पटना में तीन दोस्तों की मुलाकात से कैसे पूरा हुआ सिनेमा मालिक का थिएटर वाला सपना?

कोरोना काल में पटना में संयोगवश तीन किरदार मिले और फिर पटना के 'पैलेस ऑफ वेराइटी' थिएटर के कैंपस में 'हाउस ऑफ वेराइटी’ के नाम से एक नया इंटीमेट थिएटर का जन्म हुआ.

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अभिनेता विनीत कुमार हाउस ऑफ वेराइटी (एचओवी) में एक थिएटर वर्कशॉप के दौरान.

पटनावासी कैलाश बिहारी सिन्हा ने 1929 में उस जमाने की मूक फिल्मों के प्रदर्शन के लिए एक थिएटर बनवाया था. फिल्में इतनी बनती नहीं थीं कि रोज शो हो. सो खाली दिनों में वहां नाटक और ऑर्केस्ट्रा चलते.

विविधता के चलते ही सिन्हा ने थिएटर का नाम रखा पैलेस ऑफ वेराइटी. उस जमाने के अभिनय सम्राट पृथ्वीराज कपूर जैसे दिग्गज कलाकार ने वहां हिंदी के बड़े कद्दावर लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का लिखा नाटक अंबपाली किया था.

सिन्हा के बेटे शिवेंद्र की नाटकों में रुचि हुई. वे थिएटर करने लगे. उसकी पढ़ाई के लिए वे लंदन की मशहूर रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स (राडा) गए. भारत में दूरदर्शन की शुरुआत होने पर वे उससे जुड़े. शिवेंद्र ने एक फिल्म भी बनाई फिर भी (1971) जिसे नेशनल अवार्ड मिला.

उनके भतीजे और कैलाश बिहारी के पोते सुमन सिन्हा पढ़ाई पूरी करके चचा के पास दिल्ली चले गए. चचा की सोहबत में उन्हें नाटकों का ऐसा चस्का लगा कि वे फ्लाइट से मुंबई जाते, होटल में ठहरते, पृथ्वी थिएटर के नाटक देखते. इसी तरह बंगलौर में रंग शंकर सभागार के कार्यक्रम देखने जा पहुंचते.

रंगकर्मी पुंज प्रकाश और एचओवी के कर्ता-धर्ता सुमन सिन्हा

टाकी यानी सवाक फिल्मों का दौर आया तो 1949 में पैलेस ऑफ वेराइटी फुल टाइम सिनेमा हॉल में बदल गया, नाम मिला रीजेंट सिनेमा. कैलाश के बेटे और सुमन के पिता सुशील कुमार सिन्हा उसे संभालने लगे. 1979 में सुमन पटना लौटे और रीजेंट सिनेमा को संभालने में पिता की मदद करने लगे.

पर कहीं गहरे एक सपना पलने लगा: पृथ्वी और रंग शंकर जैसी क्वालिटी का थिएटर आखिर पटना में क्यों नहीं हो सकता? 1980 में रीजेंट सिनेमा की मरम्मत होने लगी तो सुमन ने परदे के सामने 48 फुट की जगह छुड़वाई कि मौके-बेमौके वहां नाटक हो सकें. मगर रंगमंच के जानकारों ने कह दिया कि वहां नाटक हो ही नहीं सकता. सुमन का दिल टूटा मगर पटना में पृथ्वी जैसा थिएटर बनाने का सपना नहीं.

इस कथा के दूसरे किरदार हैं पटना के एक रंगकर्मी, जो आगे चलकर फिल्मों/टीवी धारावाहिकों के चर्चित अभिनेता बने. 1976 में पटना में नाटकों से जुड़े इस रंगकर्मी को यह बात परेशान करती थी कि आखिर दर्शक क्यों नहीं आते.

पता चला कि दर्शकों को नाटकों में वैसा मजा नहीं आता, जिसके लिए वे पैसे खर्च करें. उन्होंने अपने नाटकों की गुणवत्ता सुधारी. इप्टा से भी जुड़े. उन्हीं के शब्दों में, ''1981 तक आते-आते पटना में मेरे नाटकों के शो हाउसफुल होने लगे, लोग टिकट खरीदकर नाटक देखते.’’ तभी उनका एडमिशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में हो गया. वे दिल्ली चले गए, फिर मुंबई. सभी उन्हें विनीत कुमार के नाम से जानते हैं.

