और उन्हें पूरा करने की योजना पर बात की

● एनडीए के प्रचार पर
देखिए, प्रधानमंत्री मोदी आए, अमित शाह आए, केंद्र के मंत्री आ रहे हैं, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि वे बिहार को गरीबी, बेरोजगारी और पलायन से कैसे छुटकारा दिलाएंगे. बिहार की प्रति व्यक्ति आय कैसे बढ़ाएंगे, या बिहार को टॉप राज्यों में कैसे लाएंगे. वे अब भी मैदान में प्रचार कर रहे हैं, लेकिन बिहार के विकास पर एक शब्द नहीं बोल रहे.
उल्टा अमित शाह कह रहे हैं कि यहां जमीन की कमी है, इसलिए फैक्ट्री या इंडस्ट्री नहीं लग सकती. उन्होंने खुद साफ कहा कि बिहार में उद्योग नहीं लग सकते. याद कीजिए 2015 का चुनाव, तब प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार को आइटी हब बनाने का वादा किया था. दस साल हो गए, हब कहां है. अब शाह एआइ हब बनाएंगे. इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता, एनडीए जुमलेबाजी में माहिर है.
● हर परिवार को सरकारी नौकरी के बड़े वादे पर
कई एक्सपर्ट कहते हैं कि हर परिवार को सरकारी नौकरी दी गई तो बिहार का सैलरी बिल छह लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा (बिहार में करीब ढाई करोड़ परिवार हैं). लेकिन पिछली बार भी (जब 2023 में उप-मुख्यमंत्री था) उन लोगों ने यही कहा था, जब हमने दस लाख नौकरियां देने की बात की थी. तब नीतीश कुमार ने भी पूछा था कि इतनी नौकरियां कहां से लाएंगे. आज वही लोग एक करोड़ नौकरियों और महिलाओं को दस हजार रुपए देने की बात कर रहे हैं. हमने रोजगार के मुद्दे पर एक्सपर्ट्स के साथ काम किया है और जल्द ही ब्लूप्रिंट रखेंगे, जिसमें यह भी बताया जाएगा कि हम राजस्व कैसे बढ़ाएंगे.
● दस सीटों पर दोस्ताना मुकाबले पर
यह हमारे लिए रणनीतिक फैसला है. देखिए, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी हमारे ऐसे दोस्ताना मुकाबले हुए थे. यह मोटे तौर पर महागठबंधन की अंदरूनी और चुनावी रणनीति का हिस्सा है.
● नीतीश की 2020 की जीत में अहम रहे महिला वोटों को खींचने पर
पिछली बार दोनों पक्षों के बीच वोट प्रतिशत का फर्क एक फीसद से भी कम था. इस बार हमने महिलाओं से काफी बातचीत की है, वह भी जमीनी स्तर पर. हमारी हर मीटिंग में यह साफ दिखा कि महिलाएं सरकार से नाराज हैं, चाहे वे व्यक्तिगत रूप से हों या समूहों में, जैसे जीविका, आंगनवाड़ी वर्कर या सीएम दीदी. बातचीत के बाद हमने ब्याज माफी राहतें जैसी अपनी योजनाएं बनाई हैं.
● 'जंगलराज’ के डर पर
आज की हालत देखिए. ऐसा एक भी दिन नहीं जाता जब बिहार में रेप का केस न आए. एनसीआरबी के आंकड़े देखें तो अपराध के मामले में यूपी और बिहार दोनों सबसे ऊपर हैं. सच तो यह है कि 2005 के बाद से अपराध लगातार बढ़े हैं. अगर हमें बिहार में इंडस्ट्री लानी है, तो कानून-व्यवस्था और बिजली को दुरुस्त करना होगा. मुझे मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया गया है, तो मैं जनता से कहना चाहता हूं कि अगर तेजस्वी की परछाई भी कोई गलत काम करे, तो कार्रवाई होगी. लोग मुझे जानते हैं, मेरा स्वभाव जानते हैं. तेजस्वी कभी भी इस मामले में समझौता नहीं करेगा.
