"पैसा नहीं, पैशन है थिएटर"
अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने घूम-घूमकर नाटक करने के अनुभव, भाषा की चुनौती, पान खाने के शौक और पसंदीदा किताबों के बारे में इंडिया टुडे हिंदी से बातचीत में क्या बताया

● एक ओर सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा बनना और दूसरी ओर छोटे शहरों में भी जाकर 100-200 दर्शकों के सामने नाटक करना. क्या चीज है जो आपको खींचकर लाती है?
पहले लोग पूछते थे कि थिएटर तो ठीक है लेकिन आप करती क्या हैं? दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, हम आपके हैं कौन जैसी फिल्मों और हमराही जैसे सीरियल्स के जरिए परदे पर आने के बाद किसी को बताने की जरूरत नहीं रही. नाटक में दर्शक भले 100-200 हों पर तुरंत रेस्पॉन्स मिलता है. किसी भी कलाकार को यह बहुत सुकून देता है. पैसा तो सिनेमा का 1/10 भी नहीं मिलता पर सुकून 90 फीसद की भरपाई कर देता है.
● हाल में आपने अभिनेता राजेंद्र गुप्ता के साथ अलवर में जीना इसी का नाम है नाटक किया. वहां का अनुभव कैसा रहा?
अच्छा था. हाउसफुल. अकेला बंदा वहां 100 दिन का फेस्टिवल कर रहा है. दो दिन आने-जाने में लगे. पर वही है, अभिनय की जो रेंज सिनेमा में दिखाने का मौका नहीं मिलता, वह भड़ास मंच पर निकालती हूं.
● आप, मीता बसिष्ट और सीमा बिस्वास जैसी चर्चित अभिनेत्रियों की हिंदी थिएटर में सक्रियता प्रतिभावान युवतियों को रंगमंच अपनाने के लिए प्रेरित करती है. क्या कहेंगी आप?
पहले मेरे बारे में लोग मजाक करते थे कि उत्तराखंड से एक बछेंद्री पाल निकलीं या तो ये हिमानी. उस वक्त थिएटर को प्रोफेशन बनाने के बारे में सोचना गुनाह-सा था. अब लड़कियों को थिएटर अपनाते देखकर अच्छा लगता है.
● हिंदी क्षेत्र की अभिनेत्रियों को क्या सिनेमा में भाषा/जबान के लिहाज से कम चुनौती होती है?
यह निर्भर करता है. मैं गढ़वाली थी पर पंजाबी लहजे के साथ मराठी रोल और साउथ की भी फिल्में कीं. सीमा को हिंदी नहीं आती थी लेकिन देखिए, मेहनत करके उसने हिंदी में महारत हासिल कर ली. भाषा आपके रास्ते में रोड़ा नहीं बनती. पर हां, हिंदी प्रदेश के कलाकारों की भाषा थोड़ी साफ और बेहतर होती ही है.
● पान खाने का शौक कब लगा?
हमराही सीरियल में देवकी भौजाई के किरदार के लिए खाना पड़ता था. अब तो बस जब बनारस गए तो पान तो खाएंगे ही, या कलकत्ता जाने पर. पर मैं पानदान लेकर नहीं चलती.
● आपकी पसंदीदा किताबें कौन-सी हैं?
मार्खेज की हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड, जिसमें हमारे पुराणों, पंचतंत्र और महाभारत की तरह एक से दूसरी कहानी निकलती जाती है; पाउलो कोएलो की अलकेमिस्ट और इधर के लेखकों में अमीश त्रिपाठी, जिनकी नागा ट्रिलोजी अद्भुत थी.