'प्रेडेटर : बैडलैंड्स' में ऐसा क्या जो इसे 2025 की सबसे अच्छी फिल्म कहा जा रहा है?

'प्रेडेटर: बैडलैंड्स' असंभव चमत्कार को सच करती रहस्यमयी जादुई कथा है, जहां नए ब्रह्मांड के दरवाजे खुलने पर खतरे भी अच्छे लगते हैं

Leisure: Cinema / Predator
प्रेडेटर: बैडलैंड्स

कथाओं के संसार का एक अति-आनंदकारी पल वह होता है जब बुरा, अच्छा बन जाता है. पोलिश रचनाकार आंद्रेई सपकोव्स्की की उमड़-घुमड़ फैंटेसी शृंखला पर बेस्ड द विचर का काहीर, निल्फगार्डियन आर्मी का कमांडर होता है. विशुद्ध विलेन मटीरियल. सिंट्रा की राजकुमारी सीरी को पकड़ने के लिए वह हर हद पार कर जाता है. लेकिन गए अक्तूबर में आए चौथे सीजन में वह नायक गेरॉल्ट के साथ खड़ा हो जाता है.

वी. शांताराम की महान फिल्म दो आंखें बारह हाथ के उन छह नृशंस हत्यारों का हृदय परिवर्तन होता है तो विराट गुदगुदी मस्तिष्क में छूटती है. अंत में जेलर के परम बलिदान पर तो वे फूट-फूटकर ही रोते हैं. जंजीर का गुंडा शेरखान बाद में इंस्पेक्टर विजय खन्ना से 'यारी’ के लिए जान भी देने को तैयार हो जाता है. यहां तक कि द साइलेंस ऑफ द लैंब्स का नरभक्षी सीरियल किलर हैनिबल लेक्चर भी अपने ही जैसे दूसरे वहशी हत्यारे बफेलो बिल को पकड़ने के लिए एफबीआइ एजेंट क्लेरीस का साथ देता है.

कितना अतार्किक है न! पर यही कथाओं का रहस्यमयी जादू है. बुरा भी अच्छा लग जाएगा, अच्छा भी बुरा लग जाएगा.
यही एक बड़ी वजह रही प्रेडेटर: बैडलैंड्स देखने जाने की. 38 साल में पहली बार इस फिल्म सीरीज का परग्रही, हत्यारा, खल पात्र प्रेडेटर, हीरो और गुड हो गया है. इसके कुंठाहीन, सजीले, मुस्कानवान, फ्रैश जहनियत वाले डायरेक्टर डॉन ट्रैक्टनबर्ग को यह प्रेरणा टर्मिनेटर 2: जजमेंट डे (1991) से आई, जिस फिल्म में खल ही नायक हो गया था. ट्रैक्टनबर्ग पर पुष्पवर्षा! उनकी प्रेडेटर: बैडलैंड्स गुदगुदाती है, हंसाती है, धमनियों में रक्त को धकधकाती है, आंखें फटी रह जाती हैं, मुंह खुला रह जाता है, और आप आनंद लेकर उठते हैं. निर्विवाद रूप से 2025 की श्रेष्ठतम फिल्मों में से एक.

इसकी सुखाद्य कथा कुछ यूं है कि दूर एक बंजर-से कठोर ग्रह पर रहते हैं याउट्जा. वही प्रेडेटेर लोग जो पिछली फिल्मों में धरती पर शिकार करने आते रहे हैं. इस ग्रह का सबसे कमजोर लड़का डेक (न्यूजीलैंड मूल के कमाल के डिमिट्रियस शूस्टर-कोलोआमाटांगी) अपनी हस्ती सिद्ध करने जाता है ब्रह्मांड के सबसे खतरनाक ग्रह पर. एक ऐसे जीव को मारने जिसे मारा नहीं जा सकता. वह जीव है—कालिस्क.

वहां उसे मिलती है एक सिंथेटिक रोबोट थिया (ऐल फैनिंग, अनुपम) जो वेलैंड-यूटानी कॉर्पोरेशन की संपत्ति है, वहीं कंपनी जो जेम्स कैमरॉन की एलियंस (1986) में भी 'बेहतर दुनियाओं का निर्माण’ कर रही होती है. थिया का पेट के नीचे का हिस्सा गायब है तो वह डेक के कंधे पर टंगी रहती है. वहीं एक मन मोहने वाला और अंत में बड़ा रहस्य उद्घाटित करने वाला बड भी मिलता है. एक बंदर-सा स्वीट जीव (फीमेल) जो अपने आकार से हजार गुना बड़े जीव का शिकार करने के लिए याउट्ज़ा लड़के से कंपीट करता है. फिल्म का शायद यह सबसे थ्रिलिंग, आश्चर्यकारी दृश्य होता है.

