"जो भी दिल से गाया जाता है वो दिल तक पहुंचता है"

गायिका शिल्पा राव ने लोकगीत का रीमिक्स गाने, हरिहरन से सीखने और ए.आर. रहमान की संगत जैसे मुद्दों पर इंडिया टुडे हिंदी और लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी से लंबी बातचीत की. संपादित अंश

 शिल्पा राव, गायिका
शिल्पा राव, गायिका

फिल्म दो पत्ती के लिए आपका गाया रीमिक्स अंखियां दे कोल चर्चा में है. किसी लोकगीत के रीमिक्स पर आपका क्या सोचना है?

अमूमन मैं ओरिजिनल गाना ही पसंद करती हूं. इससे पहले मैंने कभी कोई रीमिक्स गाया नहीं. मेरे लिए ये पहला मौका है. अंखियां दे कोल  के रीमिक्स की भी अपनी एक वजह है, और वो है रेशमा जी (पाकिस्तान की मशहूर लोकगायिका) के लिए मेरे दिल में अलग जगह होना.

मैं उनकी बहुत बड़ी फैन हूं. इस रीमिक्स को मैंने इसी मुरव्वत में गाया है. बाकी मैं रीमिक्स और ओरिजिनल को लेकर यही मानती हूं कि जो भी दिल से गाया जाता है वो दिल तक पहुंचता है.

● संगीत का शुरुआती रुझान और फिर इसे बतौर करियर अपनाने का सफर कहां से शुरू होता है?

हमारे परिवार में किसी ने भी संगीत में कुछ नहीं किया. लेकिन पापा संगीत को जीते हैं. उनका कहना था कि मैं रिपोर्ट कार्ड बिना देखे साइन कर दूंगा. बस रियाज करना पड़ेगा. शुरू में पापा घर पर सिखाते थे.

फिर पापा के गुरु रहे चंद्रकांत आप्टे जी से सीखा. आगे हम हरिहरन जी से मिले. उन्होंने गुलाम खां साहब के पास भेजा. उन्होंने हमें शागिर्द बनाया. खुशनसीब हूं कि ऐसे उस्ताद मिले.

● हरिहरन से आपकी पहली मुलाकात का तजुर्बा कैसा रहा? मशहूर होने से गायक के संगीत और जीवन में अंतर आता है?

आता होगा. पर मुझे हरिहरन जी की गायिकी और जीवन में आज तक कोई फर्क नहीं दिखा. मेरे जन्मदिन पर मेरी मां ने हरिहरन जी को पहली बार फोन किया था. फोन उनकी मां ने उठाया. फिर हरिहरन जी से बात हुई. उन्होंने कहा ठीक है हम अगले पांच मिनट में मिलते हैं. उनसे मिलने का ये सिलसिला आज भी जारी है.

● एआर रहमान के साथ काम करने का तजुर्बा कैसा रहा?

रहमान सर ने मुझे 2011 में जब तक है जान के लिए बुलाया था. वहां उनके साथ गुलजार साहब, यश चोपड़ा को देखा. दिग्गजों के बीच पहुंचकर जरूरी हो जाता है कि आप चुपचाप बैठिए और उनके काम को गौर से देखिए.

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