सलमान रुश्दी से लेकर अरुंधति राय तक, अंग्रेजी साहित्य के क्षेत्र में कैसे तैयार हुई भारतीय जमीन?

रुश्दी ने राह रोशन की पर अंग्रेजी में भारतीय लेखन ने अपनी स्वतंत्र पहचान बीते कुछ दशकों में बनाई, जब अनूदित भारतीय कथा साहित्य ने बहुत हाल में दुनिया का ध्यान खींचा और शोहरत हासिल की

जादूगर रुश्दी अपने बुकर विजेता उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन के साथ, 1982
जादूगर रुश्दी अपने बुकर विजेता उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन के साथ, 1982

जब 1981 में 34 वर्षीय सलमान रुश्दी ने अपना दूसरा उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन प्रकाशित किया, तो इसने उन्हें—और इंडो-एंग्लियन लेखन (या अंग्रेजी में भारतीय लेखन) को—उछालकर वैश्विक साहित्यिक सुर्खियों में ला दिया. आजादी के बाद के हालात से जूझ रहे नवोदित राष्ट्र की कहानी बयान करते इस उपन्यास ने न केवल उस साल बुकर प्राइज जीता बल्कि 1993 में पुरस्कार की 25वीं सालगिरह पर बुकर ऑफ बुकर्स और फिर 2008 में पुरस्कार की 45वीं सालगिरह पर बेस्ट ऑफ बुकर भी अपनी झोली में डाल लिए.

मिडनाइट्स चिल्ड्रन अतीत के भारतीय अंग्रेजी उपन्यासों से साफ तौर पर अलग था. पहले के उपन्यासों की पहचान उनकी सख्त, व्युत्पन्न या अमौलिक शैली थी. रुश्दी की पसंदीदा शैलीगत युक्ति 'जादुई यथार्थवाद’ था, जो बाद में उनकी पहचान बन गया. इस बीच उनके अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटी होने के दर्जे ने उदीयमान भारतीय लेखकों की एक समूची पीढ़ी को लेखकीय जीवन से करियर बनाने का आत्मविश्वास दिया, जो पहले अकल्पनीय था. ज्यादा अहम यह कि प्रकाशकों ने इस उद्यम में पर्याप्त व्यावसायिक संभावनाएं देखीं और उनकी पीठ पर अपना हाथ रखा.

रुश्दी के बाद जो लेखक उभरे, उन्होंने अपने-अपने बहुत व्यक्तिगत रास्ते गढ़े. बेशक वे सब भारत के अंग्रेजी भाषी कुलीनों के आरामदेह क्लब के थे. कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं—विक्रम सेठ का गोल्डन गेट (1986); अमिताव घोष का द सर्कल ऑफ रीजन (1986); उपमन्यु चटर्जी का इंग्लिश, अगस्त (1988); शशि थरूर का द ग्रेट इंडियन नॉवेल (1989); रोहिंगटन मिस्त्री का सच ए लांग जर्नी ((1991); अरुंधति रॉय का द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्ज (1997). इनमें से कई इंटरनेशनल बेस्टसेलर थे, जिन्होंने प्रकाशन की क्रांति और दुनिया भर में अनगिनत दूसरे भारतीयों की लेखकीय महत्वाकांक्षाओं का आगाज किया.

भारतीय अध्येता और प्रोफेसर राजेश्वरी सुंदर राजन लिखती हैं, ''मिडनाइट्स चिल्ड्रन और अगली चौथाई सदी के दौरान उसके बाद के उपन्यासों ने भड़कीले ढंग से राष्ट्र का भार वहन किया." राष्ट्रपन की धारणा का निरूपण करते हुए भी ये उपन्यास घनीभूत ढंग से व्यक्तिगत थे और इन्होंने जुड़ने योग्य चरित्र गढ़े. अरुंधति रॉय को जब द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्ज के लिए पांच लाख पाउंड का अग्रिम मिला, तब तक भारतीय अंग्रेजी कथा साहित्य का सचमुच आगमन हो चुका था.

