"हर कलाकार का अपना अंदाज होता है. कला को अच्छे-बुरे की तराजू पर तौलना ठीक नहीं"
गायक-अभिनेता-गीतकार गुरदास मान ने दूरदर्शन के साथ शुरुआत से लेकर अपने नए एल्बम साउंड ऑफ सॉएल, वीर ज़ारा के किस्से और नई पीढ़ी के कलाकारों पर इंडिया टुडे हिंदी और लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी से लंबी बातचीत की. संपादित अंश

● आपका नया एल्बम साउंड ऑफ सॉएल किस बारे में बात करता है?
यह पंजाब और उसकी मिट्टी के बहाने सारी इंसानियत के बारे में है. नौ गानों का नवरत्न है इसमें और हमेशा की तरह कोशिश है कि ये गाने सबसे जुड़ सकें. इसमें एक गीत उस दौर का है जब अस्सी के दशक में मैंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से जूडो किया था. उस वक्त मैंने एक कव्वाली सुनी थी जिसके बोल इसमें रखे हैं.
● किसी गीत के अपने श्रोताओं से जुड़ने की सबसे जरूरी शर्त क्या मानते हैं?
आम इंसान की जिंदगी से जुड़ा गीत हमेशा अपनी जगह बना लेता है. मैंने शुरू से अपने गाने खुद लिखे. मेरे गीतों में रोज की हमारी जिंदगी की बातें दिखती हैं. एक गीत है साइकिल पर लिखा हुआ, कार पर भी लिख सकता था पर गाड़ी सबके पास तो नहीं होती न!
● दशकों पहले गाए आपके गीत दिल दा मामला है से आपकी शोहरत की शुरुआत हुई थी. इसकी क्या कहानी है?
मैंने एक नाटक लिखा था सस्सीये बेखबरे. उसके एक सीन में मैं स्टेज पर दिल दा मामला गाता था. यूथ फेस्टिवल कवर करने आई दूरदर्शन की टीम ने गीत भी रिकॉर्ड किया. अगले दिन यह टेलीकास्ट हुआ फिर पूछना ही क्या. सड़क चलते बच्चे कह रहे थे, ये देखो 'दिल वाले अंकल' जा रहे हैं. जूडो कोच की नौकरी करने जा रहा था पर फिर अलग ही सफर शुरू हो गया.
● वीर ज़ारा में शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन के साथ कैमियो का किस्सा?
जिस समय वीर ज़ारा बन रही थी उस समय हमारी भी फिल्म देस होया परदेस की शूटिंग चल रही थी. तब यश चोपड़ा ने मुझसे कहा कि वीर ज़ारा के एक सीन में वे मेरी आवाज चाहते हैं. बंबई में इसी गाने के दौरान तय हुआ कि एक पूरा सीन होगा जिसमें मैं और शाहरुख खान एक साथ होंगे. वो शूट हुआ, उसके बाद यश जी ने कहा कि अमिताभ बच्चन लोहड़ी के लिए मेरी आवाज चाहते हैं. तो ऐसे होता गया सब. लेकिन इससे पंजाब के लोगों को बड़ा गर्व महसूस हुआ.
● नई पीढ़ी के कलाकारों को सुनते हैं? जैसे हनी सिंह और बादशाह?
बिल्कुल सुनता हूं. देखिए, हर कलाकार का अपना अंदाज होता है. हनी का अपना अंदाज है और बादशाह का अपना. कला को अच्छे-बुरे की तराजू पर तौलना ठीक नहीं. हनी और बादशाह का अपना नाम और काम रहा है, नहीं तो आज के सुनने वालों को क्या पता था कि रैप गाना भी कोई चीज होती है. गायकी में हर तरह के रंग हों तो सुनने वालों का ही भला होता है. जिसे जो सुनना है उसके सामने है, आगे उसकी मर्जी है. किसी को कुछ अच्छा लगता है और किसी को कुछ.
● अपने ही गीत की बंणु दुनिया दा को दिलजीत दोसांझ के साथ कुछ साल पहले संगत में गाने का विचार कैसे आया?
कोक स्टूडियो में गाने की मेरी ख्वाहिश तो थी लेकिन न मैं उनके पास जा पाया और न वहां से कोई आया. फिर कुछ साल पहले दिलजीत के साथ गाने का प्रस्ताव आया तो मना करने का सवाल ही नहीं था. आज के दौर का सितारा है दिलजीत और इसलिए है क्योंकि उसने अपने काम और जवानी को बहुत संजीदगी से संभाला है. तो बड़ा मजा आया दिलजीत के साथ गाकर. प्रेम, सत्कार और बड़ों का आदर करना कोई दिलजीत से सीखे.