''हमने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को डीपफेक के लिए चेतावनी दी है’’
समूचे देश में डीपफेक का खतरा बढ़ने पर केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना-प्रौद्योगिकी, कौशल विकास और उद्यमिता राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर से ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा ने मोदी सरकार की चिंताओं, उठाए गए कदमों और संबंधित कानूनों में संशोधनों के बारे में बातचीत की

● हाल में पत्रकारों से बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीपफेक के खतरे के प्रति आगाह किया. खतरा कितना बड़ा है और हमें इसकी चिंता क्यों होनी चाहिए?
हम सरकार में कुछ समय से एक परेशान करने वाली घटना में इजाफे से वाकिफ हैं, जो मोटे तौर पर उथल-पुथल और अस्थिरता पैदा करने के मकसद से गलत सूचना, दुष्प्रचार और फर्जी सूचना को हथियार बनाने की कोशिश है. हमने सरकार का यह मिशन बना लिया है कि हमारी सभी नीतियां सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह इंटरनेट के पक्ष में हों.
साइबर अपराधों ने एक मायने में पहले की उस धारणा को उलट दिया है कि इंटरनेट और प्रौद्योगिकी भले के लिए है. जब आप फास्ट फॉरवर्ड करते हैं और सभी समस्याओं को आंकते हैं और फिर उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के आविष्कार से जोड़ते हैं, तो आने वाले तूफान की आशंका उभर आती है जो भारी तबाही ला सकता है.
एआई और फर्जी खबरों के घालमेल से डीपफेक की यह घटना ऐसी है जिसके लेकर हम सभी को चिंतित होना चाहिए क्योंकि यह लोगों, समाजों, समुदायों और देशों के लिए भारी विघटनकारी है. हमें माननीय प्रधानमंत्री का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने इस मुद्दे को उठाया और राष्ट्रीय जागरूकता पैदा की. हमने पिछले दो वर्षों में फर्जी खबरों के खिलाफ नियम-कानून बनाने की कोशिश की है.
● 2024 का आम चुनाव सामने है. डीपफेक से राजनैतिक दलों को क्या खतरा हो सकता है?
देखिए, फर्जी खबरें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए बड़ी चुनौती हैं. डीपफेक लोगों को गुमराह करने का बहुत ही खतरनाक तरीका है, जो ज्यादा से ज्यादा वीडियो को तवज्जो देने लगे हैं. राजनैतिक ध्रुवीकरण और झूठ की राजनीति में लिप्त बहुत-से लोगों के मद्देनजर कल्पना करें कि वह क्या गुल खिला सकता है.
यह दरअसल ऐसी माचिस की डिब्बी है, जो भावनाएं भड़काने की चिंगारी है और ऐसी आग भड़का सकती है जिसकी कल्पना भी लोग नहीं कर सकते. इसलिए, फर्जी खबरों के औजारों का जो इस्तेमाल पहले एक समस्या हुआ करती थी, अब डीपफेक के साथ उसका अलग आयाम और पैमाना खुल गया है.
● सरकार फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से क्या करने को कह रही है?
इन मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सबसे आगे रही है. हमने फरवरी, 2021, अक्तूबर, 2022 और फिर अप्रैल, 2023 में सूचना-प्रौद्योगिकी कानून के नियमों में संशोधन किया है. इन सभी में इंटरनेट की सुरक्षा और भारोसे की बात की गई. यह इन सभी प्लेटफॉर्मों पर जिम्मेदारी तय करने का दायित्व डालता है कि उनके प्लेटफॉर्मों पर ऑनलाइन सामग्री गलत या फर्जी खबर नहीं है.
लेकिन नियम 3.1बी के तहत 11 मुद्दे ऐसे हैं जिसे वे अपने प्लेटफॉर्म पर जगह नहीं दे सकते. इनमें मसलन, बाल यौन शोषण सामग्री या ऐसी सामग्री शामिल है जो लोगों को भड़का सकती है. इसके 3.1बी (1) के नियम कहते हैं कि फर्जी खबर, सरासर गलत जानकारी, उनके प्लेटफॉर्म पर नहीं दी जानी चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो उन पर कानून के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है, क्योंकि उन्हें जो सुरक्षा कवच, एवं जो सुरक्षा उन्हें हासिल है, वह खत्म हो जाएगी.
● वह कौन-सा सुरक्षा कवच था जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को पहले दिया गया था?
एक बात हमें समझनी है कि वह कानून जो इंटरनेट और इसलिए इन प्लेटफॉर्मों पर लागू होता है, वह पुराना कानून है जो 2020 में लागू हुआ. 2009 में आइटी कानून में किए गए संशोधनों में से एक अमेरिकी मॉडल की अंधी नकल में धारा 79 का प्रावधान किया गया था, जो हर इंटरनेट प्लेटफॉर्म को किसी भी प्रकार के मुकदमे से सुरक्षा कवच प्रदान करता है.
