हुमा कुरैशी : "गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज और उनके जादुई यथार्थवाद ने मुझ पर खासा असर डाला"

फंतासी फिक्शन वाली अपनी पहली किताब 'जेबा: ऐन ऐक्सिडेंटल सुपरहीरो' के जरिए अभिनेत्री हुमा एस. कुरैशी अब लेखिका की भूमिका में उतरीं हैं.

हुमा एस. कुरैशी
हुमा एस. कुरैशी

 कितने दिनों से पक रही थी ये किताब?
फंतासी फिक्शन और किस्सागोई का सुपरहीरो वाला अंदाज मुझे हमेशा से रोमांचित करता रहा है. जेबा को शुरू में मैंने एक सीरीज के स्क्रीनप्ले के रूप में लिखा था. फिर मुझे लगा कि फंतासी की पृष्ठभूमि में सुपरहीरो वाली फिल्म बनाने के लिए बड़ा बजट लगेगा. कोविड के दौरान इसे फिर से देखा-पलटा और किताब की शक्ल दे दी.

 कहानी क्या है इसकी?
जेबा: ऐन ऐक्सिडेंटल सुपरहीरो की कहानी दरअसल जादू, चमत्कार और जज्बे से मिलकर बनी है. यह मुश्किल हालात में नायकत्व और जबरदस्त इंसानी जज्बा दिखाने की कथा है. नायिका हमारे-आपके जैसी फिर भी अनोखी और जुझारूपन की प्रतीक है. सब कुछ प्रतिकूल होने के बावजूद आखिरकार वह संसार में जीने की राह बना लेती है.

 किस्सागोई के लिए आखिर आपने फंतासी की विधा क्यों चुनी?
फंतासी की विधा मुझे हमेशा से बेहद आकर्षित करती रही है. डेडपूल सुपरहीरो वाली मेरी पसंदीदा फिल्म है. मरजान सात्रापी के ग्राफिक संस्मरण परसीपोलिस ने भी मेरी कल्पनाशीलता को खुराक दी. युवावस्था में गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज और उनके जादुई यथार्थवाद ने मुझ पर खासा असर डाला. मेरा ख्याल है इन्हीं सबसे जेबा निकली.

 इस किताब में हुमा कुरैशी कहां तक हैं और क्या उनसे जल्द किसी और रचना की उम्मीद की जा सकती है?
नॉवेल के हर किरदार में मैं और वे तमाम लोग मौजूद हैं जिनको मैंने जिंदगी में देखा-जाना और जिनसे मेरी वाबस्तगी रही है. पर यह कथात्मक कृति है, आत्मकथात्मक तो बिल्कुल नहीं. आप और किताबों की पूछ रहे हैं. क्यों नहीं, पर जरा देख तो लूं कि इसकी कितनी प्रतियां बिकती हैं (हंसते हुए).

—अमित दी‌‌क्षित

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