दिनेश विजान ने कैसे 'मैडॉक फिल्म्स' को हिंदी सिनेमा की एक ताकतवर कंपनी बना दिया?

'मैडॉक फिल्म्स' की 20वीं सालगिरह पर दिनेश विजान ने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी कंपनी को हिंदी सिनेमा की एक ताकतवर प्रोडक्शन कंपनी बना दिया.

दिनेश विजान  (Photo: Maddock Films)
दिनेश विजान (Photo: Maddock Films)

हिंदी फिल्म उद्योग के अव्वल अदाकार और फिल्मकार 7 अप्रैल को जब मैडॉक फिल्म्स की 20वीं सालगिरह का जश्न मनाने के लिए मुंबई के ताज लैंड्स एंड में इकट्ठा हुए तो गर्व और आत्मविश्वास से भरा हुआ एक शख्स वहां सबसे अलग नजर आया—यह थे इस स्टुडियो के संस्थापक दिनेश विजान.

काले रंग की शर्ट और पतलून पहने विजान या डीनो (जैसा कि उद्योग जगत में उन्हें कहा जाता है) के पास गर्व करने की खासी वजह थी. उनकी पिछली दो फिल्मों स्त्री 2 (2024) और छावा (2025) ने अकेले भारत में 1,100 करोड़ रुपए बटोरे और स्त्री 2 तो अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई.

राजकुमार राव, वरुण धवन, विकी कौशल, कृति सैनन के अलावा श्रीराम राघवन और अमर कौशिक सरीखे फिल्मकारों ने इस प्रोडक्शन हाउस के बारे में बहुत खुलकर और उत्साह से बात की. विजान कहते हैं, ''मेहमानों की फेहरिस्त इतनी लंबी हो गई कि हमें ताज जाना पड़ा, वर्ना मैं इसे अपने दफ्तर या किसी छोटे-से बार में आयोजित करता.’’

तामझाम से मुक्त प्रोड्यूसर विजान यशराज फिल्म्स के आदित्य चोपड़ा की तरह एकांतप्रिय और मीडिया से दूरी रखने वाले भले न हों लेकिन वे धर्मा प्रोडक्शंस के करण जौहर की तरह मीडिया प्रेमी भी नहीं हैं. अकेले इन दो फिल्मों के दम पर मैडॉक अव्वल दर्जे के प्रोडक्शन हाउस की कतार में यानी ए लिस्ट में आ गया.

विजान कहते हैं, ''कामयाबी के साथ लोगों का आपको देखने का नजरिया बदलता है.’’ मई में भूल चूक माफ की रिलीज से चंद रोज पहले वे शिरडी में थे. 2023 में आई हिट फिल्म जरा हटके जरा बचके के बाद से ही इस पवित्र स्थान की यात्रा करना उनके लिए एक रस्म-सा बन गया है. वे जोड़ते हैं, ''इससे आपके ऊपर रिलीज को लेकर जो तनाव रहता है उसे हल्का करने में मदद मिलती है.’’ 

मैडॉक के बॉलीवुड में विशालकाय बनकर उभरने की एक वजह हॉरर-कॉमेडी फिल्में हैं, जो उसका तुरुप का पत्ता बन गई हैं. वाइआरएफ की जासूसी दुनिया वाली फिल्मों के विपरीत यह साफ तौर पर भारतीय है, जिसकी कहानियां महानगरों से बाहर की पृष्ठभूमि की हैं—स्त्री में चंदेरी, भेड़िया (2022) में अरुणाचल प्रदेश और मुंज्या (2024) में कोंकण का इलाका फिल्म का कैनवस है.

सच पूछिए तो विजान ने इस दुनिया की परिकल्पना उस वक्त नहीं की थी जब स्त्री (2018) पर काम चल रहा था. मगर 2012-13 में लॉस एंजेलिस में एक रात्रिभोज के दौरान दी गई हॉलीवुड के प्रोड्यूसर चार्ल्स 'चक’ रोवेन की सलाह उनके मन में अटकी रह गई, ''अपना सांचा गढ़ो, अपने किरदार गढ़ो.’’ स्त्री के आश्चर्यजनक ढंग से हिट होने के बाद विजान ने यही किया.