रंगकर्मी पुंज प्रकाश और एचओवी के कर्ता-धर्ता सुमन सिन्हा

तीसरा किरदार बिहार के ही एक और एनएसडी पासआउट का है, जिसका ग्रुप दस्तक नई-पुरानी साहित्यिक कृतियों और नाटकों का मंचन करता है. बकौल विनीत, ''वह ऑनेस्ट, कमिटेड और सिंसियर है.’’ विनीत जब भी पटना आते, वह उन्हें अपने नाटकों की रिहर्सल देखने बुला लेता, उनसे सलाह लेता. उस रंगकर्मी का नाम है, पुंज प्रकाश.

कोरोना काल में पटना में ही संयोगवश ये तीनों किरदार मिले और पैलेस ऑफ वेराइटी के कैंपस में 'हाउस ऑफ वेराइटी’ नाम वाले एक इंटीमेट थिएटर का जन्म हुआ. वहां पिछले सवा साल से थिएटर के साथ-साथ आर्ट और क्लासिक फिल्मों से जुड़े आयोजन हो रहे हैं. सुमन कहते हैं, ''दादा ने जो चीज खड़ी की थी और जो सपना देखा था, वह पूरा हुआ.’’

पुंज इसकी दिलचस्प कहानी बयान करते हैं, ''सुमन जी पिछले 15 साल से विनीत भैया के पीछे पड़े थे कि हमारे यहां पृथ्वी जैसा एक थिएटर होना चाहिए. उन्हें लगता था कि विनीत भैया चाहेंगे तो हो जाएगा. मगर विनीत भैया कहते कि सुमन जी भावुक आदमी हैं. उनको पता नहीं कि थिएटर में पैसा सिर्फ जाता है, आता नहीं. पर सुमन जी कहते कि बिजनेसमैन मैं हूं. मुझे मालूम है, बिजनेस कैसे होगा.’’

कोरोना के वक्त एक थिएटर वर्कशॉप के लिए जगह की जरूरत पड़ने पर पुंज को अचानक सुमन याद आए. वाया विनीत कुमार उन्होंने अपनी जरूरत सुमन तक पहुंचाई. सुमन ने उलटे ताना दिया कि वे तो कब से कह रहे हैं, एक थिएटर बनवाने के लिए. बहरहाल सिनेमा परिसर के एक नए भवन की खाली पड़ी दूसरी मंजिल पर पुंज ने वर्कशॉप की और फिर उसी फ्लोर पर तैयार नाटक का शो.

एचओवी के इंटीमेट थिएटर का इंटीरियर

वहीं तय हुआ कि अब इसी जगह एक थिएटर बनवा लिया जाए. सुमन, विनीत और पुंज साथ आए, समूह बना. विनीत ने अपने मशहूर स्टेज डिजाइनर और दोस्त रॉबिन दास तथा लाइट और दूसरी चीजों के लिए देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स की मदद ली. 50 सीटों वाला एक इंटीमेट थिएटर बना और जनवरी, 2024 से नाटकों, फिल्मों और दूसरी परफॉर्मिंग आर्ट्स का प्रदर्शन शुरू.

गुजरे सवा साल में यहां लगभग 140-150 शो हो चुके हैं. आशीष विद्यार्थी, सीमा पाहवा, संजय उपाध्याय, कुमुद मिश्र, सौरभ शुक्ला, एम.के. रैना जैसे दिग्गजों ने यहां शो किए. राज कपूर और मीना कुमारी वगैरह की क्लासिकल फिल्मों के फेस्टिवल हुए. सहयोग राशि न्यूनतम सौ रुपए रही. आशीष विद्यार्थी के शो के लिए तो 500 रुपए का भी सहयोग लिया गया. विनीत ने इसके लिए कुछ नियम भी बनाए: बिना टिकट कोई भी नहीं देखेगा. पास भी दें तो टिकट खरीदकर. दूसरे, थर्ड बेल के बाद कोई हॉल के अंदर नहीं जा सकता.

