स्वानंद किरकिरे : "दर्शकों के लिए तो कोई फिल्म या तो अच्छी होगी या बुरी"
गीतकार-लेखक-अभिनेता स्वानंद किरकिरे फिल्म थ्री ऑफ अस, अपनी शख्सियत के पहलुओं, डायरेक्टरशिप और हिंदी अकादमी के कार्यकाल में अपनी उपलब्धियों पर

● फिल्म थ्री ऑफ अस का किरदार दीपांकर आखिर आप तक कैसे पहुंचा?
इस फिल्म के डायरेक्टर अविनाश अरुण के साथ मैंने पहले भी बतौर गीतकार काम किया है. उन्होंने कहा कि आपको ऐक्टिंग करनी है. दो चीजें मैंने एक साथ सोचीं, एक कि कितना खूबसूरत किरदार है, दूसरा कि, जयदीप और शेफाली जैसे दिग्गज ऐक्टर्स के साथ कैसे करूंगा. पर एनएसडी से पढ़ा हूं, अभिनय से भय नहीं लगता. तो कोशिश की और हो गया.
● थ्री ऑफ अस जैसी फिल्में कामयाबी की परिभाषा बदलती हैं? बॉक्स ऑफिस जैसे बाजार के जुमलों से आजाद कहानियों के सामने चुनौतियां क्या हैं?
पैमाने तो इंडस्ट्री तय करती है. दर्शकों के लिए तो कोई भी फिल्म अच्छी होगी या बुरी. कारोबारी अगर सौ करोड़, हजार करोड़ की बात करे तो समझ आता है. अब हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब आम दर्शक फिल्म के कारोबार का जश्न मना रहा है. बतौर दर्शक आपको इसकी बात करने की क्या जरूरत है? दर्शक को कहानी छू गई, बात खत्म.
● गीतकार और लेखक होना आपके भीतर के अदाकार की मदद करता है?
मेरे भीतर का लेखक मेरे ऐक्टर को पूरी आजादी देता है सोचने, खोजने और रमने की. थ्री ऑफ अस की स्क्रिप्ट जब मुझ तक पहुंची थी तो वह इतनी पूर्ण थी कि उसका एक अक्षर इधर से उधर करने की जरूरत नहीं थी. वरुण ग्रोवर और शोएब के संवाद अपने आप में पूरे थे, अविनाश और इन लोगों की लिखाई में कहीं कोई गुंजाइश थी ही नहीं. हां, एक लेखक होना इस तरह मददगार होता है कि मुझे लिखे हुए की गहराई समझ आ जाती है.
● अब दर्शक आपको पर्दे के इस तरफ भी अक्सर देख पाएंगे? 'डायरेक्टर्स कैप' पहनकर कप्तानी भी संभालेंगे?
अब अभिनय के लिए लोग संपर्क कर रहे हैं. एक वेब शो चार-पांच महीनों में दर्शकों के बीच आएगा. इसे मैंने लिखा भी है और इसमें ऐक्टिंग भी की है. जहां तक बात है डायरेक्ट करने की, तो मुझे लगता है एक यही विधा बची है जिसे साधना है. कोशिश जारी है, नतीजा भी सामने आ ही जाएगा.
● दिल्ली हिंदी अकादमी के हाल तक आप उपाध्यक्ष रहे. कैसा रहा वहां काम करने का अनुभव?
भाषा की बेहतरी के लिए बहुत सारा अच्छा काम करने की कोशिश की. कुछ काम हुए और कुछ सुझाव मौजूदा सदस्यों के सामने हैं. सरकारी तंत्र है जिसकी अपनी प्रोसेस है और अपनी गति है. हमारे हिस्से जो जिम्मेदारियां और मौके आए, हमने पूरी ईमानदारी से उन्हें निभाने की कोशिश.