इन्हीं फिल्मों (स्त्री, भेड़िया और मुंज्या) में अपने अंदाज के किरदारों को छितराकर विजान ने अपने लिए ऐसी आइपी (बौद्धिक संपदा) तैयार की जो बॉक्स ऑफिस पर शानदार फसल काट रही है. मैडॉक ने इसी विधा की आठ और फिल्मों का ऐलान किया है, जो एक-एक करके 2028 तक आएंगी. इस साल थामा आएगी, जिसमें आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना की मुक्चय भूमिकाएं हैं और यह दक्षिण की पृष्ठभूमि पर बनी है.

सुपरस्टार्स के बगैर
यहां स्पष्ट करना होगा कि हॉरर-कॉमेडी फिल्में मैडॉक के गुलदस्ते का महज एक हिस्सा हैं. इनमें हिंदी मीडियम (2017), बाला (2019) और लुका छुपी (2019) सरीखी पारिवारिक हास्य प्रधान फिल्में, छावा से शुरू हुई ऐतिहासिक/ मिथकीय फिल्में, और सशस्त्र बलों से जुड़ी ड्रामा फिल्में (स्काइफोर्स और आने वाली फिल्म इक्कीस) हैं.

विजान अपना विचार पेश करते हैं: ''हम नए और उभरते भारत के दिल को छूने वाली कलात्मक फिल्में बनाना पसंद करते हैं. हमारे नजरिए में कंटेंट अव्वल है. जिस किसी के पास भी अनोखा और मजेदार आइडिया होता है, सबसे पहले हमारे पास आता है, जो कि अच्छी बात है.’’

इससे ज्यादा असरदार बात यह है कि मैडॉक ने सुपरस्टारों पर भरोसा किए बिना यह शिखर हासिल किया. तीनों में से एक भी खान, रणबीर कपूर या आलिया भट्ट ने अभी तक मैडॉक की किसी फिल्म नहीं किया. मगर सितारे भी खासे समझदार हो गए हैं—अक्षय कुमार ने स्त्री 2 में छोटा लेकिन अहम किरदार अदा किया. विजान के लिए ऐसी कहानियां खोजना ज्यादा अहम है जो सितारे की मौजूदगी के साथ न्याय कर पाएं.

छावा समेत मैडॉक की चार फिल्मों का निर्देशन कर चुके फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर साफ कहते हैं, ''आप आजाद महसूस करते हैं. आप बेहतर ढंग से खुद को व्यक्त कर सकते हैं. डीनो कैलकुलेटर लेकर नहीं बैठते; वे फिल्मों में जज्बाती तौर पर शामिल होते हैं.’’

मैडॉक की हरेक फिल्म डीनो के पिता प्रेम के प्रति श्रद्धांजलि से शुरू होती है. मुंबई के कारोबारी पिता ने विजान को गहराई से प्रेरित किया. फिल्मों का कीड़ा भी उन्हें अपने पिता से ही मिला जो हर रविवार उनको अपने साथ फिल्म दिखाने ले जाते थे.

विजान ने मुंबई से एमबीए किया और फिल्मों का रुख करने से पहले निवेश बैंकर के तौर पर काम किया. वे कहते हैं, ''उनके बिना मैं वह शख्स कतई न होता जो मैं हूं, वे फिल्में नहीं बनाता जो मैं बना रहा हूं, और उन मुश्किलों से नहीं गुजरता जिनसे मैं गुजरा हूं.’’