उस समय यह नैरेटिव था कि ये प्लेटफॉर्म किसी सामग्री के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, क्योंकि कुछ यूजर ऐसा करते हैं. इसलिए, अगर किसी पर मुकदमा चलाना है, तो यूजर पर चलाया जाए, न कि प्लेटफॉर्म पर. लेकिन उस सुरक्षा की वजह से प्लेटफॉर्मों में अच्छे रवैए या अच्छे आचरण का दायित्व नहीं रह गया है. तो, अब हम इन जहरीली बातों को देखते हैं, और सरकार, दुर्भाग्य से, प्लेटफॉर्म और यूजर के बीच हर विवाद की मध्यस्थ बनकर रह गई है.
अब नए आइटी नियमों के मुताबिक, हम कहते हैं कि यह सुरक्षा कवच सशर्त है, और उन पर 11 तरह की सामग्री पर गौर करने की शर्त है, जो वे अपने प्लेटफॉर्म पर नहीं दे सकते हैं. और अब जिस तरीके से हम डीपफेक पर लगाम लगाएंगे, वह अप्रैल 2023 में लागू किए गए नियमों के मुताबिक है.
अगर किसी भी प्लेटफॉर्म पर डीपफेक है, चाहे वह मैसेंजर प्लेटफॉर्म हो या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, जब उसे इसकी सूचना दी जाती है, तो उसके पास इसे हटाने के लिए 36 घंटे का समय होता है. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनका सुरक्षा कवच समाप्त हो जाता है, जो भी पीड़ित है वह उन्हें अदालत में ले जा सकता है और आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) और आइटी अधिनियम के तहत उन पर आपराधिक मुकदमा चला सकता है.
हमने इन प्लेटफॉर्मों से कहा है कि हम डीपफेक और फर्जी खबर को बहुत ही गंभीर खतरा और सुरक्षा तथा उस भरोसे के खिलाफ मानते हैं जिसके लिए, हमारे हिसाब से, हम देश के लोगों और देश के इंटरनेट यूजरों के प्रति जवाबदेह हैं. और हम डीपफेक के हर मामले में, यह तय करने में संकोच नहीं करेंगे कि सुरक्षा कवच को हटाने वाला नियम 7 पर अमल किया जाए, ताकि उससे जो भी आदमी या संगठन पीडि़त हो, वह उसके खिलाफ मुकदमा अदालत में ले जा सके.
● सरकार इस खतरे को रोकने के लिए और क्या करेगी?
सरकार के पास एक मानक संचालन प्रक्रिया है. हम एक फैक्ट चेक इकाई बनाना चाहते थे जो उद्योग, प्लेटफॉर्मों को यह जानने में मदद करेगी कि क्या गलत है और क्या सही है. नियम पहले ही लागू और अधिसूचित किए जा चुके हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, कुछ हलकों से मुंबई अदालत में चुनौती दी गई है. उनका दावा है कि यह स्वतंत्रता का उल्लंघन है. हमें उम्मीद है कि अदालत हमारे पक्ष में फैसला सुनाएगी.
● चिंता यह है कि सरकार इसका इस्तेमाल खबरों के प्रवाह पर लगाम लगाने के लिए करेगी और इसके बजाए इसके लिए कोई स्वतंत्र प्राधिकरण होना चाहिए.
फिर, दुर्भाग्य से, और मैं इसे पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं, जब हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो हम उसे स्वतंत्रता और कुछ प्रकार की सेंसरशिप के विरोधाभास के रूप में देखते हैं. यह सच नहीं है. हमारे संविधान के अनुच्छेद 19.2 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाता है, जो जवाहरलाल नेहरू के समय में अनुच्छेद 19 में संशोधन करने वालों ने लगाए हैं.
तो, इसलिए, भारत में, अमेरिका के विपरीत, फर्स्ट अमेंडमेंट फ्री स्पीच कोई निरंकुश, बिना शर्त अधिकार नहीं है. ऐसी कुछ बातें हैं जो आप बोली की आजादी के नाम पर नहीं कह सकते और हमारी नीति 19.2 के अनुरूप है. यह वास्तव में यह तय करने के बारे में है कि देश में इंटरनेट की सुरक्षा और भरोसे के लिए स्पष्ट वर्तमान खतरा डीपफेक, फर्जी खबरों से ऐसे तरीके से निबटा जाए, जिसमें प्लेटफॉर्म को कानून के तहत जवाबदेह ठहराया जाए. सरकार की ओर से नहीं, कानून के तहत डीपफेक या गलत सूचना से पीड़ित कोई भी उनके खिलाफ अदालत में जा सकता है.
