"नई शब्दावली में जादू और रोमांस का अभाव है"

लेखिका शोभा डे ने अपनी नई किताब 'द सेंसुअल सेल्फ' में प्रेम, इच्छाओं और अंतरंगता को पूरी ईमानदारी के साथ गहराई से उकेरा है

Q+A.
शोभा डे

अपनी नई किताब में आप कहती हैं कि महिलाओं को नियमित 'दाल-चावल’ टाइप सेक्स से संतुष्ट नहीं होना चाहिए और पुरुषों को 'और अधिक प्रयास’ करने की जरूरत है. तमाम लोग, खासकर महिलाओं को इच्छाएं व्यक्त करने में इतनी हिचकिचाहट क्यों होती है?

अगर एक महिला अपनी यौन इच्छाओं को जाहिर करती है, या बिस्तर में निराशा जताती है, तो उसके अपने साथी को खो देने का खतरा होता है. निश्चित तौर पर पुरुषों को जगना होगा और हकीकत से रू ब रू होना होगा.

भारत में सेक्स पर चर्चा को लेकर ज्यादा खुलापन आया है या हम अभी तक दकियानूसी सोच और दोहरे मानदंडों में उलझे हैं?

एक बड़ा बदलाव यह आया है कि सेक्स को अब एक गंदे शब्द की तरह नहीं देखा जाता. इसके इर्द-गिर्द केंद्रित बातचीत कहीं ज्यादा स्पष्ट हो चुकी है. लेकिन दोहरे मानदंड और पुरानी सोच अभी खत्म नहीं हुई है. 'लड़के’ कहीं भी, किसी के साथ सेक्स का आनंद ले सकते हैं. कोई सवाल न उठेगा. युवतियों के साथ ऐसा नहीं. वे भी वैसी ही आजादी चाहती हैं.

आज का प्रेम 'परिस्थितियों’ पर निर्भर होता है जो वचनबद्धता की पारंपरिक धारणाएं धुंधली कर देता है. आप खासकर महिलाओं को अंतरंगता की नई शब्दावली के साथ किस तरह से ढलते देखती हैं?

महिलाओं को कामुकता के बारे में कुछ बातें अपनी नानी और दादी से सीखने की जरूरत है. नई शब्दावली थोड़ी ज्यादा व्यावसायिक है, जिसमें जादू, अनिश्चितता और रोमांस का अभाव है. आजकल अंतरंग रिश्तों के बजाए पैसों को अहमियत देना नया मूड-बोर्ड बन गया है.

आपने हमेशा उन विषयों पर काफी खुलकर लिखा है जिनके बारे में बहुत कम लोग सोचते हैं. क्या द सेंसुअल सेल्फ आपकी अपनी विषयासक्ति को सामने लाती है?

यह मेरी लिखी सबसे कठिन किताबों में से एक है. निजी दृष्टिकोण जरूरी था क्योंकि यह सार्वभौमिक सचाई के बारे में बात करती थी. लेकिन एक असल, महसूस की गई भावनाओं के साथ. मैं चाहती थी कि पाठक इसमें वर्णित कामुक अनुभवों से खुद को जोड़ सकें.

—अमित दीक्षित

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