रुश्दी का सफर भी कामयाब लेकिन उथल-पुथल भरा रहा, जब द सैटनिक वर्सेज में कथित ईशनिंदा की वजह से फतवा जारी कर दिया गया, जिसने उन्हें एक दशक तक छिपकर रहने को मजबूर कर दिया. 2022 में अपने ऊपर चाकू से हुए हमले का जवाब उन्होंने इस साल अप्रैल में उस एकमात्र तरीके से दिया जिससे एक लेखक दे सकता है, यानी आत्मकथात्मक किताब नाइफ: मेडिटेशंस आफ्टर ऐन एटेंप्टेड मर्डर प्रकाशित करके. उम्मीद के मुताबिक यह बेस्टसेलर रही.

इंडिया टुडे के पन्नों से 
अंक (अंग्रेजी):
16 मई, 1981  

''अ बिग सिटी नॉवेल’’

''अ बिग सिटी नॉवेल’’

स. कई आलोचकों को यह बेहद पठनीय लेकिन पेचीदा किताब लगी. आप किस बात से इसे लिखने को प्रेरित हुए?

ज. मैं कई चीजें करने की कोशिश कर रहा था...मैंने भारत के बारे में अंग्रेजी में ऐसी कोई किताब नहीं पढ़ी जिसमें मुझे लगा हो कि मैं उस जगह को पहचान सकता था जहां मैं बड़ा हुआ था. इसलिए मैंने एक ऐसी किताब लिखने की कोशिश शुरू की जो बताए कि बंबई में बड़ा होना कैसा लगता था...एक किस्म से भारतीय 'बिग सिटी नॉवेल’...

दूसरी प्रेरणा इस भावना से आई कि आपातकाल के अंत तक भारतीय इतिहास के एक दौर का अंत हो चुका था, कि आजादी और 1977 के बीच का टुकड़ा देश के इतिहास के दौर की नुमाइंदगी करता था जो उससे पहले के दौर से अलग था. फिर किताब केंद्रीय रूप से जिन चीजों के बारे में है, उनमें से एक यह कि जिस तरह सार्वजनिक मामले और निजी जिंदगियां आपस में घुलती-मिलती और पैठ जाती हैं...

स. क्या आप केवल पश्चिमी पाठकों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं या आप मानते हैं कि भारतीय और पाकिस्तानी पाठक भी होंगे?

ज. शायद खुद अपने सिवा मैंने किसी आदर्श पाठक की कल्पना नहीं की... ज्यादातर वक्त मुझे पक्का नहीं था कि किताब प्रकाशित होगी, इसलिए मैं बस जिद्दी रवैये से उसी तरह लिख रहा था जैसे मैं इसे लिखना चाहता था. मुझे लगता है कि इस किताब को ज्यादा बड़ा पश्चिमी पाठक वर्ग मिलेगा. मगर मैंने उम्मीद की कि भारतीय और पाकिस्तानी पाठक को यह असत्य नहीं लगेगा और मैंने केवल उतना ही स्पष्ट किया जितना मुझे लगा कि किताब की रचना के लिए जरूरी था.

—सलमान रुश्दी की बोनी मुखर्जी से बातचीत

असरदार दखल

● भारतीय अंग्रेजी लेखन के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार तैयार किया

● जल्दी ही कुछ भारतीय अंग्रेजी लेखक भारी-भरकम अग्रिम धनराशि हासिल कर पाए

● अंग्रेजी में भारतीय लेखन को मजबूत पहचान दी

● जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल, जिसे भारत का सबसे बड़ा साहित्य महोत्सव कहा जाता है, भारत की परिपक्व साहित्यिक संस्कृति के समर्थन से 2006 में भारी सफलता के साथ शुरू हुआ

● 2022 में गीतांजलि श्री के हिंदी से अनूदित उपन्यास टूंब ऑफ सैंड ने इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता, जिससे देशज भारतीय कथा साहित्य अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया

1 डॉलर में सलमान रुश्दी ने मिडनाइट्स चिल्ड्रन के फिल्म संस्करण के अधिकार बेचे. दीपा मेहता निर्देशित यह फिल्म 2012 में रिलीज हुई.

क्या आप जानते हैं?

इंदिरा गांधी ने मिडनाइट्स चिल्ड्रन में अध्याय 28 में अपने बेटे संजय गांधी से संबंधित एक हिस्से पर विरोध जताया था. श्रीमती गांधी ने ब्रिटिश अदालत में मामला दायर किया, जिसके बाद सलमान रुश्दी ने वह हिस्सा हटाने पर सहमति जताई.

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