● क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इससे निबटने के लिए खुद का आंतरिक तंत्र विकसित कर रहे हैं?
एआई ऐसी चीज है जो भारी विघटनकारी है, वह समूचे परिदृश्य को बदल रही है और नई कसौटियां बना रही है. चाहे आप फेसबुक हों या ट्विटर या गूगल या यूट्यूब, हर कोई नई एआई ताकत के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा है. इसलिए, मैं उन्हें संदेह का लाभ दूंगा. हम दुश्मन नहीं हैं. हम प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी में काम करेंगे.
लेकिन हम शर्तिया यह दोहराना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री ने इसे (मुद्दा) सिर्फ राजनैतिक चश्मे से नहीं उठाया है, कि अगर आप इस खतरे को बिना किसी पुलिसिया लगाम या बिना किसी नियम-कायदे के छोड़ देते हैं तो यह परिवारों के भीतर, समुदायों के भीतर, गांव के भीतर और शहर के भीतर बड़ा व्यवधान पैदा कर सकता है.
● डीपफेक बनाने की तकनीक उपलब्ध है, क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनकी पहचान की कोई तकनीक विकसित कर रहे हैं?
टेक्नोलॉजी की खूबी यह है कि इनोवेशन होगा और उसके अपने खतरे भी होंगे. फिर, नए खतरों पर लगाम लगाने की तकनीक अगला इनोवेशन होगा. तो, यह हमेशा लुका-छिपी का खेल है. हमेशा ही टेक्नोलॉजी रूपी दैत्य की यही फितरत रही है. आज फर्क यह है कि एआई का असर तेजी से फैल रहा है, ऐसी रफ्तार से जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. इसका असर इतना गहरा, इतना व्यापक और इसका इस्तेमाल इतना आसान है कि जिस गति से यह चल रहा है, उससे सभी लोग, एक तरह से, अनजान हैं.
इसलिए, मुझे लगता है कि प्लेटफॉर्म भी अपने खुद के टूल के साथ टेक्नोलॉजी को पकड़ने के लिए पागलपन से काम कर रहे हैं. हम इन प्लेटफॉर्मों के साथ काम करेंगे और हम प्रधानमंत्री के संदेश को प्रशस्त करने के लिए स्पष्ट कर देंगे कि यह ऐसा मुद्दा है जिसमें ढिलाई नहीं बरती जा सकती. हमें फौरी काम करने की जरूरत होगी. हमें इस बाबत पक्का मकसद तय करना होगा और वास्तविक, स्पष्ट परिणामों की समझ रखनी होगी कि कौन-सी तकनीक, कौन-से उपकरण लगाए जाएंगे और जवाबदेही का नियामक ढांचा क्या होगा. आने वाले हफ्तों में यह सब बिल्कुल स्पष्ट हो जाना चाहिए.
● प्रधानमंत्री ने दूसरी बात यह कही कि सोशल मीडिया से डीपफेक का लेबल लगवाया जाए.
यह दिलचस्प समस्या है जिसे अब प्लेटफॉर्मों को हल करना होगा. इन प्लेटफॉर्मों के साथ समस्या यह है कि उन्होंने गैर-जिम्मेदार होने का खुलेआम तूफान जैसा मजा लिया है. एक तो सुरक्षा कवच है, और दूसरे, दिलचस्प बात यह है कि वे अपने प्लेटफॉर्मों के गुमनाम उपयोग की अनुमति देते हैं. वे कहते हैं कि 'हम जिम्मेदार नहीं हैं’ लेकिन, साथ ही वे प्लेटफॉर्म के गुमनाम उपयोग की छूट देते हैं.
तो, साइबरस्पेस या इंटरनेट की दुनिया में गजब दिलचस्प जगह थी, जहां कानून नहीं पहुंच सकते थे और बुरे रवैए का कोई नतीजा नहीं भुगतना होता था. उसे बदल दिया गया है. अब हम यह कह रहे हैं कि बुरे रवैए और बुरे कार्यों के नतीजे भुगतने होंगे. डीपफेक शर्तिया खराब आचरण और बुरे कार्यों को जाहिर करने का नंगी आंखों से दिखने वाला तरीका है. इसलिए, या तो उन पर डीपफेक के लिए मुकदमा चलाया जाएगा, या वे यूजरों के लिए अधिक उचित कसौटी की व्यवस्था बनाएंगे.
इसमें यूजरों को प्लेटफॉर्म कह सकते हैं कि सेवा की शर्तों के अनुसार, हम अनिवार्य करते हैं कि जब आप संशोधित वीडियो बनाते हैं, तो आप उसे लेबल करें. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनकी गर्दन पकड़ी जाएगी.
