आशुतोष राणा: "सड़क पर अच्छा काम किया, संसद में भी अच्छा काम करेंगे"
जीवन के प्रति नजरिए, प्रतिभा और कामयाबी के दर्शन, सफर के अहम पड़ाव और राजनीति में आने की योजना पर अभिनेता आशुतोष राणा.

कुछ लोग कहते हैं कि आप जितने मजबूत ऐक्टर हैं, उससे कहीं गहरे दार्शनिक हैं?
सही कहते हैं. निराकार को साकार, अमूर्त को मूर्त में बदलने वाला ही कलाकार होता है. फिलॉसफी का मतलब यही तो है कि जो आभासी है उसे महसूस करवा दिया. जो आपको आपके भीतर की ही यात्रा करा दे, वही दार्शनिक है. अभिनेता दर्शक को दर्शक के भीतर की यात्रा ही करवाता है. ऐसा ही सिनेमा, ऐसे नाटक या ऐसी किताबें सार्थक होती हैं.
जीवन का सबसे बड़ा बदलाव कैसे और कब आया?
जब हमारा पहला ही सेमेस्टर खत्म हुआ था नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में, तब सबसे कम नंबर मुझे मिले. कमेटी बैठी कि एनएसडी में रह भी पाऊंगा या नहीं. मैंने एक सेमेस्टर का मौका मांगा, मिल गया. हमारा बैच मैसूर पहुंचा और बी.वी. कारंत के निर्देशन में नाटक चंद्रहास हुआ.
पहली बार स्टेज पर इतना समय मिल रहा था. कारंत जी ने मुझमें कुछ देखकर भरोसा किया था. यक्षगान की शैली का नाटक था. पहली बार बतौर अभिनेता खुद को साबित किया. उसके बाद पलटकर नहीं देखा.
अवसर, कला, प्रतिभा और कामयाबी को लेकर आपका क्या नजरिया है?
मेरा मानना है कि दुनिया में हर कोई प्रतिभाशाली होता है. इनमें से कुछ को मौके मिल जाते हैं, बाकी जीवन भर मौके तलाश करते रह जाते हैं. जिन्हें अवसर मिला उनकी प्रतिभा कुशलता में बदल गई. मेरे साथ के बहुत-से लोग हैं जिन्हें नहीं मिले मौके. बल्कि यह भी कहूंगा कि मुझे भी मेरी प्रतिभा के हिसाब से पूरे मौके अभी मिले नहीं.
कयास लगाए जा रहे हैं कि आप चुनाव भी लड़ेंगे, कितनी सच है यह बात?
पहली बात जो मैं हमेशा कहता आया हूं, और मेरा मानना है कि 'लड़ना' जब हम कहते हैं तो गलती करते हैं. चुनाव होता है जुड़ने के लिए, न कि लड़ने के लिए. दूसरी बात, जब जुड़ने की स्थिति में होंगे तो खड़े होंगे चुनाव में. योजना बनाना हमारा काम नहीं. योजना प्रकृति अगर बनाती है सड़क से संसद की तो कोशिश रहेगी पूरी. सड़क पर अच्छा काम किया, संसद में भी अच्छा काम करेंगे.