चार फूल हैं...; कैसे यह डॉक्यूमेंट्री विनोद कुमार शुक्ल की दीवार की खिड़की खोलती है?

अचल मिश्र की फिल्म 'चार फूल हैं और दुनिया है' जाने-माने हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल की शख्सियत को भीतर तक झांक कर देख सकने वाली वह खिड़की साबित हुई है जो अब तक दीवार में रहा करती थी. शुक्ल को 2024 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया है

चार फूल हैं... में विनोद कुमार शुक्ल
चार फूल हैं... में विनोद कुमार शुक्ल

अभिनेता मानव कौल ने 2022 में जब अचल मिश्र से प्रतिष्ठित लेखक विनोद कुमार शुक्ल से मिलने रायपुर उनके घर चलने को कहा, तो उन्हें पता था कि इसका नतीजा फिल्म हो सकती है.

मिश्र ने इंडिया टुडे को बताया, ''मैं बहुत ज्यादा तैयारी करके गया." वे दो कैमरे, ट्राइपोड और साउंड रिकॉर्डिंग का पूरा लाव-लश्कर लेकर गए. मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

दिन के ज्यादातर वक्त वे शूट ही नहीं कर पाए क्योंकि 2024 के ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता और अब 88 बरस के लेखक ज्यों ही बोलना शुरू करते, वे उन्हें मंत्रमुग्ध सुनते रह जाते.

वे कहते हैं, ''मैं बस सुनता रहा." मिश्र को यकीन नहीं हो रहा था कि वे हिंदी के सबसे बड़े जीवित लेखकों में से एक के साथ एक ही कमरे में हैं, जो संयोग से अंतरराष्ट्रीय साहित्य के पेन/नोबोकोव अवार्ड का एकमात्र भारतीय विजेता भी है.

विनोद कुमार शुक्ल अपने घर पर

पता यह चला कि मिश्र और कौल ने लेखक के साथ जो दो दोपहर बिताईं, उनमें एक फिल्म जरूर निकल आई. शालीन-सी इस फिल्म चार फूल हैं और दुनिया है में, जिसकी शूटिंग, संपादन और निर्माण मिश्र ने ही किया है, वे शुक्ल की ऐसे कलाकार के रूप में अंतरंग तस्वीर उकेरते हैं जो अपनी कला में खोया है और उसी से शक्ति बटोरता है.

कुल 54 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री बातचीत और किंवदंतियों के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जिसमें शुक्ल के अधेड़ बेटे अपने पिता की उर्वर कल्पना के बारे में अपना नजरिया बताते हैं, तो कौल 88 वर्षीय लेखक को रचनात्मक कल्पनालोक के सारे आयामों का खुलासा करने के लिए कुरेदते रहते हैं.

मिश्र कस्बाई भारत की जगहों और चेहरों से गुत्थमगुत्था होती अपनी फिल्मों गामक घर (2019) और धुइन (2022) के निर्देशन के लिए खासी तारीफें बटोर चुके हैं. यही काम अब उन्होंने अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री से करने की कोशिश की है, जो शुक्ल के घर और उनकी कलात्मकता के बीच रिश्ता दिखाती है.

फिल्म की एडिटिंग में मिश्र को दो साल लगे और इस दौरान एक बात उनके दिलो-दिमाग में पक्की थी कि वे इसका हश्र लेखक के करियर को उभारने वाली फिल्म के तौर पर होता नहीं देखना चाहते. वे कहते हैं, ''इरादा यह था कि दर्शक को फिल्म में कुछ नया मिले, तब भी जब आप उनके काम को करीब से देखते रहे हों या उनके बारे में कुछ भी न जानते हों."

विनोद कुमार शुक्ल किताब पढ़ते हुए

पिछले साल धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के प्रीमियर के बाद मुबी (एमयूबीआई) पर चार फूल... रिलीज करने का फिल्मकार का फैसला भी सुलभता की ऐसी ही चाह से उपजा.

वे कहते हैं, ''मैं चाहता था कि यह फिल्म भरसक ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे." ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की सीमाओं का उन्हें पूरा एहसास था. फिर भी मिश्र ने यह पक्का करने का अचूक तरीका निकाल ही लिया कि हर कोई यह फिल्म देखे: किसी वक्त इसे यूट्यूब पर उपलब्ध करवा दिया जाए.

—पौलोमी दास

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