मुंबई से फोन पर विनीत बताते हैं, ''पुंज के साथ मिलकर इसके प्रोग्राम डिजाइन करता हूं. यहां से कलाकारों को वहां शो करने भेजता हूं. सुमन जी थिएटर का आर्थिक पक्ष देखते हैं और पुंज अपना पूरा समय एचओवी (हाउस ऑफ वेराइटी) को देते हैं.’’ पुंज की टीम के कलाकार अब वहीं रिहर्सल करते और शोज की प्रस्तुति में मदद करते हैं. पुंज के तैयार नाटकों तीसरी कसम, पंचलाइट और निठल्ले की डायरी भी खासे पसंद किए गए.

सुमन कहते हैं, ''हम क्वालिटी का बहुत ध्यान रख रहे हैं क्योंकि लोग पैसे देकर आते हैं. हमसे दर्शकों की अपेक्षा भी बढ़ गई है. सो हम नए प्रस्ताव पहले परखते हैं. इसीलिए एकाध शो के अलावा दर्शकों ने क्वालिटी को लेकर कभी शिकायत नहीं की.’’

एचओवी के सालाना सदस्यों में से एक, चार्टर अकाउंटेंट जुगनू देव कहते हैं, ''हम लोग बंगाली हैं. आर्ट-कल्चर में हमारी रुचि रहती है. पटना में पहले इसे मिस करते थे. अब एचओवी में हर प्रोग्राम में सपरिवार जाने लगे हैं.’’ मीना कुमारी पर दस्तक का ही तैयार किया प्रोग्राम अब तक उनका सबसे पसंदीदा रहा है.

वैसे विनीत और पुंज इस बात को लेकर परेशान दिखते हैं कि काफी शो होने के बावजूद खर्चे निकल नहीं पा रहे. बकौल विनीत, ''मुझसे नसीर भाई, अतुल कुमार और अमितोष नागपाल जैसे कलाकार पूछते हैं कि उन्हें पटना कब बुला रहा हूं.

इनको बुलाने में खर्चा बहुत है.’’ मगर सुमन के माथे पर कोई शिकन नहीं: ''इस तरह के काम में फायदे की स्थिति आने में 10-15 साल लग सकते हैं. मैंने तो इतनी भी उम्मीद नहीं की थी कि सवा साल में इतने शो हो जाएंगे.’’ उनका यह भी मानना है कि हर चीज कॉमर्स के लिए नहीं होती, ''कुछ होता है प्यार का सौदा. प्रॉफिट के लिए तो सिनेमा हॉल, एक रेस्तरां और दूसरी चीजें हैं.’’

विनीत कई साथी अभिनेताओं के और पटना में ही तैयार नाटकों को करवाने की योजना में हैं. खुद भी स्क्रिप्ट की तलाश में हैं. ''थिएटर छोड़े 35-36 साल हो गए.  पटना के लोग मुझे स्टेज पर देखना चाहते हैं.’’ कोशिश यही है कि सिलसिला आगे बढ़े और एचओवी अपना खर्चा भी निकाल सके. सामान्य लोग भी इसका आनंद लें. थिएटर एलीट का न बन जाए.

टिकट की कीमतें बहुत अधिक नहीं मगर आम लोगों में पैसे खर्च करके यह सब देखने की आदत डालने का प्रयास है. हालांकि पुंज और विनीत यथार्थ की जमीन पर पैसों के हिसाब से जूझते नजर आते हैं, वहीं सुमन बिल्डिंग की छत पर एक और थिएटर बनवाने की तैयारी में हैं. एक सिनेमा मालिक का सपना और दो कलाकारों की कोशिश क्या रंग लाएगी, आगे समझ आएगा.

हाउस ऑफ वेराइटी के संचालक सुमन सिन्हा कहते हैं कि ''कुछ होता है प्यार का सौदा. प्रॉफिट के लिए तो सिनेमा हॉल, एक रेस्तरां और दूसरी चीजें हैं ही.’’

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