भारत के बारे में अपनी समझ को गढ़ने का श्रेय भी विजान अपने पिता को देते हैं, जिन्होंने पारिवारिक यात्राओं के दौरान देश की विविधता भरी हकीकतों और संस्कृतियों से उन्हें वाकिफ करवाया. वे कहते हैं, ''मैं इसकी सॉफ्ट वैल्यू आपको बता सकता हूं. यह बेशकीमती है.’’ बदलापुर (2015), लुका छुपी, जरा हटके जरा बचके और सेक्टर 36 (2014) सरीखी फिल्में उन कहानियों के प्रति विजान के लगाव का प्रमाण हैं जो कम देखे गए भारत की पृष्ठभूमि से जुड़ी हैं.

कामयाबी का सूत्र
एक कुबूलनामे की तरह विजान खुद मानते हैं कि वे बहुत ज्यादा सामाजिक शख्स नहीं हैं, लेकिन वे 
रिश्तों को अहमियत देते हैं और अपने करीबी लोगों की एक मजबूत मंडली बनाए रखते हैं. इसमें उनकी बहनें पूनम और पूजा (दोनों मैडॉक में प्रोड्यूसर), क्रिएटिव टीम की प्रमुख शारदा कार्की जलोटा, कानूनी मामले संभालने वाली अश्नी पारेख, और उनकी पहली फिल्म बीइंग साइरस (2005) से ही स्टुडियो के साथ जुड़े रहे निर्देशक होमी अदजानिया शामिल हैं.

विजान शोबिज की दुनिया और उसकी चकाचौंध से दूर रहना पसंद करते हैं और निजी जिंदगी को अहमियत देते हैं. जुड़वां बच्चों के पिता विजान रात 8 बजे उनके सोने से पहले घर पहुंचने की कोशिश करते हैं. पत्नी प्रतिमा को वे अपना 'लेडी लक’ कहते हैं, जिनके साथ 2018 में वे विवाह बंधन में बंधे थे.

मैडॉक की हिट फिल्मों जरा हटके जरा बचके और छावा  में काम कर चुके विकी कौशल कहते हैं, ''दिनेश सर का पूरा ध्यान हमारी संस्कृति और इतिहास से जुड़ी कहानियां खोजने पर होता है. इससे आप तेजी से विधा बदल सकते हैं.’’ भारत को सबसे ऊपर रखने के उनके नजरिए ने विजान को अपनी फतहों को मजबूत करने की ताकत दी. स्त्री की कामयाबी ने उन्हें भाग 2 का बजट बढ़ाने का हौसला दिया.

मुंज्या में उन्होंने 45 करोड़ रुपए के बजट का करीब 60 फीसद विजुअल इफेक्ट्स पर खर्च किया. उनका अब तक का सबसे बड़ा जुआ छत्रपति संभाजी महाराज पर 200 करोड़ रुपए के बजट की ऐतिहासिक ऐक्शन ड्रामा फिल्म छावा थी. विजान कहते हैं, ''इसे लेकर बुरी तरह से डरा हुआ था क्योंकि मैं एक अनजान इलाके में कदम रख रहा था.’’ फिल्म फरवरी में रिलीज हुई और हिंदी सिनेमा की अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई.

मैडॉक के सितारे बुलंदियों पर हैं, पर विजान को भान है कि यह उद्योग के लिए मुश्किल घड़ी है. वे कहते हैं, ''फकत हमारी फिल्मों का चलना ही काफी नहीं. चार से पांच खिलाड़ियों के बीच भाईचारा है और बातचीत होती रहती है कि हम कुल कमाई बढ़ाने में एक-दूसरे की कैसे मदद कर सकते हैं.’’ एजेंट विनोद (2012), राब्ता (2017), लव आज कल 2 (2020) और रूही (2021) सरीखी फिल्मों के साथ मैडॉक को अपने हिस्से के झटके भी लगे.

विजान के निर्देशन में बनी पहली अभागी फिल्म राब्ता के वक्त से ही मैडॉक से जुड़ी कृति सैनन ने इस प्रोडक्शन हाउस को 'छोटी-सी आरामदेह जगह’ से सांताक्रूज की 'विशाल इमारत’ में बढ़ते देखा है. वे कहती हैं, ''उन्होंने हर उस फिल्म से सीखा जो कामयाब नहीं हुई.’’

