झारखंडी भाषाओं के गीत अश्लीलता के लपेटे में कैसे आ गए?

झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं के गीतों में आई अश्लीलता से एक बड़ा तबका चिंतित है

Jharkhand: Regional Songs
एक आयोजन में सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना के साथ नंदलाल नायक

पद्मश्री मधु मंसूरी के गाए गांव छोड़ब नाही, जंगल छोड़ब नाही, माई माटी छोड़ब नाही... नागपुरी गीत ने कभी देशभर के आंदोलनों को आवाज दी. इसी तरह से पद्मश्री रामदयाल मुंडा ने कहा था कि ''जे नाची, से बाची’’ यानी जो नाचेगा, वही बचेगा. तात्पर्य यह था कि जो अपनी संस्कृति को जीएगा, वही बच और बचा पाएगा. नई पीढ़ी ने उन्हें सुना तो मगर गुनना जरूरी नहीं समझा. उसने अलग रास्ता अख्तियार कर लिया.

इस रास्ते में उसने थोड़ी हिंदी मिलाई और भोजपुरी से थोड़ी अश्लीलता उधार ली. फिर ऑटो ट्यून का शॉर्ट कट लिया और गढ़ दिया नया गीत. मजमून देखिए, ''तोर काने के झुमका, गोरी हिलाबे रांची दुमका. बुढ़बा जवान भेलऊ, देखि के...गोल गोलका.’’ खोरठा भाषा में गाए इस गीत को यूट्यूब पर 2.4 करोड़ व्यूज मिल चुके हैं. ''माल पिएंगे हम तो माल पिएंगे, माल संगे चखना और बीड़ी पिएंगे.’’ नागपुरी भाषा के इस गीत को 50 लाख से ज्यादा देखा गया है. ऐसे गीतों की सूची लंबी है.

ऐसे में झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं के गीतों में आई अश्लीलता से एक बड़ा तबका चिंतित है. केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की जनरल काउंसिल के सदस्य और नागपुरी गायक नंदलाल नायक कहते हैं, ''झारखंड का आदिवासी हो या मूलवासी, उसके लिए स्त्री कोई चीज या दुर्लभ चीज नहीं रही है. स्त्री शरीर छुपाने या दैहिक आकर्षण का मुद्दा नहीं रहा है.

यही वजह है कि संयुक्त बिहार का हिस्सा होते हुए भी यहां तवायफ, ऑर्केस्ट्रा या फिर गीतों में अश्लीलता की परंपरा नहीं रही है. अब जो गीत बन रहे हैं और फिर उन्हें अश्लीलता के साथ स्टेज पर परफॉर्म किया जा रहा है, यह झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला है.’’ ऐसे गीत गाने और वीडियो बनाने वाले ज्यादातर स्कूल-कॉलेज के युवा हैं. उनके मोबाइल फीड में भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह और खेसारी लाल यादव जैसों के द्विअर्थी गीत और उनकी लाइफस्टाल की खबरें छाई हैं.

नागपुरी फिल्मों के निर्देशक लाल विजयनाथ शाहदेव कहते हैं, ''भोजपुरी संगीत कभी अपनी मिठास और लोकधुनों के लिए मशहूर था मगर धीरे-धीरे वह अश्लीलता का पर्याय बन गया. यही बीमारी अब नागपुरी संगीत को भी गिरफ्त में ले रही है.’’  
जाहिर है, संघर्ष वायरल और वजूद के बीच है.

झारखंड की पहचान को बचाने की पहली जिम्मेदारी रचनाधर्मियों की है. उन्हें नया रचना होगा. इसके साथ इससे जुड़े स्थानीय कारोबारियों और सरकार की जिम्मेदारी भी बनती है. राज्य की पिछली सरकार में स्थानीय कलाकारों को मंच और आर्थिक प्रोत्साहन देने को हर शनिवार 'शनि परब’ नामक कार्यक्रम का आयोजन होता था.

हेमंत सरकार में उसे बंद कर दिया गया. आज तक कलाकारों के लिए कोई राज्य स्तरीय अवार्ड नहीं घोषित किया गया. जाहिर है, सरकारी संरक्षण की कमी भी बदहाली का बड़ा कारण है.

महावीर नायक को नागपुरी भिंसरिया, मर्दानी झूमर, पावस गाने और उसे बढ़ाने में योगदान के लिए बीते वर्ष पद्मश्री से नवाजा गया. उन्हें उम्मीद है कि साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी सरीखे संस्थानों के गठन के राज्य सरकार के फैसले से चीजें बदलेंगी, बशर्ते इन युवाओं को सही राह और प्रोत्साहन देने की शुरुआत हो.

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