डैन ट्रैक्टनबर्ग दिलफरेब दिग्दर्शक हैं. प्रेडेटर ने ब्रह्मांड को यूं खोल दिया है कि अब न जाने कितनी ही फिल्में संभव हैं और बिल्कुल नए कलेवर की. कितने ही नए जीव और प्रजातियां उन्होंने इंट्रोड्यूस की हैं. प्राचीन लोककथाओं की सार्वभौमिकता उनकी अप्रोच में है. वह ब्रह्मांड के परम खूंखार हत्यारे को अपना नायक बनाते हैं. अंडरडॉग बनाते हैं. वे एक रोबोट को ऐसा मॉरल कंपास देते हैं जो अब इंसानों में भी नहीं दिखता.

वह 'मत्स्य नियम’ वाली सृष्टि में सबसे छोटे, निरीह और हंसोड़ जीव बड के मूल में सबसे बड़ा राज छुपाते हैं कि ताकत से नहीं प्रेम और परोपकार से ही जीतोगे. डेक अंत में कमजोरों, टूटे हुओं के बूते ही सबसे ताकतवर को 'हराता’ है.

सिने-सुझाव : फुर्सत में और क्या है देखने लायक

स्टीव  2025 

हाल में एक समीक्षक-पत्रकार ने किलियन मर्फी से पूछा कि हॉलीवुड के स्टार होकर वे सेलिब्रिटी वाली दुनिया से दूर अपनी मादरी जमीन डबलिन (आयरलैंड) में बीवी-बच्चों के साथ रहना-जीना पसंद करते हैं? मर्फी का जवाब कुछ ऐसा था कि यार! इसका जवाब बहुत बोरिंग होगा और उसको पढऩे में किसी को रस नहीं आएगा. पेशे और जिंदगी के मेल को लेकर वे इतने ही स्पष्ट और तटस्थ हैं. ओपनहाइमर (2023) जैसे विहंगम सिनेमाई शाहकार के जटिल नायक को जीने के लिए ऑस्कर जीतने के बावजूद, शिक्षकों के कुनबे में पला-पढ़ा और थिएटर करते बढ़ा यह अभिनेता अपनी प्रतिबद्धताओं से हिलने को राजी नहीं.

टिम मेलैंट्स निर्देशित स्टीव सार्थक विषयों और अपने-से लगते किरदारों को जीने के उनके उसी जज्बे का नमूना है. स्टैंटनवुड (काल्पनिक) में मेंटल हेल्थ वाले एक केंद्र का मुखिया लगातार मारपीट, तोड़-फोड़ और हंगामे पर उतारू हिंसक किशोरों को संभालने की जुगत में है. उसका खुद का अतीत भी उथल-पुथल भरा है. दवाएं खाकर जी रहा है. बेचैनी स्वभाव है. केंद्र की इमारत अब बिकने को है. ये बच्चे कहां जाएंगे?

अब स्टीव की सबसे बड़ी फिक्र. मैक्स पोर्टर के नॉवेल शाइ पर गढ़ी गई यह फिल्म सोशल मीडिया और एआइ से आक्रांत इस दौर में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर संजीदगी से बात करती है. मर्फी उस मुखिया की लाचारी और बच्चों का भविष्य बचाने की जिद, दोनों के द्वंद्व को भीतर से जीते हैं. एक दृश्य में उनके चेहरा देखते बनता है जब दौरे पर आए स्थानीय सांसद की लफफाजियों के बाद किशोर शाइ उससे सवाल करता है: ''एमपी होने के तौर पर यह आपकी ट्रे‌निंग का हिस्सा है या आप हमेशा से ही इतने कमीने थे?’’
कहां देखें: नेटफ्लिक्स

रशोमन  1950 
सिनेमा के पितामहों में से एक अकीरा कुरोसावा की यह सबसे चर्चित फिल्मों में से एक है. वजह? अलग-अलग मनोदशा के मुताबिक, एक ही घटना को नितांत भिन्न नजरियों से देखने की मनुष्य की सदा की आदत का लाजवाब मुजाहिरा. जंगल में पत्नी के साथ गुजरता एक योद्धा, डकैत से मुठभेड़, पति की मृत्यु. अब एक भिक्षु, लकड़हारे और पथिक की बहस में डर, लालच और चाहत जैसे कोणों से ऐसी दिलचस्प बहस है कि हर किसी के दृष्टिकोण से हम सहमत होते दिखते हैं.
कहां देखें: यूट्यूब

2001: अ स्पेस ओडिसी  1968  
साइंस फिक्शन की आंधी वाले इस दौर में स्टैनले क्यूब्रिक की इस क्लासिक को धैर्य से देखा जाना चाहिए. 1968में इसके प्रीमियर पर कई काबिलदाओं ने भी सवाल किया था कि आखिर यह कहना क्या चाहती है? यह सुस्त और लगभग मूक फिल्म आदिम सभ्यता से लेकर, स्पेस शटल के जरिए, अंतरिक्ष तक में मनुष्य और टेक्नॉलोजी के अंतर्संघर्ष की कथा दिमाग के ताले खोल देने वाले अंदाज में कहती है.
कहां देखें: प्राइम वीडियो

- गजेंद्र सिंह भाटी

Read more!