''पुलिस विभाग की कारगुजारियों पर हम मूकदर्शक नहीं''

हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस के कुछ जवानों के अवैध वसूली की खबरें आई थीं, जिन पर यूपी पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) प्रशांत कुमार ने सख्त कार्रवाई की. डीजीपी कुमार ने इंडिया टुडे के एसोसिएट एडिटर आशीष मिश्र से बातचीत की. पेश है उसका प्रमुख अंश

उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार
उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार

आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहने से पुलिस की नकारात्मक छवि बन रही है.

सरकार का अपराध और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस है. चाहे कोई पुलिस विभाग बाहर का हो या भीतर का, कोई भी 'आउट आफ राडार' नहीं है. पुलिस विभाग के लोगों को भी बार-बार उनकी गतिविधियों के बारे में आगाह किया गया है. विभाग गलत कार्य करने वालों के प्रति मूकदर्शक तो बनकर नहीं रह सकता. कार्रवाई हो रही है. जितनी कार्रवाई पुलिस विभाग के भीतर होती है उतना अपेक्षाकृत किसी अन्य विभाग में नहीं होती. दो-दो आईपीएस अफसर नौकरी से बर्खास्त किए गए हैं. एक 'सर्विंग' अफसर पर विभागीय कार्रवाई करके बर्खास्त किया गया.

कई विवादों में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हुए हैं.

कई बार लोग ऐसे मामलों में भी पुलिस को खींच लेते हैं जिनसे उसका कोई सीधा मतलब नहीं होता. दीवानी प्रकरणों को भी लोग दबाव देकर पुलिस की मदद से हल करवाना चाहते हैं. पुलिस विभाग को समय-समय पर सर्कुलर जारी कर सिविल मामलों में अकारण दखल देने से बचने का निर्देश दिया गया है. नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई की जा रही है.

अचानक पुलिस पर जनता की सुनवाई न करने का आरोप क्यों लगने लगा है?

मेरी ओर से और शासन की तरफ से भी इस बारे में पुलिस विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि वह जनता के साथ मित्रवत व्यवहार करे. जनता को किसी भी प्रकार की असुविधा न होने दें. पुलिस जनता की समस्याओं का किस तरह निस्तारण कर रही है, इसकी कई स्तर पर मॉनिटरिंग भी हो रही है. 

पुलिस एफआईआर दर्ज करने से बच रही है.

हमने ई-एफआईआर की सुविधा दी है. हालांकि नए कानून के मुताबिक ई-एफआईआर को लिखित रूप में एक निश्चित अवधि के भीतर संबंधित थाने को भी देना है लेकिन लोग इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं. बावजूद इसके एफआईआर न लिखने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई भी की जा रही है.

व्यापारी वर्ग, वकीलों के साथ पुलिस के दुर्व्यहार की कई घटनाएं सामने आई हैं?

मैंने यह निर्देश दिए हैं कि ऐसी संस्थाएं जो प्रदेश की जीडीपी में योगदान दे रही हैं उन पर सामान्य प्रक्रिया में एफआइआर नहीं दर्ज की जाए. हर जिले में एक एडिशनल एसपी और पुलिस कमिशनरेट वाले जिलों में डीसीपी को व्यापारियों की समस्याओं को देखने के लिए नोडल अफसर बनाया गया है.

क्या पुलिस विभाग में अधिकारियों, सिपाहियों पर काम का दबाव है?

अब तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. हां, इतना जरूर है कि हर साल 7 से 10 हजार लोग रिटायर हो रहे हैं. यही पद जुड़ कर काफी हो गए हैं.

बड़ी संख्या में पुलिस आवास, चौकियां जर्जर हैं, इससे भी समस्याएं हैं?

वर्तमान सरकार में पुलिस के अवस्थापना बजट में तिगुने की वृद्धि हुई है. इससे चीजें सुधरी भी हैं. हमारे कांस्टेबल अब लिफ्ट वाली बहुमंजिला इमारत में रहेंगे.

पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवालों से निबटने की क्या योजना है?

बीते कुछ वर्षों से पुलिस विभाग में आए सकारात्मक बदलाव के लोग अभ्यस्त हो गए हैं. यहां से हमें अपनी कार्यसंस्कृति में जरा भी बदलाव के लिए बहुत प्रयास की जरूरत है जो हम कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि पुलिस विभाग में जो खराब लोग हैं उन पर कार्रवाई करें और अच्छे लोगों को पुरस्कृत करें.

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