"अभिनय में खुद को देखकर मजा नहीं आता"

निर्माता-निर्देशक नागराज मंजुले से हाल ही में शुरू की गई अभिनय की नई पारी, कहानियों के जमीन से जुड़े रहने की जरूरत और बतौर अभिनेता उनके अनुभवों पर बातचीत

आप मराठी फिल्म नाल-2 से बतौर अभिनेता जुड़े, इसकी क्या वजह रही?
इसकी वजह है जमीन से जुड़ी शानदार कहानी. नाल-2 में मैंने बतौर एक्टर, प्रोड्यूसर और डायलॉग राइटर काम किया है. यह कहानी मैंने लिखी नहीं, फिर भी यह मेरी ही है. नाल को दर्शकों ने सराहा था. इसी का अगला भाग है यह फिल्म.

आपकी कहानियां हमारे आस-पास होते भेदभाव से पर्दा उठाती हैं, इसमें आपका भुगता हुआ सच कितना होता है?
बचपन में भेदभाव समझ नहीं पाता था. कुछ घर थे जिनके अंदर मैं नहीं जा सकता था. कुछ घर थे जहां से खाना आता था, हमारा खाना उनके घर नहीं जाता था. बाद में समझा कि वजह मेरा दलित होना है.

आपकी एक और फिल्म आने वाली है 'कस्तूरी', कुछ उसके बारे में बताइए
मैं और अनुराग कश्यप इसे प्रोड्यूस कर रहे हैं. इसके डायरेक्टर विनोद कांबले हैं. ये महाराष्ट्र की एक तहसील की कहानी है. सब कुछ साफ-सुथरा नजर आता है. मगर उसे साफ रखने वाले किसी को नजर नहीं आते. ये कहानी उन्हीं लोगों की है.

लोग कहते हैं शिवाजी नहीं छत्रपति शिवाजी महाराज बोलिए.
मेरी फिल्म का नाम शिवाजी है. मैं मानता हूं आदर से बड़ा प्रेम होता है. हम तो उन्हें 'शिवबा’ बोलते हैं. मतलब हमारे पिता शिवाजी.

आप अपने अभिनय के बारे में बात करते हुए असहज क्यों हो जाते हैं?
अभिनय में खुद को देखकर मजा नहीं आता. मैं डायरेक्टर हूं. मुझे डायरेक्ट करना आसान लगता है. कभी-कभी कुछ चीजें बस आपसे हो जाती हैं. मुझे अभिनय में मजा आता है, मगर देखने में असहज लगता है.

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