इसलिए, एक तरह से, अपने नियमों और कानूनों के माध्यम से, हम प्लेटफॉर्मों की ओर से अच्छे व्यवहार, अच्छे आचरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं और उम्मीद है कि हम इन प्लेटफॉर्मों को यह आश्वस्त करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि वे यूजरों के काम पर नजर रखने में सक्षम हैं और यूजरों के खराब आचरण को लेबल करें और चिह्नित करें. फिलहाल आप जानते हैं, यह सभी के लिए मुफ्त है. वे सभी कमाई, पैमाने और आकार का खुला आनंद लेते हैं. और उनका मानना है कि उनकी कोई जवाबदेही नहीं है. 2021 के बाद से, इसे बहुत व्यवस्थित रूप से बदल दिया गया है.
● डीपफेक पर कानून में संशोधन के बारे में क्या है?
डीपफेक के मायने फर्जी खबरें हैं जिनसे डिजिटल इंडिया कानून के जरिए निबटा जाएगा, जो फिलहाल समीक्षा के दौर से गुजर रहा है. डिजिटल इंडिया कानून निश्चित रूप से 2000 के आइटी कानून का उत्तराधिकारी बनने जा रहा है. यह इंटरनेट की आधुनिक चुनौतियों, बिचौलियों की विविधता तथा जटिलता और टेक्नोलॉजी की उभरती चुनौतियों से निबटने के लिए काफी प्रासंगिक होगा.
● और यह नया डिजिटल कानून कब बनेगा?
प्रधानमंत्री ने हमेशा कहा है कि हम जल्दबाजी में कानून नहीं बनाते हैं, लेकिन हम इस पर परामर्श की प्रक्रिया जरूर पूरी करेंगे. हमने पहले ही कम से कम तीन दौर के परामर्श किए हैं. इनोवेशन, डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के साथ-साथ एआई और अन्य क्षेत्रों से आने वाली कुछ चुनौतियों के संदर्भ में हमने जो मसौदा तैयार किया है, उस पर बहुत आम सहमति है. तो, निश्चित रूप से, नया कानून आने ही वाला है.
● आगामी आइटी कानून में आप किन चीजों में बदलाव करना चाह रहे हैं?
जब आइटी कानून बना, तो इंटरनेट बड़ी मासूम जगह थी. यह ऐसी जगह थी जहां तकनीकी-आशावाद का आदर्श था. हमने उसे भलाई की जगह के रूप में देखा. हमने उसे लोगों को जोड़ने, सूचना तक पहुंच आसान बनाने के साधन के रूप में देखा. लेकिन पिछले 10-15 वर्षों में इंटरनेट ने अच्छाई, काबिलियत और सशक्तीकरण की जगह तो बनाई ही, साथ ही बुराई, नुकसान और शोषण तथा साइबर अपराध की भी जगह बन गया.
वह कानून पूर्व-आधुनिक इंटरनेट युग में बनाया गया था और निश्चित रूप से उसकी जगह नए कानून की जरूरत है. इस नए कानून के क्या पैमाने हैं? उसमें कई चीजें हैं. इंटरनेट आज कहीं अधिक जटिल और विविधतापूर्ण है. आपके पास ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और एआई प्लेटफॉर्म हैं. लोग आज अधिक से अधिक सुरक्षा और भरोसा चाहते हैं, और उन्हें अधिक अधिकारों की जरूरत है.
इसके लिए हमारे कानूनों को ठोस बनाने की जरूरत है, अधिक प्रासंगिक दृष्टिकोण के साथ, जो अगले 10 वर्षों के लिए माकूल होंगे, यानी इनोवेशन समर्थक, यूजर समर्थक और नागरिक सुरक्षा समर्थक. और मुझे उक्वमीद है कि हम इसे जल्द ही सामने लाएंगे.
"डीपफेक के मायने फर्जी खबरें हैं जिनसे डिजिटल इंडिया कानून के जरिए निबटा जाएगा, जो फिलहाल समीक्षा के दौर से गुजर रहा है. डिजिटल इंडिया कानून निश्चित रूप से 2000 के आइटी कानून का उत्तराधिकारी बनने जा रहा है."
2021 से केंद्र सरकार ने इस धारणा को व्यवस्थित ढंग से बदल दिया है कि प्लेटफॉर्मों की कोई जवाबदेही नहीं है और यह सबके लिए खुला मंच है... हम उन्हें यूजरों के खराब आचरण को लेबल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं
अगर हम डीपफेक के खतरे को बिना किसी पुलिसिया लगाम या बिना किसी नियम-कायदे के छोड़ देते हैं तो यह परिवारों के भीतर, समुदायों के भीतर, गांव के भीतर और शहर के भीतर बड़ा व्यवधान पैदा कर सकता है. प्रधानमंत्री ने इसे (मुद्दा) सिर्फ राजनैतिक चश्मे से नहीं उठाया है.