"सबसे अहम है शांति"

देवदत्त पटनायक अपनी नई किताब 'अहिंसा: 100 रिफ्लेक्शंस ऑन द हड़प्पन सिविलाइजेशन' में हड़प्पा सभ्यता का वैकल्पिक नजरिया पेश कर रहे हैं. इस मामले पर उन्होंने इंडिया टुडे हिंदी से खास बातचीत की. पेश है संपादित अंश

अहिंसा : 100 रिफ्लेक्शंस ऑन द हड़प्पन किताब के लेखक देवदत्त पटनायक
अहिंसा : 100 रिफ्लेक्शंस ऑन द हड़प्पन किताब के लेखक देवदत्त पटनायक

आपको माइथोलॉजिस्ट माना जाता है. अहिंसा से आपने इतिहास में भी कदम रख दिया?

माइथोलॉजी इतिहास में मौजूद है. मेरा फोकस हड़प्पा के लोगों की मान्यताओं, उनके व्यक्तिपरक सत्य और इस तरह से मिथ के दायरे में है.

हड़प्पा के कौन-से सबक आज भी प्रासंगिक हैं?

व्यापार करना छापा मारने से बेहतर है. न्यायसंगत व्यापार के लिए संतुष्टि जरूरी है. इसका ताल्लुक कानूनों और नीतियों से नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक विकास से है.

यह किताब कितनी 'ज्ञात तथ्य' है और कितनी 'बाखबर कयासबाजी'?

वस्तुएं, कलाकृतियां, भौतिक संस्कृति की जानकारी, सामान की आवाजाही, समकालीन इतिहास, सब ज्ञात तथ्य हैं. जानकारियों के इस जाल की व्याख्या कयासबाजी है.

क्या आपकी थीसिस—कि हड़प्पा अहिंसक सभ्यता थी—अपारंपरिक थीसिस है?

कई अध्येताओं ने लिखा है कि अपनी समकालीन सभ्यताओं मेसोपोटेमिया और मिस्र की तुलना में हड़प्पा में हिंसा के बहुत कम संकेत हैं. मैं इसे व्यापारिक-मठवासी संस्कृति से जोड़ता हूं. यह व्याख्या अपारंपरिक है.

● फिलहाल आप और किन रचनात्मक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं?

अभी मैं यह देखकर रोमांचित हूं कि भारत की भौतिक संस्कृतियों (वस्तु और वास्तु) में पाठ्य संस्कृति से एकदम अलहदा मिथक उजागर होता है. और प्राकृत की कहानियां संस्कृत से किस कदर अलग हैं.

—अमित दीक्षित.

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किताब - अहिंसा : 100 रिफ्लेक्शंस ऑन द हड़प्पन सिविलाइजेशन

लेखक  - देवदत्त पटनायक

प्रकाशक -  हार्परकॉलिंस

मूल्य  -  ₹499.

पेज - 272

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