विजान कामयाबी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे रहे. वे कहते हैं, ''मैं मैडॉक को अपनी जगह लेते देखना चाहता हूं. जब तक मैं सही ढंग से काम कर रहा हूं, मुझे अगुआई करनी चाहिए. लेकिन किसी पड़ाव पर अगर मैं यह काम ठीक से न कर सकूं, तो मैं उस शक्चस को लाना चाहूंगा जो मुझसे बेहतर हो.’’ अलबत्ता अभी तो हर कोई डीनो की तवज्जो चाहता है.

हमारे लिए कंटेंट 
सबसे पहले है. जिसके पास कोई अलग या हटके आइडिया होता है, वह सबसे पहले हमारे पास ही आता है—और यह हमारे लिए अच्छी बात है. हमें ऐसी कलात्मक फिल्में बनाना पसंद है जो उभरते हुए भारत की सोच और भावनाओं से जुड़ती हों.
दिनेश विजान, संस्थापक, मैडॉक फिल्म्स

स्त्री (2018)
महज 20-25 करोड़ रुपए के सीमित बजट में बनी इस फिल्म ने 124 करोड़ रुपए की कमाई की. दो साल बाद, विजान ने स्त्री के किरदारों को भेड़िया (2022) में जोड़ते हुए एक हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स बनाने का विचार आजमाया. आगे जो हुआ वह इतिहास बन चुका है.

स्त्री 2 (2024)
'पार्ट 2’ से अच्छी कमाई की आशा  तो थी लेकिन बहुत कम लोग यह अंदाजा लगा सके थे कि यह भारत में अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म बन जाएगी (585 करोड़ रु.). निर्देशक अमर कौशिक के रूप में विजान को एक ऐसा रचनात्मक सहयोगी मिला जो हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स की बौद्धिक संपदा गढ़ने में उनकी मदद करता है.

वे सचमुच अपनी संस्कृति, अपनी जमीन और इतिहास से कहानियां खोजने पर पूरा ध्यान लगाते हैं. यही दृष्टिकोण वह जादुई मसाला है जो भारतीय सिनेमा को वैश्विक स्तर पर पहचान दिला सकता है.
विकी कौशल, अभिनेता छावा

मिमी (2021)
कोविड महामारी के कारण, एक संघर्षशील अभिनेता से सरोगेट मां बनी महिला की इस कहानी को ओटीटी पर रिलीज करना पड़ा. यह फिल्म कृति सैनन और पंकज त्रिपाठी— दोनों के करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई, और दोनों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

दिनेश किसी प्रोजेक्ट या इंसान पर भरोसा कर लें, तो उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि बाकी लोग क्या कह रहे हैं. अफवाहों से प्रभावित होना आसान है लेकिन वे वाकई अपने लोगों और कंटेंट के पीछे मजबूती से खड़े रहते हैं.
कृति सैनन, अभिनेत्री, मिमी और लुकाछुपी

छावा (2025)    
मैडॉक की पहली ऐतिहासिक फिल्म—छत्रपति संभाजी महाराज पर आधारित एक ऐक्शन ड्रामा—इसके स्तर को और ऊंचा उठाएगी, यह साबित करते हुए कि मैडॉक सिर्फ हॉरर कॉमेडी या छोटे शहरों की प्रेम कहानियों तक सीमित नहीं.

हिंदी मीडियम (2017)
विजान इसे एक गेम-चेंजर कहते हैं. एक बुटीक मालिक (इरफ़ान) की कहानी, जो अपने बच्चे का दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाने के लिए बेताब है—इस फिल्म ने मध्यम वर्ग की असुरक्षाओं और आकांक्षाओं को हास्य और संवेदनशीलता के साथ छू लिया.

अब जब इंडस्ट्री सोच रही है कि 'चलिए हॉरर-कॉमेडी बनाते हैं’, दिनेश विजान सफलता के पारंपरिक मार्ग पर नहीं, बल्कि चुनौतियों भरे रास्ते पर चल रहे हैं.

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