● बेरोजगारी, पलायन और बेरोजगारों को भत्ता देने पर
नौकरी देने की प्रक्रिया को साफ समझना जरूरी है. हमने उस 17 महीने की सरकार में (अगस्त 2022 से जनवरी 2024 तक) इस पर काम शुरू किया था. उससे पहले तो खाली पदों पर भी भर्ती नहीं हो रही थी. हमने कई पद बनाए और कुछ खत्म भी किए, शिक्षकों की भर्ती बिहार लोक सेवा आयोग के जरिए की. लेकिन उसके बाद से कुछ नहीं हुआ है.
● मुकेश सहनी को उप-मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने और मुस्लिम मुद्दे पर
देखिए, सहनी अकेले उप-मुख्यमंत्री नहीं होंगे. आगे चलकर दूसरी जातियों और समुदायों के लोगों को भी यह जिम्मेदारी दी जाएगी. कई राज्यों में तो पांच-पांच उप-मुख्यमंत्री होते हैं. यूपी में भाजपा के दो उप-मुख्यमंत्री हैं और दोनों उसी पार्टी के हैं. हम गठबंधन में हैं, तो हमें सभी दलों की राय का ध्यान रखना होता है. भाजपा के लोग कुछ दिन पहले हमें ट्रोल कर रहे थे कि 18 फीसद (मुस्लिम) आबादी वाले समुदाय को उप-मुख्यमंत्री क्यों नहीं मिला. अब जब हमने एक ईबीसी को उप-मुख्यमंत्री बनाया, तो उन्हें दिक्कत होने लगी. पहले यही लोग मुसलमानों से कहते थे पाकिस्तान जाओ, उन्हें घुसपैठिया बुलाते थे. आज वही उनके बारे में बात कर रहे हैं.
● ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) वोट और प्रधानमंत्री मोदी के कर्पूरी ठाकुर के गांव से प्रचार शुरू करने पर
भाजपा आरक्षण विरोधी है. यही लोग कर्पूरी जी का मजाक उड़ाते थे जब उन्होंने 1978 में आरक्षण लागू किया था, और उसी मुद्दे पर उनकी सरकार गिरा दी थी. आज उन्हें बहुजन समाज की ताकत और संख्या के आगे झुकना पड़ रहा है. 2023 की जाति गणना के बाद हमने ईबीसी का कोटा बढ़ाकर 27 फीसद कर दिया. अब कुल एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी का आरक्षण मिलाकर 65 फीसद है, और अगर ईडब्ल्यूएस को जोड़ लें तो कुल आरक्षण 75 फीसद हो गया है.
● नीतीश के 'सुशासन बाबू’ की छवि पर
एनडीए बीस साल से सत्ता में है, फिर भी बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है. हमारी प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, बेरोजगारी सबसे ज्यादा है. अगर उन्होंने सच में इतना काम किया होता, तो हालात ऐसे क्यों हैं?
● बिहार अधिकार, वोट अधिकार यात्रा पर
हमारे सवाल चुनाव आयोग से थे, जो ऐसे दस्तावेज मांग रहा था जो लोगों के पास हैं ही नहीं. हमने टाइमिंग पर भी सवाल उठाए, क्योंकि इससे बाहर रह रहे बिहारियों को वोटर बनना मुश्किल हो रहा था. कई जगह जिंदा लोगों को वोटर लिस्ट में मरा हुआ दिखा दिया गया. हम ये मामले सुप्रीम कोर्ट तक ले गए. हमारी लड़ाई का नतीजा सामने आया: अब बारहवां दस्तावेज आधार कार्ड है.
● 14 नवंबर (नतीजों के दिन) के बाद क्या
14 तारीख के बाद बेरोजगारी खत्म करने का काम शुरू होगा. जनता खुद नई सरकार बनाएगी, क्योंकि हम सब एक नया बिहार देखना चाहते हैं.
‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में बिहार में एक आइटी हब बनाने का वादा किया था. दस साल बीत गए. आइटी हब कहां है? अब शाह कह रहे हैं कि एआइ हब बनाएंगे. ऐसे लोगों पर आप कैसे भरोसा कर सकते हैं.’’